Indian Marriage एक ऐसा रिश्ता जहां दो लोग जीवन के सफर में एक-दूसरे का हाथ थाम कर साथ चले हैं, इसे शादी कहते हैं। लेकिन कई भारतीय शादियों में लड़का-लड़की के मन से लिया गया फैसला कम और पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट ज्यादा लगती है। धर्म और कर्म की बातें करके पैरेंट्स अपने बच्चों की शादी कराते हैं। इस शादी में प्रेम कही भी नहीं होता है। लेकिन कई बार रिश्तों की साझेदारी के बजाय मजबूरी बना देते हैं। तो सवाल है कि क्या शादी को लेकर नजरिया बदलने की जरूर है?
धर्म: अपेक्षाओं का बोझ
भारतीय संस्कृति में धर्म हर चीज की नींव माना जाता है। यह सही करने, जिम्मेदारियां निभाने और समाज में संतुलन बनाए रखने की बात करता है। यह विचार सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन तब तक जबतक यह एक बोझ न बन जाए। शादी(Indian Marriage) के बाद कपल का रिश्ता केवल उनका नहीं रह जाता है,बल्कि यह फैमिली, समाज और परंपराओं के अधीन हो जाता है। शादी केवल दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि सोशल कॉन्ट्रैक्ट बनकर रह जाता है। कपल पर ठीक से परफॉर्मेंस करने की जिम्मेदारी बन जाती है। इसी की वजह से अरेंज मैरेज टिके तो रहते हैं, लेकिन उसमें खुशी का अभाव होता है। अनबन के बावजूद भी आप शादी खुद की मर्जी से नहीं तोड़ सकते हैं क्योंकि यह पूरे समाज की व्यवस्था को चुनौती देती है। माता-पिता को निराश करना, समाज की नजरों में गिरना और परंपराओं को तोड़ना किसी अपराध से कम नहीं माना जाता। इसलिए लोग बने रहते हैं। जबकि को ताउम्र अंदर से खुश नहीं होते हैं।
2. कर्म: भाग्य का भ्रम
शादी(Indian Marriage) के बाद अगर आप खुश नहीं होते हैं, लड़का-लड़की में से कोई खराब निकलता है तो फिर फैमिली या समाज अपने ऊपर कुछ लेने की बजाय यह कहते हैं कि यह पिछले कर्मों का परिणाम है। यह तुम्हारा भाग्य है।तुमने पिछले जन्म में कुछ किया होगा, इसलिए यह भुगतना पड़ रहा है। यह तुम्हारी परीक्षा है। जैसी बातें सुनने को मिलती है। ऐसी शादी सिर्फ निभाई जाती है। प्रेम, समझ और आपसी डेवलपमेंट सब पीछे छूट जाते हैं। ध्यान खुशी पर नहीं, बल्कि सहने की क्षमता पर चला जाता है। धर्म और कर्म के बीच शादी कुछ लोगों के लिए बोझ बनकर रह जाती है।
धर्म और कर्म को मानना गलत नहीं है, लेकिन शादी में इसे तब लागू करें जब लड़का और लड़की दोनों तैयार हों। उनके साथ बातचीत करें अगर वो अरेंज मैरिज के लिए रेडी है तो फिर आगे बढ़ें। इतना ही नहीं अरेंज मैरिज में भी लड़का और लड़की को एक दूसरे को समझने का मौका दें। फिर धार्मिक तरीके से उनका विवाह कराएं। अगर बच्चा प्रेम विवाह करना चाहता है तो उस तरफ भी देखें और उसके नजरिए से समझने की कोशिश करें।