हिमाचल के सरकारी कर्मचारियों को एक दिसंबर को नहीं मिलेगा वेतन, इस दिन जारी होगी सैलरी

शिमला: आर्थिक मोर्चे पर संसाधनों की कमी झेल रहे हिमाचल प्रदेश के सरकारी कर्मियों व पेंशनर्स को इस बार पहली तारीख को वेतन व पेंशन का भुगतान नहीं होगा. कारण ये है कि पहली दिसंबर को रविवार होने के कारण अवकाश का दिन है. ऐसे में कर्मचारी वर्ग के साथ-साथ पेंशनर्स में भी ये चर्चा है कि वेतन व पेंशन का भुगतान कब होगा. राज्य सरकार को वेतन के लिए 1200 करोड़ रुपए व पेंशन के लिए 800 करोड़ रुपए की रकम प्रति माह चाहिए होती है. क्या वेतन व पेंशन का भुगतान एक साथ होगा या फिर पूर्व की तरह वेतन पहले व पेंशन बाद में जारी की जाएगी? ऐसे सवाल सचिवालय के गलियारों में तैर रहे हैं. स्थिति का आकलन करें तो सरकार वेतन बेशक पहले हफ्ते की पांच तारीख तक अदा कर दे, लेकिन पेंशनर्स को संभवत इस बार भी 9 तारीख तक की प्रतीक्षा करनी होगी.

अक्टूबर महीने में दिवाली का पर्व होने के कारण राज्य सरकार ने एडवांस में ही वेतन व पेंशन जारी कर दी थी. कारण ये था कि राज्यों को केंद्र से सेंट्रल टैक्सिज में हिस्सेदारी की एक माह की रकम एडवांस में मिली थी. राज्य को केंद्र से 1479 करोड़ रुपए मिले थे. उससे खजाने में लिक्विडिटी आई और सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों व पेंशनर्स को वेतन व पेंशन के साथ-साथ चार फीसदी डीए भी दिया था. जाहिर है, नवंबर महीने का केंद्रीय करों में हिस्सेदारी का भुगतान हो चुका है. लिहाजा अब दिसंबर महीने का शेयर आठ या नौ तारीख को आएगा. राज्य सरकार ने हाल ही में पांच सौ करोड़ रुपए का लोन लिया है. अब सरकार के पास केवल 517 करोड़ रुपए की लोन लिमिट बची है. आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च के लिए केंद्र से अतिरिक्त लोन लिमिट सेंक्शन होगी. लिहाजा, ऐसे में सचिवालय के गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि क्या इस बार समय पर वेतन मिलेगा?

क्या हैं संभावनाएं

हिमाचल सरकार को हर महीने वेतन व पेंशन के भुगतान के लिए 2000 करोड़ रुपए की जरूरत होती है. खजाने की स्थिति देखें तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर 520 करोड़ रुपए के करीब रकम राज्य के खजाने में आती है. ये ग्रांट केंद्रीय वित्त मंत्रालय से हर महीने जारी होती है. इसके अलावा राज्य सरकार के खुद के टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू के तौर पर 1200 करोड़ रुपए के करीब रकम इकट्ठा होती है. केंद्रीय करों की हिस्सेदारी के 740 करोड़ रुपए आते हैं. रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पांच तारीख को तो केंद्रीय करों में हिस्सेदारी 10 तारीख तक प्राप्त होती है. ऐसे में पहली तारीख को ही 2000 करोड़ रुपए जुटाना आसान नहीं है.

महीने के कुल राजस्व की बात करें तो 520 करोड़ प्लस, 740 करोड़, प्लस 1200 करोड़ रुपए को मिलाकर 2460 करोड़ रुपए बनते हैं. लेकिन दिक्कत ये है कि सारी रकम एकसाथ नहीं जुटती. ऐसे में वेतन तो पहले हफ्ते के आरंभ में दिया जा सकता है, लेकिन पेंशन के लिए इंतजार करना पड़ता है. सितंबर महीने में पेंशनर्स को नौ तारीख को भुगतान किया गया था. अक्टूबर महीने में अलबत्ता दिवाली से पहले 28 अक्टूबर को ही भुगतान कर दिया गया था. इससे पहले सितंबर महीने का अक्टूबर में जारी होने वाला वेतन पहली अक्टूबर को दे दिया गया था. पेंशनर्स को 9 अक्टूबर तक का इंतजार करना पड़ा था. फिर 28 अक्टूबर को वेतन व पेंशन के साथ डीए भी दिया गया.

सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने इसे उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया था कि पहली बार किसी सरकार ने एक महीने में दो वेतन दिए. उसके बाद अब नवंबर माह का दिसंबर में देय वेतन का समय आया है. राज्य सरकार में वित्त सचिव रहे आईएएस अधिकारी (रिटायर्ड) केआर भारती का कहना है कि वित्तीय लिहाज से आने वाला समय निरंतर कठिन होता जाएगा. पेंशनर्स की संख्या बढ़ेगी तो भुगतान की रकम भी बढ़ेगी. आने वाले समय में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट भी कम होती चली जाएगी. जीएसटी कंपनसेशन बंद हो चुका है. ऐसे में हर महीने पहली तारीख को वेतन व पेंशन देना आसान नहीं होगा.

वहीं, भाजपा नेता रणधीर शर्मा का कहना है कि कांग्रेस सरकार आर्थिक मोर्चे पर नाकामयाब रही है. प्रदेश में पहली बार देखने में आया कि वेतन व पेंशन का भुगतान करने में पसीने छूट रहे हैं. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भाजपा के इस आरोप को सिरे से नकारते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार ने बेहतर आर्थिक प्रबंधन का उदाहरण पेश किया है. वर्ष 2027 में राज्य आर्थिक रूप से सशक्त होगा. कांग्रेस सरकार में कोई आर्थिक संकट नहीं है और इस सरकार ने एक महीने में दो बार सैलरी व पेंशन का भुगतान भी किया है. जब खजाने में पैसा था, तभी को भुगतान किया गया. सीएम सुक्खू का कहना है कि उनकी सरकार कर्मचारी हितैषी है और सत्ता में आते ही ओपीएस का लाभ दिया है.

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