Tansen Biography : इमली ने तानसेन को बनाया था संगीत सम्राट

Tansen Biography संगीत के क्षेत्र में तानसेन का नाम लेते ही सुरों की ताल बजने लगती है। कहते हैं जिसने भी तानसेन की आवाज सुनी है वह मंत्रमुग्ध होकर रह गया। ग्वालियर में जन्मे तानसेन कुछ दिनों तक शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत खां के आश्रय में रहने के बाद रीवा के राजा रामचंद्र पास आ गए और काफी दिनों तक रीवा में संगीत की मधुर धारा प्रवाहित की। तानसेन के संगीत की ध्वनि रीवा से बाहर दिल्ली जा पहुंची और उस समय के मुगल सम्राट अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया। तानसेन के संबंध में कहा जाता था कि बचपन में उनके मुंह से साफ आवाज नहीं निकलती थी इसके बाद वह चमत्कार हुआ सिर्फ एक पेड़ की कुछ पत्तियां चबाने के बाद।

लोग  पेड़ की पत्ती को पाने लम्बी यात्रा करते हैं Tansen Biography

Tansen Biography

ग्वालियर में करीबन 600 साल पहले उस्ताद मोहम्मद गौस ने तानसेन को अपने स्थान के पास लगे हुए इमली के पेड़ की कुछ पत्तियां चबाने को दिया था। इन पत्तियों को चबाने के बाद तानसेन न केवल बोलने लगे, उनके मुंह से स्पष्ट स्वर भी सुनाई देने लगा। उनकी आवाज इतनी सुरीली हो गई की एक दिन ऐसा आया जब मुगल सम्राट अकबर ने तानसेन को अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।


बताते हैं कि तानसेन का जन्म ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में हुआ था। बचपन से ही तानसेन को बोलने में समस्या थी। इस बात को लेकर तानसेन के पिता काफी परेशान रहा करते थे। ऐसे में किसी ने उसे सलाह दी कि आप उस्ताद मोहम्मद गौस के पास जाइए। इनके पिता वहां पहुंचे तो जो चमत्कार हुआ उसे देखकर वह भी आश्चर्यचकित रह गए। बताते हैं कि मोहम्मद गौस ने वहीं पास लगे इमली की पेड़ की पत्तियों को मंगाकर तानसेन को चबाने के लिए दिया। इन पत्तियों को चबाने के बाद तानसेन के मुख से इतनी सुरीली आवाज निकली कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं।

बताते हैं कि आज भी उस इमली के पेड़ की पत्तियों को प्राप्त करने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं। कहा गया है कि लगातार लोगों के द्वारा इस पेड की पत्तियों को तोड़ने की वजह से पेड़ के अस्तित्व पर संकट आ गया। प्रशासन द्वारा इस पेड़ की रक्षा के लिए उसके चारों ओर लोहे की दीवार खड़ी कर पहरा लगा दिया है।

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