Bhitari mandir नरवल में भीतरगांव के बेहटा बुजुर्ग में उड़ीसा शैली से अलग प्राचीन जगन्नाथ मंदिर है, जहां मानसून आने से पहले ही छत पर लगे पत्थर से बूंदे टपकना शुरू हो जाती हैं जिससे होने वाली बारिश का अंदाजा लगने के साथ ही आने वाले मानसून का भी संकेत मिल जाता है। इस बार मानसून कब आएगा, कैसी बारिश होगी, भीतरगांव ब्लाक के बेहटा बुजुर्ग गांव के चमत्कारी माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ मंदिर ने यहां के लोगों को इसका संकेत आखिरकार दे दिया। मंदिर के गुंबद में लगे पत्थरों में आई बूंदों ने मानसून के जल्द आने की आशा जगा दी है। यही नहीं पत्थर पूरी तरह भीगने से इस बार अच्छी बारिश का अनुमान है। मौसम विज्ञानी भी इस बार मानसून की अच्छी बारिश की भविष्यवाणी कर चुके हैं।
कानपुर का मंदिर बारिश की भविष्यवाणी करता है Bhitari mandir
बेहटा बुजुर्ग में भगवान जगन्नाथ का मंदिर अपने आप में रहस्य समेटे हुए है। मंदिर के गुंबद पर जड़े पत्थर में मानसून आने से पहले ही बूंदें आ जाती हैं। इन बूंदों को देख कर यहां के पुजारी अनुमान लगाते हैं कि आने वाला मानसून कैसा रहेगा? मंदिर के पुजारी के पी शुक्ला ने बताया कि इस वर्ष अभी तक कुछ बूंदे सामने आई हैं, जिससे अभी तक यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ आंधी-पानी आएगा। अभी तक अच्छी बारिश होने का अनुमान कोई नही हैं।उन्होंने बताया कि करीब महीने भर पहले भी पत्थर गीला हुआ था। परंतु बीच मे पूरी तरह सूख गया था जो क्षणिक आंधी-बारिश का संकेत थीं। मानसून से पहले यहां जब बूंदों का आकार छोटा होता है और पत्थर का एक या दो कोना ही गीला होता है तो अच्छी बारिश का संकेत नहीं होता।

बेहटा बुजुर्ग का भगवान जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा शैली से भिन्न है, वहां मंदिरों में भगवान जगन्नाथ के साथ बलदाऊ और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं होती हैं। यहां साथ में सिर्फ बलराम की छोटी प्रतिमा है। मंदिर के पीछे उकेरे गए दशावतारों में महावीर बुद्ध की जगह बलराम का चित्र है। पुरातत्व विभाग से संरक्षित इस मंदिर के निर्माण काल को लेकर भी असमंजस है। मंदिर बाहर से बौद्ध स्तूप जैसा दिखाई देता है। मंदिर की दीवारें करीब 14 फीट मोटी हैं।अणुवृत्त आकार के मंदिर का भीतरी हिस्सा 700 वर्ग फीट का है। मंदिर के सामने एक प्राचीन कुआं और तालाब है। मंदिर के बाहर बने मोर व चक्र के निशान देख कर कुछ लोग इसे चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल का बताते हैं। मंदिर के द्वार पर स्थापित अयाग पट्ट को देख कर इसे 2000 ईसा पूर्व की संस्कृति से भी जोड़ा जाता है।