Bureaucracy in Uttarakhand मोटी मोटी किताबें पढ़कर और जिंदगी के कई साल लगाकर अफसर बनने वाले साहेब जब सफेद तौलिए से लहराती घुमावदार कुर्सी पर बैठते हैं तो उन्हें लगता है कि अब उनका और उनके पद का सम्मान भी होगा और वह हाकिम भी कहलाएंगे । लेकिन आली जनाब हाले उत्तराखंड इस मिजाज से थोड़ा उलट ही है
Bureaucracy in Uttarakhand बेहतरीन IAS PCS की भी कोई कमी नहीं
Bureaucracy in Uttarakhand
Bureaucracy in Uttarakhand बालिग हो चुके इस उत्तराखंड को बीते 21 सालों में कई मुख्यमंत्री , मंत्री, विधायक और माननीय मिले जिन्होंने सचिवालय से लेकर विधानसभा तक और तहसील से लेकर जिला मुख्यालय तक अपनी सरकार अपने हिसाब से चलाई, फिर वह चाहे दुर्गम इलाकों के छोटे अफसर हो या राजधानी में मौज काटने वाले बड़े ब्यूरोक्रेट्स , इन सब पर सरकारों और उसके झंडाबरदारों का प्रभाव कभी घटा तो कभी बढ़ा है।जिसकी वजह से समय-समय पर प्रदेश की जनता ने नेताओं की अदावत और अफसरों की नाराजगी भी खूब देखी है।
Bureaucracy in Uttarakhand
Bureaucracy in Uttarakhand प्रदेश के एक बड़े कद्दावर मंत्री से जब हमने मौजूदा ब्यूरोक्रेसी और अफसरों की भूमिका पर सवाल किया तो उन्होंने तपाक से कहा कि ब्यूरोक्रेसी एक हाथी है और नेता और मंत्री महावत , जो समय-समय पर उस हाथी पर अंकुश ना लगाएं तो यह ब्यूरोक्रेसी रूपी हाथी बेलगाम हो जाता है । इसलिए इन पर अंकुश से नियंत्रण लगाना बहुत जरूरी है। वही एक और युवा मंत्री इस बारे में अलग राय रखते हैं। वह दबी जुबान कहते हैं कि अफसरों से जब काम लेने की बारी आती है तो वह सरकार की रफ्तार नहीं बल्कि अपने हिसाब से योजनाओं को आगे बढ़ाते हैं। और कभी-कभी तो मंत्रियों के आदेश को ही नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं ।
Bureaucracy in Uttarakhand यह स्थिति कभी-कभी विस्फोटक भी हो जाती है जिसका नतीजा महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य का हमारे सामने हैं , जिनकी एक वरिष्ठ आईएएस से अदावत का किस्सा मशहूर हुआ । ऐसे में यह समझने वाली बात है कि पड़ोसी राज्यों से ब्यूरोक्रेसी को लेकर कभी ऐसी खबर बाहर नहीं आती जैसी उत्तराखंड में हम महीने 2 महीने में सुना करते हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार कितना भी प्रभावशाली और दबंग क्यों ना हो ब्यूरोक्रेसी के आगे नतमस्तक सी हो जाती है या फिर सरकार ऐसे नाफरमान और अहम् ब्रह्मास्मि जैसे भाव रखने वाले ब्यूरोक्रेट्स को नजरअंदाज कर देती है।
Bureaucracy in Uttarakhand लेकिन हुजूर सच तो यह है कि इसका सीधा असर जनता और जनता से जुड़ी योजनाओं पर पड़ता है। क्योंकि सरकार और जनता के बीच यही ब्यूरोक्रेट्स एक पुल का काम करते हैं जो योजनाओं को धरातल पर उतारने के जिम्मेदार भी हैं। लेकिन सचिवालय में साहेब लोगों के दफ्तर की परिक्रमा करने वाले पहाड़ के उन विधायकों का दर्द आप क्या जाने जनता बाबू…… सरकार घोषणा करती है मोटर मार्ग बन जायेगा लेकिन बेचारे मंत्री/ विधायक जी को तो ये खूब पता है कि साहेब का जब मूड बनेगा तब सड़क बनेगी। लिहाजा शासन के दफ्तरों में रोजाना कई जन प्रतिनिधि हमे चक्कर लगाते नज़र आ जाते हैं।
Bureaucracy in Uttarakhand आखिर ऐसा मनमुटाव क्यों हैं ? ब्यूरोक्रेसी पर अक्सर सवाल क्यों उठता है ? नेता और अफसर में तालमेल क्यों नहीं बैठता है ? क्या सरकार से ब्यूरोक्रेट्स माइंड गेम खेलते हैं ? क्या धामी सरकार में भी आईएएस लॉबी हावी हो गयी है ? दरअसल जानकार इसके पीछे बड़ी वजह उन फाइलों और हितों को मानते है जो नेताजी अफसरों के ज़रिए और साहेब अपना हित सरकार के ज़रिए साधना चाहते हैं। सबकी सेटिंग है , गेटिंग है और लाइजनिंग है , लिहाजा जब कलम चलती है तो तृष्णा भी कुलांचे भरती है। परिणिति में तालमेल बिठा लिया तो ऑल इज वेल वरना मनमुटाव से मामला आरोप प्रत्यारोप तक पहुंच जाता है।
Bureaucracy in Uttarakhand यहां पुराने नेता भी एक और सच पर बेबाक बोलते हैं और वो है ठेकाप्रथा …..ठेका माने काम कराने का , फिर वो टेंडर हो , पट्टा हो ट्रांसफर हो या फ़ाइल पास कराने का सिस्टम हो , छोटे से स्टेट में ऐसे दलाल नुमा बिचौलियों की भरमार है जो सरकार और ब्यूरोक्रेसी को जमकर खोखला कर झोली भरते रहे हैं। ये दीमक आज भी राज्य में पंख पसारे दोनों खेमों में कुलांचे भरते रहते हैं। अब ऐसे में जब लक्ष्मी की कृपा चलते हुए आये तो दोनों को क्या एतराज़ लिहाजा सब चल रहा है , चलने दीजिये , बाबू को अफसर , पीसीएस को आईएएस , डॉक्टर को सीएमओ , टीचर को सुगम पोस्टिंग , खनन का पट्टा बंटाई , ज़मीन खुर्द बुर्द , जंगल कटान , नदी खुदान , फाइलों पर चढ़ावा , दलालों को बढावा सब देते है देने दीजिये हम तो धाकड़ धामी सरकार में 2025 तक सर्वोत्तम राज्य बन कर रहेंगे।
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