Muslim Women supported UCC मुस्लिम महिलाओं ने 25 शर्ते रखी

Muslim Women supported UCC उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सबसे बड़ी उपलब्धि है यूसीसी , भाजपा और केंद्र सरकार का सबसे बड़ा फैसला है यूसीसी जिसको लेकर बीते शीतकालीन सत्र में यूसीसी लागू करने का ऐलान कर दिया था। जल्द की इसे लागू करने के लिए गृह मंत्रालय आवश्यक प्रॉसेस शुरू कर सकता है। मुस्लिम समाज के यूसीसी के विरोध की आशंकाओं के बीच महाराष्ट्र में मुस्लिम महिलाओं ने नई पहल की है। मुंबई की एक मुस्लिम महिला संगठन ने यूसीसी का पुरजोर समर्थन कर केंद्र सरकार के कदम की सराहना की है। हालांकि, मुस्लिम महिला संगठन ने अपने समर्थन के लिए 25 मांगें भी सामने रखी है।

संगठन ने ऐलान किया है कि अगर उनकी 25 मांगों को सरकार मान लेती है तो वे लोग इसका पूरा समर्थन करेंगे। मुस्लिम महिला संगठन ने सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी मांगों का पुलिंदा सार्वजनिक किया। इन मांगों में बहुपत्नी प्रथा, हलाला, तलाक, कस्टडी, प्रॉपर्टी संबंधित कई प्रमुख मांगे है।

 

आइए जानते हैं क्या है 25 मांग? Muslim Women supported UCC

दुल्हन की मर्जी और सहमति के बिना निकाह को पूरा नहीं माना जाए।
निकाह दो व्यस्कों के बीच एक करार माना जाए न कि एक संस्कार।
सभी मुस्लिम निकाह को रजिस्टर्ड कराया जाए।
निकाहनामा या इकरारनामा के लिए एक अथॉराइज्ड डॉक्यूमेंट होना चाहिए।
निकाह के समय दूल्हे की सालाना आमदनी को मेहर के रूप में मिलनी चाहिए।
काजी का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए, केवल रजिस्टर्ड काजी ही निकाह कराने का हकदार हो।
महिला काजियों का रजिस्ट्रेशन भी प्राथमिकता से हो।

काजी की जिम्मेदारियां भी स्पष्टता के साथ तय होनी चाहिए।
अनियमित विवाहों के लिए नियम बनाए जाएं। यह वह विवाह हैं जो बिना गवाह, काजी के या मेहर के बिना किया जाता है।
बहुविवाह को अवैध करार दिया जाए।
मुस्लिमों में भी बाल विवाह को अवैध करार दिया जाए।
हलाला, मिस्यार, मुता विवाहों को अवैध करार दिया जाए।
महिलाओं के पक्ष में तलाक के तरीकों फस्ख, खुला या मुबारा को शामिल किया जाए।
तलाक-ए-अहसन महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए होना चाहिए।
कोर्ट में या कोर्ट के बाहर तलाक को नियमित किया जाए।

अगर कोई मुस्लिम अपना धर्म त्यागता है या अन्य धर्म में परिवर्तन करता है तो उसका निकाह समाप्त न किया जाए।
इद्दत के दौरान महिलाओं पर शादी के अलावा कोई दूसरा रोकटोक न लागू किया जाए। उसे परिवार में या बाहर कामकाज की आजादी होनी चाहिए।
मुस्लिम महिलाओं को अपने बच्चों की कस्टडी के लिए तलाक या विधवा होने के बाद भी समान कानून होना चाहिए।
माता-पिता के धर्म परिवर्तन के बाद भी कस्टडी पर कोई असर नहीं होना चाहिए।
जेजे कानून के तहत मुस्लिमों को भी गोद लेने की अनुमति मिले।
विवाह के तहत भरणपोषण कानून होना चाहिए।
वैवाहिक संपत्ति में हिस्सेदारी के साथ विरासत के हकों में भी बराबरी होनी चाहिए।
पारिवारिक कानून के तहत मसलों को सुलझाने के लिए मध्यस्थ या काजी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए।

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