History of Nainital दुनियाभर में अपनी दिलकश वादियों और शांत झीलों की अठखेलियों के लिए सैलानियों की फेवरेट डेस्टिनेशन है नैनीताल जिसका 183 वां बर्थडे अनोखे अंदाज़ में मनाया गया। आज के ही दिन 1841 में विदेशी व्यापारी पीटर बैरन ने नैनीताल की खोज की थी. व्यापारी पीटर बैरन ने अपनी किताब ‘नैनीताल की खोज’ में लिखा है कि, पीटर बैरन 1841 में इस स्थान पर घूमने आए, जो उन्हें खूब पसंद आया.
इसके बाद उन्होंने यहां पर अपना साम्राज्य स्थापित करने का फैसला किया. पीटर बैरन ने इस इलाके के थोकदार से इस सारे इलाके को खरीदना चाहते थे. पहले तो थोकदार नूरसिंह बेचने के लिए तैयार हो गए. परंतु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया. बैरन क्षेत्र से इतने प्रभावित थे कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को अपने कब्जे में लेकर सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे.
183 साल का हुआ ऐतिहासिक शहर नैनीताल History of Nainital
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि जब थोकदार नूरसिंह ने इस इलाके को बेचने से इनकार किया तो एक दिन बैरन अपनी कश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गए. और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस पूरे क्षेत्र को बेचने के लिए मुंहमांगी कीमत ले लो. लेकिन अगर तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना किया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूंगा. डूबने के भय से नूरसिंह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिए और बाद में बैरन की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया.
18 सितंबर 1880 को आए विनाशकारी भूकंप ने अंग्रजों को भी हिलाकर रख दिया था. जिसमें 151 लोग जमींदोज हो गए थे. भूकंप के कारण झील के काफी बड़े हिस्से में मलबा आ गया. जिस कारण फ्लैट्स मैदान का निर्माण हो गया. जिसमें आज विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं होती हैं. 1880 में विनाशकारी भूकंप के बाद अंग्रेजों ने इस शहर को दोबारा सहेजने की कवायद की. कमजोर पहाड़ियों को भूस्खलन से रोकने के लिए 64 छोटे-बड़े नालों का निमार्ण कराया गया. जिनकी लंबाई एक लाख 6 हजार 499 फीट है. शहर के जानकार मानते हैं कि इन्हीं नालों की वजह से शहर आज भी कायम है.नैनीताल अच्छे स्कूलों के लिए देश भर में मशहूर है. टिफिन टॉप, हिमालय दर्शन, चायना पीक कई दर्शनीय स्थल यहां मौजूद हैं. इसके अलावा दर्जनों ऐतिहासिक इमारतें आज भी ब्रिटिश काल की याद दिलाती हैं.
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