Uttarakhand Marriage : गढ़वाल की शादियों में दी जाने वाली गाली

देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –

Uttarakhand Marriage दूल्हे से लेकर, दूल्हे के पिता, वर पक्ष के पंडित, दूल्हे के साथियों हर किसी के लिये शादी की विभिन्न परंपराओं के अनुसार दी जानी वाली गालियां।  शादी में दी जाने वाली गालियां उमंग और अनुराग में दी जाती हैं। यह आपकी आपसी घनिष्ठता और प्रेम की प्रतीक होती हैं। दूल्हा और दुल्हन पक्ष एक दूसरे से अमूमन अजनबी होते थे और एक समय इस अजनबीपन को दूर करने में अहम भूमिका निभाती थी गालियां। तो चलिए बात करते हैं गढ़वाल की शादियों में जाने वाली प्यार भरी गालियों की

 

गढ़वाल की शादियों में दी जाने वाली प्यार भरी गालियां Uttarakhand Marriage

Uttarakhand Marriage

गढ़वाल की शादियों में दी जाने वाली गालियों की शुरुआत  दूल्हे के लिये सालियों की गालियां तो बारात के स्वागत से ही शुरू हो जाती हैं। कहा भी जाता है कि साली की गाली हमेशा मीठी होती है तो फिर बुरा किसे लगेगा।  दूल्हा, दूल्हे का पिता और उसके पक्ष का पंडित इन गाली गीतों में निशाने पर होते हैं। वैसे इस तरह की गालियां विवाह प्रक्रिया के किसी भी मौके पर जैसे कि धूलि अर्घ, गोत्राचार, बेदि (विवाह मंडप) के समय दी जाती हैं। अगर दूल्हे के पिता नजर नहीं आ रहे हों या वर पक्ष का पंडित पहुंचने में देरी कर रहा हो तो फिर गालियों से उनका पूजन होने में देर नहीं लगती।

      हमारा गांऊ कुकर भुक्युं च, ब्यौला कु बुबा कुणेठु लुक्यूंच

      हमारा गांऊ कुकर भुक्युं च, ब्यौला कु बामण उबुर लुक्यूंच

                     या

      हमारा गौं म माचिस कु डब्बा, ब्यौला कु बामण ब्यौला कु बबा।

अगर दूल्हे के पिता ने अनसुनी कर दी तो फिर गाली गीत गाने वाली महिलाएं कहां चुप बैठने वाली होती हैं।

      हमारा गौं मा डाळ बैठो गूणी,

      ब्यौला क बुबा टक्क लगैकि सूणी।

    और अगर दूल्हे के पिता ने मजाक में भी मुंह खोल दिया तो फिर तब भी बेचारे की खैर नहीं। कुछ इस तरह ….

        हमर गौ मा खिनो कु खांभ, ब्यौला का बुबा थ्वरड़ो सि रांभ

इस बीच वधू पक्ष के गांव के लड़कों का काम होता है कि वे बारातियों का आदर सत्कार करें। दूल्हे के दोस्त भी इन गालियों का जवाब अपनी तरफ से देने की भी कोशिश करते हैं, लेकिन लड़कियों के सामने उनकी क्या बिसात। लड़कों का मुंह खुला कि लड़कियां इस तरह से तैयार कि लड़कों की चाय की चुस्की मुंह में अटक के रह जाए …..

 आलू काटे, बैंगन काटे, आलू की तरकारी जी

       हमर भयूं न चाय बणायी कुकुरू न सड़काई जी

इस बीच दुल्हन की सहेलियां दू्ल्हे की बहनों का नाम जानने की भी कोशिश करती थी ताकि वे दीदी भुलि कहने के बजाय नाम लेकर दूल्हे का गाली दे सकें। अब तो महिलाएं भी शादियों में जाती हैं लेकिन पहले ऐसा कम देखने को मिलता था। स्वाभाविक है समय के साथ गालियों का स्वरूप भी बदला है। अब इस गाली को ही देखिये….

हमारा गौं म बसि जाली कुकड़ी, ब्यौला की भुलि लगणि छ मकड़ी।

बेदि में ही सात फेरे भी होते हैं। इस बीच सहेलियां दुल्हन का पूरा हौसला बनाये रखती हैं।

शाबाश दगड्या हार न जैई,

          तै ब्यौला का ल्याचा लगैई ।

दूल्हे का यहां पर गालियों में काफी पूजन होता है। जब वह फेरे ले रहा होता है तो उसे इस तरह से चिढ़ाया जाता है।

फ्यारा फिरीलो भुलि का दगड़

        फ्यारा फिरीलो दीदी का दगड़ ।

और

        हमारि दगड्या त देखि कमाल,

         फुुंडु सरक ब्यौला, लाळु संभाल।


दूल्हा जब कंगड़ तोड़ने की कोशिश करता है तो दुल्हन की सहेलियां उसे उकसाती भी हैं और चिढ़ाती भी हैं।

तोड़ ब्यौला कंगड़—मंगड़, तेरि भुलि त्वेकु मंगड़

तोड़ ब्यौला कंगड़—मंगड़, तेरि दीदी त्वेकु मंगड़ ।

बात यहीं पर नहीं रूकती। दूल्हे को वे चुनौती देती हैं और कहती हैं कि अगर कंगड़ नहीं तोड़ पाये तो फिर उसे खाली हाथ ही घर जाना पड़ेगा।

तोड़ ब्यौला ब्यौली कु कंगड़, तेरि दीदी त्वेकु मंगड़

तोड़ि नि सकिलु तेरि हार, वापिस जैलु खालि घार

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