First Teacher हर किसी के जीवन में शिक्षक की क्या भूमिका है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है. शिक्षक का पेशा आज दुनिया का सबसे बड़ा पेशा है और पूरी दुनिया के स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वालों की संख्या 80 मिलियन से भी ज्यादा बताई जाती है. इनमें प्राइमरी, सेकेंडरी और हाईस्कूल के साथ-साथ कॉलेज-यूनिवर्सिटी के शिक्षक भी शामिल हैं. हालांकि, एक शिक्षक ऐसे भी हुए, जिनके कारण आज शिक्षक दिवस मनाया जाता है. वह थे भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन. पर क्या आपने कभी यह सोचा कि दुनिया का सबसे पहला शिक्षक कौन था?
कन्फ्यूशियस या अरस्तु थे पहले शिक्षक First Teacher

कन्फ्यूशियस एक प्राइवेट ट्यूटर थे जो इतिहास की शिक्षा देते थे. उनका जन्म 551 बीसी में चीन में हुआ था. उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है. एक शिक्षक के रूप में उनकी अहम भूमिका मिलती है. बताया जाता है कि कन्फ्यूशियस का बचपन गरीबी में बीता और वह कभी स्कूल नहीं गए. उन्होंने खुद से संगीत, इतिहास और गणित की पढ़ाई की थी. उस दौर में राजघरानों और रईस घरों के बच्चों की ही शिक्षा तक पहुंच थी., कन्फ्यूशियस चाहते थे कि हर किसी तक शिक्षा पहुंचनी चाहिए. इसलिए जो भी उनके पास पहुंचा, उन्होंने उसको पढ़ाने से गुरेज नहीं किया.भले ही कंफ्यूशियस ने कभी किसी स्कूल में नहीं पढ़ाया पर उनके शिष्यों की कोई कमी नहीं थी. इन्हीं शिष्यों ने बाद में भी कन्फ्यूशियस की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया, जिसके कारण उनको दुनिया का पहला शिक्षक माना जाता है.

384 बीसी में जन्मे ग्रीक दार्शनिक अरस्तू को भी दुनिया का पहला शिक्षक मानने वालों की कमी नहीं है. उन्होंने अपने दौर में शिक्षण के हर क्षेत्र में सिस्टमेटिक और साइंटिफिक एग्जामिनेशन की शुरुआत की. उस दौर में अरस्तू को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता था, जिसे सब पता हो. बाद में उन्हें दार्शनिक की उपाधि मिली. उन्होंने अकेले ही मेटाफिजिक्स का कॉन्सेप्ट तैयार किया.

इसी विषय पर अपनी किताब में उन्होंने बताया कि कैसे सूचना इकट्ठा की जाती है, कैसे आत्मसात की जाती है और कैसे अलग-अलग क्षेत्रों में प्रसारित की जाती है. 424/423 बीसी में जन्मे प्लेटो साल 470/469 बीसी में जन्मे सुकरात के शिष्य थे और अरस्तु ने प्लेटो के अधीन पढ़ाई की थी. अरस्तू जब 18 साल के थे तो उनको पढ़ने के लिए एथेंस में प्लेटो की अकादमी में भेजा गया था, जहां वह अगले 20 साल तक रहे. बाद में अरस्तू को मैसिडोनिया के राजा फिलिप द्वितीय ने अपने बेटे अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर महान) के पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर के रूप में नियुक्त किया था.
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