Durga bhabhi भाभी हो तो दुर्गा जैसी ! कहिये हैप्पी बर्थडे 

Durga bhabhi आपने बहुत सी भाभी और देवर की कहानिया पढ़ी होंगी लेकिन हम जिस भाभी के बारे में बताने जा रहे हैं वो एकदम अलग और ख़ास हैं। ये वो दौर था जब क्रन्तिकारी  भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों को पकड़ने के लिए ब्रिटिश हुकूमत जमीन-आसमान एक कर दी थी। भगत सिंह और उनके साथियों पर पुलिस अधिकारी साण्डर्स की हत्या का आरोप था। वह साण्डर्स जिसने साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय को इस हद तक पीटा की चंद दिनों के बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी।क्रांतिकारियों ने ठान लिया कि वे लाला लाजपत राय की शहादत का बदला लेकर रहेंगे। फिर क्या था चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह, राजगुरु और जयगोपाल ने लाहौर में एक पुलिस स्टेशन के सामने ही साण्डर्स को गोलियों से उड़ा दिया। देश सोए से जाग उठा। साण्डर्स की मौत के दूसरे दिन ही लाहौर शहर के दीवारों पर पोस्टर लग गए और पर्चे बांटे गए Iजिनपर लिखा था कि साण्डर्स मारा गया और लालाजी की शहादत का बदला ले लिया गया। पर क्रांतिकारियों के समक्ष मौंजू सवाल यह था कि आखिर भगत सिंह को लाहौर से बाहर कैसे निकाला जाए। इसकी जिम्मेदारी दुर्गा देवी वोहरा जिन्हें दुर्गा भाभी भी कहा जाता है, ने अपने कंधो पर ली। उन्होंने कमाल की योजना बनायी।

 

गोली चलाने वालों में से  लम्बे बाल वाला लड़का था Durga bhabhi

जिसके मुताबिक भगत सिंह ने अपना केश कटवायी और सिर पर हैट लगाकर अंग्रेजी दा बन गए। उनको इस नई वेशभूशा में देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह वही भगत सिंह हैं। दुर्गा भाभी ने बड़ी दिलेरी से भगत सिंह के साथ उनकी पत्नी बनकर लाहौर से कलकत्ता तक की सफर की और ब्रिटिश खुफिया तंत्र को इसकी हवा तक न लगी।दुर्गा भाभी के साथ उनकी गोद से चिपका हुआ उनका तीन वर्षीय बेटा शची भी था। कलकत्ता पहंुचने पर उनके पति भगवती चरण बोहरा ने उनकी बहादुरी की जमकर दाद दी। 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद में जन्मी दुर्गा भाभी बचपन से ही असाधारण प्रतिभा की धनी थी। उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। युवा होने पर उनका विवाह महान क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा से हुआ।

भगवती चरण वोहरा आजादी के उन नायकों में से एक हैं जिनके जीवन का उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था। कहा जाता है कि उन्हें बम बनाने में महारत हासिल था। 28 मई, 1930 को रावी नदी के तट पर बम परीक्षण के दौरान वे शहीद हो गए। उस समय दुर्गा महज 27 साल की थी।लेकिन इस कठिन घड़ी में भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने मन में ठान लिया कि वे अपने पति की शहादत और उनके मिशन को बेकार नहीं जाने देंगी। सो उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ कदमताल मिलाना शुरु कर दिया। दुर्गा भाभी की बहादुरी के किस्से भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी का ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया। इसी दरम्यान 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने संसद भवन में बम विस्फोट कर गुंगी-बहरी ब्रिटिश सरकार को अंदर से हिला दिया। कहा जाता है कि इस घटना को मूर्त रुप देने में दुर्गा भाभी का महान योगदान था।

भगत सिंह चाहते तो संसद भवन से फरार हो सकते थे लेकिन उन्होंने अपनी गिरफ्तारी देना ज्यादा जरुरी समझा। क्रांतिकारियों ने भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की जुगत बनायी और योजना पर काम करना शुरु कर दिया। रणनीति के मुताबिक भगत सिंह को जबरदस्ती जेल से छुड़ाने के लिए बम विस्फोट की योजना बनी। लेकिन ईश्वर के विधान में कुछ और ही बदा था।दुर्गा भाभी के पति भगवती चरण बोहरा जो बम बनाने में दक्ष थे, बम परीक्षण के दौरान ही शहीद हो गए। दुर्गा भाभी पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन उन्होंने अपने आंसूओं को थाम लिया। वे लाहौर जाकर भगत सिंह से मिली और फिर दिल्ली वापस आकर गांधी जी से। गांधी जी ने भाभी को सुझाव दिया कि वे अपने आपको पुलिस के हवाले कर दे।लेकिन दुर्गा भाभी का मकसद तो कुछ और ही था। उन्होंने गांधी जी से अपील की कि जिस तरह आप अन्य राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए प्रयास कर रहे हैं, उसी तरह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की रिहाई के लिए भी वायसराय पर दबाव डालें। लेकिन गांधी जी को क्रांतिकारियों के हिंसा दर्शन में विश्वास नहीं था। सो उन्होंने दुर्गा भाभी को मना कर दिया।लेकिन दुर्गा भी दुर्गा ठहरी। वह भला हार कैसे मान सकती थी। 9 अक्टुबर, 1930 को उन्होंने मुंबई में लेमिंग्टन रोड पर पृथ्वी सिंह आजाद उर्फ नाना साहब और सुखदेव राज से मिलकर गवर्नर पर गोलियां चला दी। लाख सिर पटकने के बाद भी पुलिस का खुफिया तंत्र इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया कि इस कांड के पीछे किसका हाथ है।

पुलिस के हाथ सिर्फ यही सूत्र लगा कि गोली चलाने वालों में से एक लम्बे बाल वाला लड़का भी था। लेकिन एक षड़यंत्र के तहत दुर्गा भाभी को ब्रिटिश सरकार ने फरार घोषित कर दिया तकरीबन ढ़ाई वर्ष फरारी जीवन गुजारने के बाद उन्हें 12 सितंबर, 1931 को गिरफ्तार कर लाहौर जेल भेज दिया गया। रिमाण्ड की 15 दिन की अवधि पूरा होने पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें रिहा तो कर दिया लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया।तकरीबन एक वर्ष तक वह नजरबंद रही। दिसंबर 1932 में वह रिहा की गयी। लेकिन उन्हें लाहौर की म्यूनिसिपल सीमा में तीन वर्ष तक नजरबंद रखा गया। 1935 ई0 में उन्हें पंजाब और दिल्ली की सीमा से बाहर जाने का आदेश दिया गया। इस दरम्यान दुर्गा भाभी ने गाजियाबाद के एक स्कूल में बतौर शिक्षिका अध्यापन कार्य किया।  जब वह 1940 में लखनऊ आयी तो कैण्ट रोड पर एक किराए के मकान में पांच बच्चों को लेकर ‘लखनऊ माण्टेसरी’ नामक एक शिक्षण संस्था की बुनियाद रखी।आज यह विद्यालय ‘लखनऊ माण्टेसरी इण्टर कालेज’ के नाम से जाना जाता है।

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