History of Nehru महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल 1930 को नमक क़ानून तोड़कर ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा का बिगुल फूंक दिया। उनकी एक आवाज़ पर सड़कों पर लाखों लोग उतरने लगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू उन दिनों काफी बीमार थीं। फिर भी वह इलाहाबाद के गवर्नमेंट कॉलेज में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ धरने पर बैठीं। लेकिन, उनका बीमार शरीर अप्रैल की चिलचिलाती धूप बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह नारे लगाते हुए बेहोश हो गईं।
History of Nehru पढ़िए एक रोचक तथ्य

History of Nehru एक नौजवान कॉलेज की दीवार पर बैठकर कमला के ओजस्वी नारों को सुन रहा था। उसने जैसे ही उन्हें गिरते देखा, फौरन दीवार से कूदकर उनकी ओर लपका। सभी छात्र कमला को उठाकर एक पेड़ के नीचे ले गए। वहां पानी मंगवाया गया। उनके सिर पर गीले कपड़े से तराई होने लगी। कोई दौड़कर हाथ वाला पंखा ले आया। वह नौजवान कमला के चेहरे पर पंखा करने लगा। जब कमला को होश आया, तो वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर कमला को उनके घर यानी आनंद भवन ले गया। इसके बाद कमला नेहरू जहां भी जातीं, वह नौजवान उनके साथ साये की तरह होता।

History of Nehru उस नौजवान का नाम था, फिरोज़ जहांगीर गांधी (Feroze Jehangir Gandhi)। यहां यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि फिरोज़ भारत के पारसी अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य थे। वह फारसी शरणार्थियों के वंशज थे, जो सातवीं सदी में मुस्लिम उत्पीड़न से भागे थे। उनका महात्मा गांधी से कोई संबंध नहीं था।
History of Nehru फिरोज़ पर क्यों शक करने लगे थे नेहरू?

History of Nehru फिरोज़ ने कमला के साथ आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। उनकी कमला से घनिष्ठता इतनी बढ़ गई कि उन दोनों को लेकर तरह-तरह की अफवाहें भी उड़ने लगीं। कुछ शरारती किस्म के लोगों ने दोनों के पोस्टर भी लगा दिए। उस वक़्त जवाहरलाल नेहरू जेल में थे। यह बात उन तक भी पहुंची। उन्होंने अपने करीबी दोस्त और स्वतंत्रता सेनी रफी अहमद किदवई (Rafi Ahmed Kidwai) को मामले का पता लगाने के लिए इलाहाबाद भेजा। किदवई ने पाया कि दोनों के रिश्ते के बारे में फैलाई जा रही अफवाहों में कोई दम नहीं।

History of Nehru इसी बीच, फिरोज़ की नजदीकी नेहरू की बेटी प्रियदर्शिनी यानी इंदिरा से बढ़ने लगी। फिरोज़ ने साल 1933 में इंदिरा से शादी की इच्छा जताई। उस वक़्त इंदिरा की उम्र तकरीबन 16 साल थी। इसलिए कमला ने इंदिरा की उम्र और फिरोज़ के धर्म का हवाला देते हुए रिश्ते को रजामंदी नहीं दी। नेहरू भी दोनों के रिश्तों के ख़िलाफ़ थे। उनकी बहनें भी यह शादी नहीं चाहती थीं। लेकिन, नेहरू परिवार की तमाम आपत्तियों के बावजूद साल 1942 में फिरोज़ और इंदिरा की शादी हो गई। हालांकि, नेहरू ने यह सुनिश्चित किया कि इस शादी में किसी का धर्म परिवर्तन न हो, क्योंकि इसे वह अपने उसूलों के ख़िलाफ़ मानते थे।
History of Nehru फिरोज़-इंदिरा का रिश्ता क्यों खराब हुआ?

History of Nehru फिरोज़-इंदिरा दुनिया से लड़-झगड़कर एक हुए, लेकिन सालभर के भीतर ही दोनों में अनबन शुरू हो गई। इंदिरा ने फिरोज़ के बजाय अपने पिता के साथ रहना शुरू कर दिया। इसमें कहीं न कहीं दोनों की पृष्ठभूमि की बड़ी भूमिका रही होगी। फिरोज़ जहां सामान्य परिवार से आते थे, वहीं इंदिरा के पिता और दादा मोतीलाल नेहरू नामी वकील थे। उस वक़्त नेहरू भले ही प्रधानमंत्री नहीं थे, लेकिन उनका रहन-सहन राजसी ही था। यही परवरिश दोनों के रिश्तों के बीच आई होगी, क्योंकि फिरोज़ अक्खड़ स्वभाव के थे। इसकी झलक शादी के कुछ साल बाद के एक वाकये से भी मिलती है।

History of Nehru फिरोज़ अपने दोनों बेटों- राजीव और संजय को बढ़ईगिरी सिखा रहे थे। तभी वहां उनके दोस्त पहुंचे और कहने लगे कि ये दोनों इतने रईस हैं, इन्हें बढ़ईगिरी सीखने की क्या ज़रूरत? फिरोज़ ने कहा, ‘रईस इनकी मां है, बाप नहीं। इसीलिए मैं अपने बेटों को मेहनत-मजूरी सब सिखा रहूं, ताकि कल को इनपर कोई मुसीबत आए, तो ये अपना गुजर-बसर आसानी से कर सकें।’
History of Nehru इंदिरा जब अपने पिता के साथ रहने चली गईं, तो फिरोज़ का नाम कई महिलाओं के साथ जोड़ा जाने लगा। कहा जाता है कि इसकी वजह उनका अकेलापन था। वह खूबसूरत थे, बोलने में उनका कोई सानी नहीं था। हंसी-मज़ाक़ भी अच्छा कर लेते थे। ऐसे में महिलाएं उनकी ओर खिंची चली आतीं। नेहरू कैबिनेट की मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा से फिरोज़ की नजदीकियां काफी चर्चा में रहीं। इंदिरा इसी वजह से तारकेश्वरी को काफी नापसंद करती थीं। नेहरू परिवार की एक लड़की नैशनल हेरल्ड में उनके साथ काम करती थी। उसके साथ भी फिरोज़ के रिश्तों के बारे में अफवाहें उड़ीं। फिरोज़ के करीबी मित्रों का भी मानना था कि वह महिलाओं के मामले में काफी ‘ढीले’ थे।
History of Nehru इन सारी बातों ने जाहिर तौर पर नेहरू को काफी विचलित किया। इसी बीच फिरोज़ की लखनऊ में एक मुस्लिम मंत्री की बेटी से नजदीकी काफी बढ़ गई। कहा तो यहां तक जाने लगा था कि फिरोज़ उससे शादी करने के लिए इंदिरा को तलाक देने को भी तैयार हो गए थे। ऐसे में प्रधानमंत्री नेहरू ने अपनी बेटी और दामाद को समझाने के लिए किदवई को भेजा। काफी मान-मनौव्वल के बाद यह मामला सुलझा। इसके बाद से ससुर-दामाद के बीच की खाई और चौड़ी हो गई।

History of Nehru आज़ादी के बाद पहले आम चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। उस समय एक सशक्त विपक्ष का अभाव था, जो सरकार के कामकाज पर सवाल उठाता। इस कमी को फिरोज़ ने पूरा किया, वह भी कांग्रेस में रहकर। फिरोज़ हमेशा से विद्रोही स्वभाव के थे। साल 1930 में उन्होंने कांग्रेस स्वतंत्रता सेनानियों की शाखा वानर सेना का गठन किया था। साथ ही वह पत्रकार भी थे। उन्होंने बतौर पत्रकार नैशनल हेराल्ड और नवजीवन समाचार पत्रों के प्रकाशक के रूप में काम किया। साल 1952 में पहले आम चुनाव हुए, तो फिरोज़ रायबरेली से चुनकर संसद पहुंचे।
History of Nehru कांग्रेसी सांसद होने के बावजूद वह नेहरू सरकार की जमकर आलोचना करते। उन्होंने जीप घोटाले से लेकर हरिदास मूंदड़ा घोटाले को बड़े जोर-शोर से उठाया। दरअसल, मूंदड़ा ने सरकारी कंपनी लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के शेयर खरीदने में भारी घोटाला किया। इसे संसद में उठाने वाले पहले शख़्स थे फिरोज़। उनके तीखे सवालों के आगे नेहरू को झुकना पड़ा। उन्होंने एक जांच कमिटी बनाई। विशेष जांच शुरू हुई और केवल 24 दिन में ही इसका फैसला आ गया। हरिदास मूंदड़ा को 22 साल जेल की सजा हुई और तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी, केंद्रीय वित्त सचिव एचएम पटेल और एलआईसी के चेयरमैन को अपने पद से हटना पड़ा। वित्त मंत्री कृष्णामाचारी तो नेहरू के सबसे करीबियों में गिने जाते थे।
History of Nehru नेहरू भले ही फिरोज़ का नापसंद करते थे, लेकिन वह उनकी ताकत को अच्छे से जानते थे। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने अपनी आत्मकथा ‘द स्टोरी ऑफ माई लाइफ’ (The story of my life) में लिखा है कि दो या तीन बार ऐसे मौके आए, जब नेहरू कुछ फैसले लेने से घबराए, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे फिरोज़ नाराज़ हो सकते हैं।

History of Nehru फिरोज़ हार्ट पेशेंट थे। उन्हें साल 1957 में पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उसके बाद उनकी सेहत लगातार बिगड़ती गई। इंदिरा गांधी को 7 सितंबर को 1960 को पता चला कि फिरोज़ को फिर दिल का दौरा पड़ा है और उनकी तबीयत बहुत नाजुक है। फिरोज़ रह-रहकर बेहोश हो जाते। होश में आने पर एक ही सवाल पूछते, ‘इंदु (इंदिरा गांधी) कहां है?’ इंदिरा तुरंत वेलिंगटन हॉस्पिटल गईं, जहां फिरोज़ का इलाज चल रहा था। वह पूरी रात उनके बगल में बैठी रहीं। अगले दिन सुबह 8 बजे के करीब फिरोज़ ने आखिरी सांस ली। उनकी मौत पर उमड़ी भीड़ को देखकर नेहरू ने कहा था, ‘मुझे नहीं पता था कि लोग फिरोज़ को इतना पसंद करते हैं।’
History of Nehru मशहूर लेखक डॉम मोरेस ने (Dom Moraes) एक इंटरव्यू के दौरान इंदिरा से पूछा कि उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ किसकी मौत से हुई। इंदिरा का जवाब था, ‘फिरोज़ की मौत से।’ इंदिरा का कहना था, ‘मैंने अपनी आंखों के सामने अपने माता-पिता और दादा को मरते देखा, लेकिन फिरोज़ की मौत इतनी अचानक हुई कि मैं अंदर तक हिल गई।’ इंदिरा और फिरोज़ का रिश्ता काफी जटिल था। लेकिन, इंदिरा ने उसे एकदम सरल शब्दों में समझाया। उन्होंने कहा, ‘मैं फिरोज़ को पसंद नहीं करती थी, लेकिन मैं उनसे प्यार करती थी।’
History of Nehru क्या फिरोज़ के साथ नाइंसाफी हुई?
History of Nehru कई लोगों का मानना है कि फिरोज़ ने नेहरू परिवार का दामाद बनने की कीमत चुकाई। उन्होंने 1930 में पढ़ाई छोड़ दी और आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उसी साल फिरोज़ को 19 महीने की सजा हुई। उन्होंने यह सजा फैजाबाद जेल में काटी, जहां उन दिनों लाल बहादुर शास्त्री भी बंद थे। वह किसानों के अधिकारों के लिए चल रहे आंदोलन में भी शामिल हुए। उन्हें फिर दो बार जेल जाना पड़ा। शादी के कुछ ही महीनों बाद ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान भी उन्हें जेल में डाला गया। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी एक वक़्त उनके बारे में कहा कि अगर मेरे पास फिरोज़ जैसे सात लड़के हो जाए, तो मैं सात दिनों में भारत को स्वराज दिला सकता हूं।
History of Nehru फिरोज़ की आत्मकथा ‘फिरोज़ द फॉरगोटेन गांधी’ लिखने वाले बर्टिल फॉक (Feroze The Forgotten Gandhi Book by Bertil Falk) के मुताबिक, इन सबके बावजूद फिरोज़ को कांग्रेस में अपने हिस्से की जगह नहीं मिली। इसके लिए इंदिरा जिम्मेदार थीं, क्योंकि शायद वह अपने पति को अपनी महत्वाकांक्षा के आड़े नहीं आने देना चाहती थीं। यही दोनों के संबंध खराब होने की वजह भी थी।
राजयोग के निशान https://shininguttarakhandnews.com/palmistry-and-fortune/

नोट – खबर मीडिया लेख और पुराने आर्टिकल्स पर आधारित है।
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