Lathmar Holi ब्रज की लठमार होली – एक अनूठी परंपरा

Lathmar Holi होली पर पूरा देश रंगीला हो जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। होली सबके जीवन में उल्लास, खुशी, मस्ती, और प्रेम लेकर आती है। ब्रज क्षेत्र की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। इसे राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानकर खेला जाता है। यहां लट्ठमार के अलावा लड्डू मार होली भी खेली जाती है। वहीं राजस्थान में कोड़ामार होली की पंरपरा वर्षों से है। इन सभी जगह होली के दिन महिलाएं ही पुरुषों को अलग-अलग तरह से पीटती हैं। उत्तर प्रदेश के बरसाना में हर साल लठमार होली फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. इस बार यह तिथि 8 मार्च को पड़ रही है. ब्रज में होली का पर्व लगभग 40 दिनों तक मनाया जाता है. जिसमें से लठमार होली का खास महत्व होती है.

कैसे खेली जाती है लठमार होली? Lathmar Holi



लठमार होली में मथुरा के बरसाना और नंदगांव के बीच खेली जाती है. इसमें नंदगांव के पुरुष यानि हुरायारे और बरसाने के महिलाएं यानी हुरियारिन हिस्सा लेती हैं. जिसमें पुरुष सिर पर साफ और कमर में फेंटा हाथ ढाल लेकर आते हैं. वहीं बरसाने की हुरियारिन सिर और चेहरे को ढक कर लाठियां बरसाती हैं. अगर किसी हुरियारे को लाठ छू जाता है, तब उसे सजा के तौर पर महिलाओं के कपड़े पहनकर नाचना होता है. इसमें किसी को चोट नहीं लगती यह सिर्फ हंसी-मजाक में किया जाता है. साथ ही इस दौरान होली खास ब्रज के गीत गाए जाते हैं और रंग उड़ाए जाते हैं. इसके अलावा लठमार होली में भांग और ठंडाई का जमकर लुफ्त उठाया जाता है. पूरे गांव में मंडलियां श्रीकृष्ण और राधा रानी के भजन-कीर्तन करते हुए घूमती हैं.


कैसे शुरू हुई लठमार होली की परंपरा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण राधा जी से मिलने के लिए बरसाना गए और राधा रानी के साथ उनकी सखियों को चिढ़ाने लगे. ऐसे में राधा जी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटते हुए दौड़ने लगी. मान्यता है कि तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि लट्ठमार होली की शुरुआत लगभग 5000 वर्ष पहले हुई थी.लट्ठमार होली को लेकर बताया जाता है कि जब नंदगांव के पुरोहित बरसाना आए तब उन्हें खाने के लिए लड्डू दिए गए तो कुछ गोपियों ने उनको गुलाल भी लगा दिया। उस समय पुरोहित के पास गुलाल नहीं था तो उन्होंने लड्डू ही फेंकने शुरू कर दिए। उसी समय से लड्डू मार होली शुरू हो गई। इसके बाद में इन लड्डुओं का प्रसाद श्रद्धालुओं के लिए बरसाना पहुंचाया जाता है।
ShiningUttarakhandNews

We are in the field of Electronic Media from more than 20 years. In this long journey we worked for some news papers , News Channels , Film and Tv Commercial as a contant writer , Field Reporter and Editorial Section.Now it's our New venture of News and Informative Reporting with positive aproch specially dedicated to Devbhumi Uttarakhand and it's glorious Culture , Traditions and unseen pictures of Valley..So plz support us and give ur valuable suggestions and information for impressive stories here.