Katarmal Sun Temple: अल्मोड़ा के कटारमल की रोचक कहानी

Katarmal Sun Temple उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका प्राचीन इतिहास है. अल्मोड़ा से तकरीबन 18 किलोमीटर की दूरी पर है प्राचीन सूर्य मंदिर कटारमल. यह मंदिर 9वीं सदी का बताया जाता है, जो कत्यूरी शासक कटारमल देव के द्वारा बनाया गया था. मान्यताओं के अनुसार, यहां पर कालनेमि राक्षस का आतंक रहता था, तो यहां के लोगों ने भगवान सूर्य का आह्वान किया. भगवान सूर्य बरगद में विराजमान हुए तब से लेकर आज तक यहां उन्हें बड़ा आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. गौरतलब है की कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 में हुआ था.

Katarmal Sun Temple

सूर्य मंदिर(Katarmal Sun Temple) दो ही जगह पर स्थापित है ओडिशा के कोणार्क में दूसरा अल्मोड़ा में स्थित सूर्य मंदिर कटारमल में स्थापित है. यहां पर भगवान बड़ा आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है, जो गर्भ गृह में ढककर रखी गई है. यहां पर स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ देश-विदेश के पर्यटक भी यहां पर आकर भगवान के दर्शन करते हैं. इस मंदिर में साल में दो बार सूर्य की किरणें भगवान की मूर्ति पर पड़ती है. 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को सुबह के समय यह देखने को मिलता है. जिसको देखने के लिए लोग यहां पर पहुंचते हैं.

परिसर में छोटे-बड़े 45 मंदिर

इस परिसर में छोटे-बड़े मिलाकर 45 मंदिर हैं. पहले इन मंदिरों में मूर्तियां रखी थीं, जिनको अब गर्भ गृह में रखा गया है. बताया जाता है कि कई साल पहले मंदिर में चोरी हो गई थी, जिस वजह से अब सभी मूर्तियों को गर्भ गृह में रखा गया है. इस मंदिर में चंदन का दरवाजा हुआ करता था, जो दिल्ली म्यूजियम में रखा गया है. स्थानीय लोगों की मांग उठती रही है कि उसे दोबारा मंदिर में लगाया जाना चाहिए.

Katarmal Sun Temple

सूर्य मंदिर(Katarmal Sun Temple) में है पॉजिटिव एनर्जी

बेंगलुरु से आईं श्रद्धालु ने बताया कि वह पहली बार इस मंदिर में आई हैं और यहां पर आकर उन्हें बहुत अच्छा लगा है. इस मंदिर में पॉजिटिव एनर्जी है. यहां के पुजारी ने बताया कि साल में दो बार सूर्य की किरण भगवान सूर्य की मूर्ति में पड़ती है और यह मंदिर काफी प्राचीन है.स्थानीय निवासी ने बताया कि साल में दो बार यहां पर सूर्य की किरणें गर्भ गृह में रखी मूर्ति में पड़ती है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण और उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर सूर्य होता है, तब यह देखने को मिलता है. जिसको देखने के लिए सुबह के वक्त काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं. इसके अलावा पौष माह के आखिरी रविवार में यहां पर भव्य भंडारा कराया जाता है, जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं.

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