Baba Prashad Giri: मंदिर में पंखे कूलर व एसी चढ़ाने वाली मन्नत का सच !

Baba Prashad Giri बाबा प्रसाद गिरी मंदिर में पिछले करीब 300 वर्षों से पंखे चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। पहले यहां पर हाथ के पंखों का चढ़ाया जाता था। वहीं आज के समय में हाथ के पंखों के अलावा छत पंखें, कूलर व एसी भी चढाएं जाते है। मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु दूर-दूर से अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां पर पंखे चढ़ाने के लिए आते है। करीब 300 वर्ष पहले सोमवार के दिन दुल्हेंडी पर बाबा प्रसाद गिरी महाराज ने यहां पर समाधि ली थी। वहीं इसके बाद सोमवार के दिन यहां पर श्रद्धालु अपनी मनोकामना मांगने के लिए आते है। वहीं इसके बाद मनोकामना पूरी होने के बाद दुल्हेंडी के दिन यहां पर श्रद्धालुओं की तरफ से पंखे चढ़ाएं जाते है। मौजूदा समय में बाबा प्रसाद गिरी मंदिर के महंत परमानंद गिरी महाराज की अध्यक्षता में यहां पर पंखे चढ़ाए जाते है।

Baba Prashad Giri

सोमवार के दिन बाबा प्रसाद गिरी महाराज(Baba Prashad Giri) ने यहां पर जीवित समाधि ली थी, इस कारण यहां पर मंदिर में सोमवार के दिन भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। श्रद्धालु उमा शंकर ने बताता कि सोमवार के दिन ही श्रद्धालु यहां पर अपनी मनोकामना पूरी करने की मन्नत मांगने के लिए आते है। वहीं वर्ष जब से ही इस मंदिर में बाबा प्रसाद गिरी मंदिर की जीवित समाधि के पास पंखे चढ़ाने शुरू किए गए थे, क्योंकि बाबा प्रसाद गिरी महाराज को पंखे बहुत ही प्रिय थे।

Baba Prashad Giri

वहीं, जिस भी श्रद्धालु की मनोकामना पूरी हो जाती वह श्रद्धालु यहां पर पंखे चढ़ाने के लिए आते है। पहले यहां पर श्रद्धालुओं की तरफ से हाथ के बड़े पंखे चढ़ाए जाते थे जो राजा महाराजाओं के समय में इस्तेमाल किए जाते थे। वहीं आज के समय में यहां पर हाथ के पंखों के अलावा छत पंखे, कूलर व एसी भी चढ़ाए जाते है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पर पंखों को चढ़ाने के लिए आते है। दुल्हेंडी के दिन बाबा प्रसाद गिरी मंदिर में पंखे चढ़ाए जाते है। इस दिन बाबा प्रसाद गिरी मंदिर में हजारों की संख्यां में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

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यह है समाधि की कहानी

करीब 300 वर्ष पहले इस मंदिर में बिमला नाम की एक सेविका प्रतिदिन मंदिर में सेवा करने के लिए आती थी। इससे उसका मन सेवा में लगा रहता था। वहीं उस महिला के पति फौज में नौकरी करते थे। एक दिन उसके पति फौज से छुट्टी आते है तो पड़ौसियों की तरफ से उसके समक्ष उसकी पत्नी व बाबा प्रसाद गिरी महाराज(Baba Prashad Giri) की चुगली की जाती थी।वहीं, इस दौरान उसके पति की मौत हो जाती है। इसके बाद बिमला पर पड़ौसियों की तरफ से आरोप लगाए जाते हैं कि उन्हीं के कारण उनके पति की मौत हुई है। इसके बाद वह यह बात बाबा प्रसाद गिरी महाराज को बताती है। बाबा प्रसाद गिरी महाराज उनको अपने पति की शव यात्रा को मंदिर के आगे से लेकर जाने के लिए कहते है। वहीं उसके बाद वह घर जाकर यह बात बताती है तो परिवार वाले उसकी बात को स्वीकार कर लेते है।

Baba Prashad Giri

जब परिवार वाले उसकी शव यात्रा को मंदिर के आगे से लेकर जाते है तो बाबा प्रसाद गिरी महाराज उनके शव को नीचे रखवाकर उनके ऊपर जल के छिड़काव व अपने चिमटे से उसको जीवित कर देते है और अपने बचे हुए प्राण उसके अंदर डाल देते है। वहीं इस दौरान धरती फटती है और बाबा प्रसाद गिरी महाराज उसमें समा जाते है। वहीं इसके बाबा प्रसाद गिरी महाराज(Baba Prashad Giri) मंदिर के अंदर जीवित समाधि ले लेते है। सोमवार के दिन बाबा प्रसाद गिरी महाराज ने जीवित समाधि ली थी और उसी दिन दुल्हेंडी का भी पर्व था।

Baba Prashad Giri

इसके बाद से श्रद्धालु यहां पर सोमवार के दिन अपनी मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगने आते है और मन्नत पूरी होने के बाद यहां पर दुल्हेंडी के दिन पंखे चढ़ाए जाते है।होली पर्व के अवसर पर यहां पर संत सम्मेलन व भंड़ारे का आयोजन भी किया जाता है। दुल्हेंडी के अवसर पर यहां पर पंखे चढ़ाए जाते है और भारी संख्यां में श्रद्धालु यहां पर संतो का आशीर्वाद प्राप्त करते है। दुल्हेंडी के दिन ही मंदिर के बाहर मेला भी लगाया जाता है। इससे अगले दिन सुबह हवन यज्ञ किया जाता है और दो दिनों तक सत्संग का आयोजन होता है। वहीं दो दिनों के सत्संग के बाद यहां पर विशाल समष्टि भंड़ारा लगाया जाता है।

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