Carbon Dating ज्ञान और विज्ञान से जुड़ा एक अनोखा रहस्य देवभूमि में सामने आ सकता है। अल्मोड़ा जिले से 15 किलोमीटर दूर सुयाल नदी के किनारे स्थित लखुड़ियार गुफा स्थल में जल्द ही शैल चित्रों की कार्बन डेटिंग प्रक्रिया शुरू होने जा रही है, यह पहल हिमालयी क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानव सभ्यता की समयरेखा और जीवनशैली को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।

लखुड़ियार, जिसे उत्तराखंड का सबसे प्रमुख प्रागैतिहासिक स्थल माना जाता है, अपनी चट्टानों पर बने मानव, पशु और ज्यामितीय आकृतियों के लिए प्रसिद्ध है, इतिहासकारों का मानना है कि हजारों वर्ष पहले इस क्षेत्र में मानवों का जीवन बसता था और ये चित्र उस समय के जीवन, संस्कार और प्रकृति से संबंध को दर्शाते हैं।

गुफा के इन चित्रों का वैज्ञानिक विश्लेषण लखनऊ स्थित राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण प्रयोगशाला और भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर ट्रस्ट (INTACH), नई दिल्ली की संयुक्त टीम करेगी। इसके लिए क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग ने पत्राचार पूरा कर लिया है। प्रारंभिक अध्ययनों में संकेत मिले हैं कि इन चित्रों की उम्र लगभग 6,000 वर्ष हो सकती है — कुछ चित्र तो संभवतः ईसा पूर्व 4000 के भी हैं। कार्बन डेटिंग के जरिए इनकी सटीक समयरेखा और उस युग की मानव गतिविधियों का वैज्ञानिक प्रमाण मिलेगा।

पुरातत्व विभाग ने लखुड़ियार के अतिरिक्त सुयाल और कोसी नदियों के बीच तथा पिथौरागढ़ के बेरीनाग क्षेत्र में 12 समान प्रागैतिहासिक स्थलों की भी पहचान की है। इन स्थानों पर भी इसी तरह के प्राचीन चित्र और अवशेष मिले हैं। इतिहास की इस धरोहर को संरक्षण की चुनौती भी झेलनी पड़ रही है। पर्यटक अक्सर चट्टानों पर अपने नाम उकेर देते हैं, जिससे मूल चित्रों को नुकसान पहुंचता है। पुरातत्व विभाग ने यहां सुरक्षा व्यवस्था और सीमित पर्यटक पहुंच की जरूरत पर जोर दिया है।

