Kalki Avatar : कल्कि और कलयुग के अंत का रहस्य  !

Kalki Avatar श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंध के 24वें श्लोक के अनुसार, जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान कल्कि का जन्म होगा. कल्कि का अवतरण सावन महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा. यही कारण है कि, हर साल इस तिथि को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है. श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. इसके अनुसार, कलयुग के अंत में जब पाप बढ़ जाएगा, तब कल्कि अवतार में जन्म लेकर भगवान पापियों का संहार करेंगे और फिर से धर्म की स्थापना करेंगे. इसके बाद सतयुग की शुरुआत होगी.

64 कलाओं से परिपूर्ण होगा भगवान का कल्कि अवतार Kalki Avatar

 


परीक्षित्! कलिकाल के दोष से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोग ग्रस्त होने लगेंगे. वर्ण और आश्रमों का धर्म बतलाने वाला वेद-आर्ग नष्टप्राय हो जायगा. धर्म में पाखंड की प्रधानता हो जायगी. राजे-महाराजे डाकू-लुटेरों के समान हो जाएंगे. मनुष्य चोरी, झूठ तथा निरपराध हिंसा आदि नाना प्रकार के कुकर्मों से जीविका चलाने लगेंगे. चारों वर्णों के लोग एक समान हो जाएंगे. गौएं बकरियों की तरह छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएंगी. वानप्रस्थी और संन्यासी आदि विरक्त आश्रम वाले भी घर-गृहस्थी जुटाकर गृहस्थों का-सा व्यापार करने लगेंगे. जिनसे विवाहित सम्बन्ध है, उन्हीं को अपना सम्बन्धी माना जायगा. धान, जौ, गेहूं आदि धान्यों के पौधे छोटे-छोटे होने लगेंगे. वृक्षों में अधिकांश शमी के समान छोटे और कंटीले वृक्ष ही रह जाएंगे. बादलों में बिजली तो बहुत चमकेगी, परन्तु वर्षा कम होगी. गृहस्थों के घर अतिथि-सत्कार या वेदध्वनि से रहित होने के कारण अथवा जनसंख्या घट जाने के कारण सूने-सूने हो जाएंगे. परीक्षित्! अधिक क्या कहें- कलियुग का अन्त होते-होते मनुष्यों का स्वभाव गधों-जैसा दुःसह बन जाएगा. लोग प्रायः गृहस्थी का भार ढोने वाले और विषय हो जाएंगे.


ऐसी स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिये सत्वगुण स्वीकार करके स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे. प्रिय परीक्षित्! सर्वव्यापक भगवान विष्णु सर्वशक्तिमान् हैं. वे सर्वस्वरूप होने पर भी चराचर जगत् के शिक्षक – सद्गुरु हैं. वे साधु – सज्जन पुरुषों के धर्म की रक्षा के लिये, उनके कर्म का बन्धन काटकर उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं. उन दिनों उत्तर प्रदेश के संभल में विष्णुयश नाम के श्रेष्ठ ब्राम्हण होंगे. उनका हृदय बड़ा उदार एवं भगवद्भक्ति से पूर्ण होगा. उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे. श्री भगवान ही अष्टसिद्धियों के और समस्त सद्गुणों के एकमात्र आश्रय हैं. समस्त चराचर जगत् के वे ही रक्षक और स्वामी हैं. वे देवदत्त नामक शीघ्रगामी घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतारकर ठीक करेंगे. उनके रोम-रोम से अतुलनीय तेज की किरणें छिटकती होंगी. वे अपने शीघ्रगामी घोड़े से पृथ्वी पर सर्वत्र विचरण करेंगे और राजा के वेष में छिपकर रहने वाले कोटि-कोटि डाकुओं का संहार करेंगे.


प्रिय परीक्षित्! जब सब डाकुओं का संहार हो चुकेगा, तब नगर की और देश की सारी प्रजा का हृदय पवित्रता से भर जायगा; क्योंकि भगवान कल्कि के शरीर में लगे हुए अंगराज का स्पर्श पाकर अत्यन्त पवित्र हुई वायु उनका स्पर्श करेगी और इस प्रकार वे भगवान के श्रीविग्रह की दिव्य गन्ध प्राप्त कर सकेंगे. उनके पवित्र हृदय में सत्यमूर्ति भगवान वासुदेव विराजमान होंगे और फिर उनकी सन्तान पहले की भाँति ह्रष्ट-पुष्ट और बलवान् होने लगेगी. प्रजा के नयन-मनोहारी हरि ही धर्म के रक्षक और स्वामी हैं. वे ही भगवान जब कल्कि के रूप में अवतार ग्रहण करेंगे, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ हो जायगा और प्रजा की सन्तान-परम्परा स्वयं ही सत्वगुण से युक्त हो जायगी. जिस समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय एक ही साथ पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में प्रवेश करके एक राशि पर आते हैं, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ होता है.

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