देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट –
Chipla Kedar देवभूमि उत्तराखंड एक टूरिस्ट स्टेट है जहाँ की संस्कृति प्रकृति और परिवेश टूरिस्टों को दीवाना बना देते हैं। यहां पर अनेकों देवी- देवताओं के मंदिर है , पौराणिक , आध्यत्मिक धाम और स्थानीय देवता है। इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता हैं। उत्तराखंड में वैसे कई देवी – देवता हैं। परंतु आज हम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में ईस्ट देवता के रूप में पूजे जाने वाले छिपलाकेदार देवता के बारे में आपको बताने जा रहे हैं।
उत्तराखंड के शक्तिशाली देवता है छिपलाकेदार Chipla Kedar
छिपलाकेदार देवता की माता का नाम मैणामाई तथा पिता का नाम कोडिया नाग था। माता मैणामाई और पिता कोडिया नाग से जन्म लेने वाले छिपलाकेदार देवता दस भाई-बहन थे। जिसमें से तीन भाइयों में छिपलाकेदार सबसे छोटे थे। उदैण व मुदैण दो भाई और होकरा देवी, भराड़ी देवी, कोडिगाड़ी देवी, चानुला देवी, नंदा देवी, कालिका देवी, कोकिला देवी ये सात बहनें थी। बहनों में कोकिला देवी सबसे छोटी बहन थी। कोकिला देवी मंदिर, छिपला कोट के हृदय में स्थित गांव कनार में विराजमान हैं। छिपला जात यात्रा कोकिला कनार मंदिर से शुरू होती है।
छिपला केदार की जय…
कल्पसा भडों की जय…
कोकिला कनार की जय….
छिपलाकेदार का निवास स्थान नाजुरी कोट के रूप में जाना जाता है। छिपलाकेदार देवता स्थायी रूप से नाजुरीकोट के निवासी नहीं थे। उनका प्रारम्भिक जीवन खलछाना (पत्थरकोट) जो कि नेपाल की राजधानी काठमांडु के समीप नुवाकोट में स्थित है वंहा पर बीता है। नुवाकोट वर्तमान में नेपाल का एक जिला है।छिपलाकेदार घर में सबसे छोटे होने के कारण छिपला केदार भाभियों के लाड़ले थे, किन्तु उनके बड़े भाईयों को उनके साथ हँसना-बोलना नापसंद था। बड़े भाई लोग छिपला केदार पर शक किया करते थे। अतः उन्होनें छिपला को मरवाने की योजना बनानी प्रारम्भ कर दी किन्तु कोई भी भाई भातृहत्या का पाप स्वयं लेने को तैयार नहीं था। अतः छिपला को अन्य विधियों से मारे जाने की साजिश शुरू हो गई।
पहली योजना उनके भाईयों ने बनाई कि तराई के जंगल में छोड़ आने की जहां जंगली जानवर छिपला केदार को मार डालेंगे। दूसरी ओर छिपला केदार निष्पाप भाव से भाईयों तथा भाभियों का सम्मान करते थे। प्रथम योजना के तहत भाई उन्हें तराई के जंगलों में छोड़ आते है पर वो कुछ ही दिनों में वापस घर पहुँच जाते है। दूसरी योजना तराई क्षेत्र में आंतक के प्रयाय डाकुओं से मरवाने की थी। उन्हें मिल-बाँटकर खाने वाले राज्य कहकर वहां छोड़ दिया जाता है, किन्तु यहां से भी वे बचकर बाहर निकल पड़ते है।
इस प्रकार कई प्रकार के षड़यंत्रों के असफल होने के बाद वे बकरियों के साथ तराई पार कर काली के निकट के जंगलों की तरफ ले जाते हैं। जहां यार्मी-च्यार्मी नामक दुष्ट शासक का क्षेत्र था। कहा जाता है कि वर्तमान नाजुरी कोट में तब यार्मी-च्यार्मी नामक शासक का महल था, क्रूर व अत्याचारी शासक था छिपला केदार को अंततः छोड़ दिया जाता है च्यार्मी के राज्य में जहाँ 12 लड़कों, 12 बहुओं, बाहरबीसी (240) शिकारी कुत्ते जिन्हें मार्का कहा जाता था के साथ शासन करता था।
उस समय च्यार्मी की सीमा पर कोई बाहरी आदमी किसी भी रूप में प्रवेश नहीं कर सकता था। जिसके कारण छिपलाकेदार वंहा ब्राह्मण का रूप धारण करके गए जिससे उन्हे कोई पहचान नहीं पाया। और उन्होंने वंहा रहकर उन सब भाइयों की साजिश को जानकर उन सबको एक- एक कर के मार दिया और नाजुरी कोट को इनके अत्याचारों से मुक्त कर के छिपलाकेदार देवता यंही बस गए और यहीं पूजे जाने लगे।
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