Amazing Tradition दो से ज्यादा पति चाहिए तो ‘पॉलीएंड्री’ निभाइये

Amazing Tradition हमारे देश में कदम कदम पर परम्पराएं अलग हैं , मान्यताएं और रहन सहन अलग है। जीवन के हर मोड़ पर अजब गजब रस्में हम निभाते हुए देखते सुनते हैं। बीते दिनों हिमाचल के सिरमौर जिले में एक युवती ने दो सगे भाइयों से शादी की खूब चर्चा है। इसके बाद से ही यह शादी काफी चर्चित है। हालांकि हिमाचल में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, एक लड़की दो या इससे ज्यादा पति भी रख सकती है। इसी प्रकार एक लड़का भी कुछ विशेष कारणों में दूसरी लड़की से शादी करके दोनों पत्नियों को एक साथ रख सकता है।

क्या है पॉली एंट्री परंपरा ? Amazing Tradition

हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में हाल ही में एक अनोखी शादी खूब चर्चा में बनी हुई है। शिलाई गांव निवासी दो भाइयों प्रदीप और कपिल नेगी ने कुनहाट गांव की सुनीता चौहान से एक साथ विवाह रचाया है। यह विवाह हाटी समुदाय की सदियों पुरानी बहुपति (पॉलीएंड्री) परंपरा के तहत हुए है। जिसे स्थानीय रूप से ‘जोड़ीदारन’ या ‘द्रौपदी प्रथा’ के नाम से जाना जाता है। इस समारोह में पूर्ण सहमति और सामुदायिक भागीदारी के साथ तीन दिन तक उत्सव मनाया गया।

पॉली एंट्री एक ऐसी सामाजिक प्रथा है जिसमें एक महिला एक ही समय में दो या अधिक पुरुषों के साथ विवाह करती है। हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय में यह प्रथा भ्रातृ पॉलीएंड्री (fraternal polyandry) के रूप में प्रचलित है, यहां एक महिला एक परिवार के कई भाइयों से विवाह कर सकती है। यह परंपरा सिरमौर, किन्नौर, लाहौल-स्पीति और कुछ हद तक कुल्लू और मंडी जैसे क्षेत्रों में देखी जाती है। इस प्रथा का उद्देश्य संयुक्त परिवार की एकता बनाए रखना, पुश्तैनी जमीन का बंटवारा रोकना और सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना है। हाटी समुदाय में यह परंपरा ऐतिहासिक रूप से व्यावहारिक कारणों से शुरू हुई। पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन की कमी और आर्थिक संसाधनों के सीमित होने कारण भाइयों द्वारा एक पत्नी को साझा करना, परिवार की संपत्ति को अखंडित रखने का एक तरीका था। इसके अलावा, यह प्रथा महिलाओं को विधवा होने से बचाने और परिवार में एकता बनाए रखने में भी मदद करती थी, खासकर जब भाई काम के लिए लंबे समय तक घर से दूर रहते थे।


फिर से सुर्खियों में आ गई परंपरा

हाल ही में शिलाई गांव में हुई इस शादी ने पॉलीएंड्री की प्रथा को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। इसमें दूल्हा बने प्रदीप नेगी जल शक्ति विभाग में कार्यरत हैं और उनके छोटे भाई कपिल विदेश में हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में काम करते हैं। दोनों भाइयों ने सुनीता चौहान के साथ विवाह किया है। सुनीता ने कहा कि ‘मैं इस परंपरा से वाकिफ थी और यह मेरा स्वैच्छिक निर्णय था। मुझ पर कोई दबाव नहीं था।’ प्रदीप ने भी कहा कि ‘हमने इस परंपरा को गर्व के साथ खुलेआम अपनाया। यह हमारा संयुक्त निर्णय था, जो विश्वास और साझा जिम्मेदारी पर आधारित है।’यह शादी तीन दिनों तक चली, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण और रिश्तेदार शामिल हुए। समारोह में पारंपरिक ट्रांस-गिरी व्यंजनों का स्वाद और पहाड़ी लोकगीतों पर नृत्य ने उत्सव को यादगार बना दिया। शिलाई गांव के एक निवासी बिशन तोमर ने बताया कि ‘हमारे गांव में तीन दर्जन से अधिक परिवारों में दो या तीन भाइयों की एक पत्नी है, लेकिन ऐसी शादियां आमतौर पर चुपके से होती हैं। इस शादी की खासियत इसकी पारदर्शिता और गरिमा थी।’

पॉलीएंड्री के पीछे थी सकारात्मक सोच

हाटी समुदाय में पॉलीएंड्री की प्रथा के पीछे कई व्यावहारिक और सामाजिक कारण हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में छोटे-छोटे खेत और सीमित संसाधनों के कारण, यह प्रथा पुश्तैनी संपत्ति को अखंड रखने में मदद करती थी। इसके अलावा, यह परिवार में भाईचारे को बढ़ावा देती थी, क्योंकि सभी भाई एक ही पत्नी और उनके बच्चों की जिम्मेदारी साझा करते थे। बच्चे सभी भाइयों को ‘बड़ा बाप’, ‘मंझला बाप’ या ‘छोटा बाप’ कहकर संबोधित करते थे, जिससे पारिवारिक एकता बनी रहती थी।इसके अलावा, यह प्रथा महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती थी। यदि एक भाई की मृत्यु हो जाती थी, तो महिला विधवा नहीं होती थी, क्योंकि अन्य भाई उसकी जिम्मेदारी लेते थे। कुछ लोग इस प्रथा को महाभारत की द्रौपदी से जोड़ते हैं, जिन्होंने पांच पांडवों से विवाह किया था। हाटी समुदाय के लोग मानते हैं कि उनकी यह परंपरा पांडवों की विरासत से प्रेरित है।

कम प्रचलित है यह प्रथा

हालांकि पॉलीएंड्री की प्रथा हाटी समुदाय में सदियों से चली आ रही है, लेकिन बढ़ती शिक्षा और आर्थिक समृद्धि के कारण यह अब कम प्रचलित हो रही है। हाटी समुदाय को हाल ही में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला है, जिसने सामाजिक और आर्थिक बदलाव को और तेज किया है। कई युवा और शिक्षित लोग अब इस प्रथा को छोड़ रहे हैं। सिरमौर की मीनू देवी ने कहा कि वह अपने बच्चों को इस प्रथा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगी, क्योंकि उनके बेटों ने अलग-अलग महिलाओं से विवाह किया है।इसके बावजूद, शिलाई की इस शादी ने दिखाया कि कुछ लोग अभी भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से गहराई से जुड़े हैं और इसे गर्व के साथ अपनाते हैं। यह शादी न केवल परंपरा और आधुनिकता का संगम थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे समुदाय अपनी विरासत को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं।