History of karnprayag : भगवान कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार कर्णप्रयाग में किया था 1 Great Truth

देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट —

History of karnprayag कर्णप्रयाग उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है | यह उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में एक प्रसिद्ध शहर और नगरपालिका बोर्ड है । कर्णप्रयाग, अलकनंदा नदी के पांच प्रसंग (पांच संगम), अलकनंदा संगम और पिंडार नदी के संगम पर स्थित है | अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर बसा शहर “कर्णप्रयाग” एक बहुत ही खूबसूरत शहर है | संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मंदिर हैं। बद्रीनाथ धाम जाते समय साधुओं , ऋषियों , मुनियों एवम् पैदल तीर्थयात्रियों को कर्णप्रयाग शहर से गुजर कर जाना होता है |


History of karnprayag देवभूमि की पहचान है कर्णप्रयाग

History of karnprayag
History of karnprayag
  • History of karnprayag कर्णप्रयाग पौराणिक समय में एक उन्नतिशील बाज़ार भी था और देश के अन्य जगह से आकर लोग यहाँ निवास करने लगे क्यूंकि यहाँ व्यापार के अवसर उपलब्ध थे | इन गतिवधियो पर वर्ष 1803 को बिरेही बाँध के टूटने के कारण रोक लग गयी | उस समय इस स्थान में प्राचीन “उमा देवी मंदिर” का भी नुकसान हुआ | कर्णप्रयाग की संस्कृति उत्तराखंड की सबसे पौराणिक एवम् अद्भुत नन्द राज जट यात्रा से जुडी है |.
  • History of karnprayag पौराणिक मान्यता या कथा के अनुसार पौराणिक समय में कर्ण ने उमा देवी की शरण में रहकर इस संगम स्थल में भगवान सूर्य की कठोर तपस्या की थी  जिससे भगवान शिव , कर्ण की तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए और भगवान सूर्य ने उन्हें अभेद्य कवच , कुंडल और अक्षय धनुष प्रदान किया था | कर्ण मंदिर इस स्थान पर स्थित होने के कारण इस स्थान पर स्नान के बाद दान करना अत्यंत पूर्णकारी माना जाता है | यह भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इसी स्थान पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था | इसलिए इस स्थान पर पितरो को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है |

  • History of karnprayag कर्णप्रयाग की अन्य कथा यह है कि जब भगवान शिव के द्वारा अपमान किये जाने पर माँ पार्वती ने अग्नि कुंड में कूद गई थी तो उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप अपना दूसरा जन्म उमा देवी के रूप में लिया और उन्होंने शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी और इसी स्थान पर माँ उमा का प्राचीन मंदिर भी है इस मंदिर की स्थापना 8वी सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा हुई | जबकि इस स्थान पर बहुत पहले से ही उमा देवी की मूर्ति स्थापित थी | कहा जाता है कि संकसेरा के एक खेत में उमा का जन्म हुआ | .
History of karnprayag
History of karnprayag
  • History of karnprayag कर्ण मंदिर संगम स्थल के बाए किनारे पर बनाया गया है , जो की कर्ण के नाम पर है | पुराने मंदिर का वर्तमान समय में पुनःनिर्माण हुआ है | और इस मंदिर में मानव के आकर से भी बड़े आकर की कर्ण एवम् भगवान कृष्ण की मूर्ति मंदिर में स्थापित है | मंदिर के अन्दर छोटे मंदिर भी स्थित है जो कि भूमिया देवता , राम , सीता एवम् लक्षमण , भगवान शिव एवम् माँ पार्वती को समर्पित है … अगर आप देवभूमि की विरासत और सम्रद्ध धरोहरों को देखना चाहते हैं तो एक बार कर्णप्रयाग ज़रूर जाइये

दुल्हन के लिए धरने पर बैठा दूल्हा ! https://shininguttarakhandnews.com/trending-wedding-video/

ShiningUttarakhandNews

We are in the field of Electronic Media from more than 20 years. In this long journey we worked for some news papers , News Channels , Film and Tv Commercial as a contant writer , Field Reporter and Editorial Section.Now it's our New venture of News and Informative Reporting with positive aproch specially dedicated to Devbhumi Uttarakhand and it's glorious Culture , Traditions and unseen pictures of Valley..So plz support us and give ur valuable suggestions and information for impressive stories here.

8 thoughts on “History of karnprayag : भगवान कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार कर्णप्रयाग में किया था 1 Great Truth

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *