रक्षक के बजाय भक्षक साबित हो सकते हैं Airbag

जब भी नई गाड़ी खरीदनी हो तो सबसे पहले यही देखते हैं कि आखिर कार में सेफ्टी के लिए कितने Airbag दिए गए हैं? लेकिन कुछ मामलों में सेफ्टी के लिए दिए गए यही एयरबैग्स आपके लिए रक्षक के बजाय भक्षक साबित हो सकते हैं. हाल ही में महाराष्ट्र के वाशी में हुए सड़क हादसे में 6 साल के एक मासूम को एयरबैग्स की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी. डॉक्टरों का कहना था कि अचानक एयरबैग खुलने की वजह से बच्चे को अंदरूनी चोटें आई जिस वजह से खून अंदर ही बहता रहा और बच्चे की जान चली गई.


अब सवाल यहां ये उठता है कि आखिर इसमें गलती किसकी है, पिता की जिसने अपने बच्चे को अपने साथ आगे वाली सीट पर बैठाया या फिर एयरबैग की खराब क्वालिटी की जिस वजह से बच्चों को इतनी गंभीर चोट लगी कि जान ही चली गई. खैर सवाल तो बहुत से हैं और इन सवालों के जवाब समय के साथ मिल ही जाएंगे. लेकिन आज इस सड़क हादसे से हमें काफी कुछ सीखने की जरूरत है और वह यह है कि जब भी बच्चों के साथ ड्राइव करें तो उन्हें किस सीट पर बैठाएं?


नोट करें ये जरूरी बातें

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का ऐसा मानना है कि अगर आपके बच्चे की उम्र 13 साल से कम है तो आप लोगों को अपने बच्चे को हमेशा पिछली सीट पर बैठाना चाहिए.ऐसा इसलिए क्योंकि फ्रंट की तुलना रियर सीट 70 फीसदी ज्यादा सेफ होती है.अगर आपका बच्चा छोटा है और अगर आपकी कार ISOFIX चाइल्ड सीट सपोर्ट करती है तो आपको अपनी कार में बच्चों के लिए इस स्पेशल सीट को लगवाना चाहिए. इस तरह की सीट आपकी गाड़ी की रियर सीट पर लग जाती हैं जिसमें आप अपने बच्चे को बैठा सकते हैं, इस तरह की सीट बच्चे को एडिशनल सेफ्टी देने में मदद करती है. कोशिश करें कि जब भी नई कार खरीदें तो ऐसी गाड़ी लें जिसमें इस तरह की सुविधा मिलती हो.

कंपनी फ्रंट एयरबैग्स को बड़े लोगों के हिसाब से डिजाइन करती हैं, अगर आप छोटे बच्चे को फ्रंट सीट पर बैठाकर ड्राइव करेंगे तो सड़क हादसे के वक्त छोटे बच्चे को गंभीर चोट आ सकती है या फिर बच्चे का दम भी घुट सकता है जिससे मुश्किल बढ़ सकती है.

क्या न करें

बच्चे को फ्रंट सीट पर बैठाने की गलती
बच्चों का सनरूफ से सिर बाहर निकलाने न दें
ड्राइव के दौरान चाइल्ड लॉक लगाएं ताकि बच्चे रियर सीट पर बैठकर गाड़ी का शीशा खोलकर हाथ या सिर बाहर न निकाल पाएं
कैसे काम करता है एयरबैग
कार में कई सेंसर लगे होते हैं, इन्हीं में से एक सेंसर एयरबैग से जुड़ा होता है. जैसे ही कार टकराती है, ये सेंसर एक्टिव हो जाता है और कार में लगे इंफ्लेटर तक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल भेजता है. ये इंफ्लेटर एयरबैग में लगा होता है, इंफ्लेटर को जैसे ही सिग्नल मिलता है एयरबैग फुल जाता है.

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