Mediterranean diet उम्र बढ़ाने का फार्मूला – मृत्यु का जोखिम कम

Mediterranean diet  महिलाओं में मेडिटेरेनियन डाइट मृत्यु का जोखिम कम कर सकती है। एक नवीन चिकित्सा अध्ययन के मुताबिक, स्वास्थ्य के लिए इसे अच्छा माना जाता है। पौधा आधारित इस आहार में फल-सब्जियां ज्यादा खाई जाती हैं और दुग्ध उत्पाद, अंडा-मीट व प्रोसेस्ड फूड से परहेज किया जाता है। इसमें चीनी या नमक का इस्तेमाल भी बहुत कम होता है।
लंबे समय तक इसका सेवन कई तरह के स्वास्थ्य जोखिमों को कम करता है। 25 हजार से भी ज्यादा अमेरिकी महिलाओं पर हुए अध्ययन में पता चला है कि मेडिटेरेनियन डाइट का सेवन करने वाली महिलाओं में समय से पहले मृत्यु के जोखिम में 23 फीसदी तक गिरावट लाई जा सकती है। यह आहार कोलेस्ट्रॉल, मोटापा और इंसुलिन प्रतिरोध के साथ-साथ मधुमेह और हृदय रोग सहित चयापचय संबंधी बीमारियों का जोखिम भी कम करता है।

आहार में मेवा साबुत अनाज भी Mediterranean diet


शोधकर्ताओं के मुताबिक, मेडिटेरेनियन डाइट में फल-सब्जियों की भूमिका काफी अहम है। इसमें मेवा, साबुत अनाज और फलियां शामिल हैं। इसके अलावा स्प्राउट्स, पालक, फूलगोभी, गाजर, प्याज, टमाटर, ब्रोकोली, खीरा, नींबू, मशरूम, सरसों के अलावा फलों में अनार, केला, सेब, संतरा, अंजीर, खरबूजा, तरबूज, नाशपाती, बेरीज, स्ट्रॉबेरी, लीची का सेवन किया जा सकता है। साबुत अनाज में मक्का, होल वीट, ब्राउन राइस, राई, ओट्स शामिल हैं।

हर तरह से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी…

अमेरिकी शोधकर्ता प्रो. शफकत अहमद ने बताया कि इस अध्ययन में 45 वर्ष की महिलाओं से जानकारियां एकत्रित की गई। उनसे वजन, ऊंचाई और बॉडी मास इंडेक्स के साथ-साथ अपनी जीवनशैली, चिकित्सा और सामाजिक इतिहास के बारे में जानकारी ली गई। इस बीच उनका रक्तचाप भी मापा गया। शोधकर्ताओं ने लिपिड और इंसुलिन प्रतिरोध सहित चयापचय के 30 से अधिक बायोमार्कर का मूल्यांकन किया। इन सभी के विश्लेषण के आधार पर शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि मेडिटेरेनियन डाइट महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काफी बेहतर है।


स्तन कैंसर, मधुमेह से बचाने में भी संभव

हाल ही में मेडिटेरेनियन डाइट को लेकर एक और अध्ययन सामने आया, जिसमें पता चला है कि इसे लेने स्तन कैंसर, मधुमेह के साथ साथ मेमोरी लॉस जैसी गंभीर स्थितियों से बचा जा सकता है। पिछले कुछ समय से मेडिटेरेनियन डाइट ने दुनियाभर में काफी चर्चाएं बटोरी हैं। इस आहार को डॉक्टरों ने भी मान्यता दी है और अब तक अलग-अलग चिकित्सा अध्ययनों में इसके प्रभावों का वैज्ञानिक तौर पर पहचान भी हुई है।

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