हाईकोर्ट ने 8 सेकेंड में खारिज कर दिया Banda judge Arpita Sahu
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बांदा की बबेरू तहसील में सिविल जज के रूप में तैनात अर्पिता साहू ने पत्र लिख कर अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे जज और उसके साथी ने उन्हें रात में घर आने के लिए दबाव डाला। उनका शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण किया। जब उन्होंने न्याय की मांग की तो कोई सुनवाई नहीं हुई। डेढ़ साल बाद भी मेरे साथ हुए अन्याय से किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ा तो मैंने अपनी जिंदगी को खत्म का करने का फैसला कर लिया हैं। मैं अब जीना नहीं चाहती। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगती हूं।
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न्याय के लिए तरस गई हूं, अंदर से टूट गई हूं
अर्पिता ने लिखा कि मैंने न्यायिक सेवा बहुत उत्सुकता के साथ चुनी। मेरा विश्वास था कि मैं उन सभी लोगों को न्याय दिलाऊंगी, जो न्याय से वंचित हैं, लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन मुझे ही न्याय मांगना पड़ेगा। मुझे कूड़ा समझा गया, जिसके बाद मैं खुद को बहुत ही ज्यादा बेकार और मजबूर समझने लगी हूं। मैं अंदर से टूट गई हूं। मैंने लोगों को न्याय देने के बारे में सोचा, लेकिन मैं गलत निकली- मैं बहुत भोली हूं।
मैं भारत की महिलाओं से कहना चाहती हूं कि शारीरिक शोषण के साथ जीना सीख लो, यही जिदंगी की सच्चाई है। POSH एक्ट तो बस नाम का है। अगर आपका शोषण होता है और उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई है तो भूल जाइए। इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। अगर कोई महिला सोचती है कि वह सिस्टम के खिलाफ लड़ सकती है तो जान ले कि मैं जज हो कर अपने साथ हुए शोषण का न्याय नहीं पा सकती तो आप भी नहीं पा सकते हैं। मैं आप सभी महिला को एक सलाह देना चाहती हूं कि आप एक खिलौने की तरह जीना सीख लें। news मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है।