Naga Sadhu देश दुनिया को हैरान करने वाले सबसे बड़े मानव मेला महाकुम्भ का सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं नागा सन्यासी और अद्भुत होती है उनकी ज़िंदगी जिसको जानने की उत्सुकता सभी को होती है। नागा साधु वे होते हैं जो सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह मुक्त होकर भगवान भोलेनाथ की पूजा में लीन रहते हैं। नागा साधु एक तपस्वी जीवन जीते हैं। वे दुनिया की सभी चीजों का त्याग करके पवित्रता और साधना की मिसाल पेश करते हैं। वैसे तो नागा साधुओं के पास आध्यात्मिक शक्ति और भक्ति के अलावा कुछ नहीं होता, क्योंकि नागा का शाब्दिक अर्थ ‘खाली’ होता है। लेकिन 17 श्रृंगार ऐसे होते हैं जो नागा साधुओं के पास जरूर होते हैं। आइए जानते हैं इन श्रृंगारों के बारे में।
ये हैं नागा साधुओं के 17 श्रृंगार Naga Sadhu
लंगोट– नागा साधुओं की ललोट सामान्य ललोट से अलग होती है। भगवा रंग की ललोट में जंजीर से बंधा चांदी का टोप होता है।
भभूत– जिस तरह भगवान शिव श्मशाम की भस्म शरीर पर मलते हैं। उसी तरह नागा साधु भी शरीर पर श्मशाम की राख यानी भभूत मलते हैं।
चंदन- भगवान शिव को चंदन का तिलक लगाया जाता है क्योंकि शिवजी के गले में सर्प होता है। साथ ही शिवजी ने विषपान भी किया था इसलिए विष की तीव्रता को कम करने के लिए शीतलता के लिए शिव को चंदन अर्पित किया जाता है। इस कारण से नागा साधु भी बाजू और माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं।
रुद्राक्ष की माला– नागा साधु कई रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं। वे गले के अलावा बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं।
तिलक– नागा साधु हमेशा माथे पर लंबा तिलक धारण करते हैं, जो कि शिव भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
काजल– नागा साधु आंखों का श्रृंगार भी करते हैं। वे आंखों में काजल या सूरमा लगाते हैं।
ड्डूलों की माला– नागा साधुओं के कमर में ड्डूलों की माला पहनी देखी जा सकती हैं, वो भी उनके श्रृंगार का एक हिस्सा ही है।
पैरों में कड़े- साधु अपने पैरों में लोहे या चांदी का कड़ा पहनते हैं। कई बार इनमें घुघरूं भी लगे होते हैं।
चिमटा– नागा साधु हमेशा हाथ में चिमटा रखते हैं। चिमटे का प्रयोग वे कई कार्यों के लिए करते हैं। जरुरत पड़ने पर चिमटे का अस्त्र के रूप में प्रयोग भी करते हैं।
डमरू– शिव भक्त नागा साधु डमरू को भी हमेशा अपने साथ रखते हैं। भगवान शिव की स्तुति करते समय नागा साधु डमरू बजाते हैं।
कमंडल– नागा साधु अपने हाथों में हमेशा कमंडल रखते हैं। इस कमंडल में गंगाजल और पानी होता है। यात्रा के दौरान इसी कमंडल से जल भी ग्रहण करते हैं।
जटाएं– नागा साधु गुथी हुई जटाओं को विशेष प्रकार से संवारते हैं। नागा साधु इन जटाओं को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से रखते हैं।
अंगूठी– नागा साधु हाथों में कई प्रकार की अंगुठियां पहनते हैं। हर एक अंगूठी किसी न किसी बात का प्रतीक होती है।
पंच केश– नागा साधु सामान्य तरीके से केश नहीं बांधते बल्कि बालों की लटों को 5 बार घूमा कर लपेटा जाता है, इसे पंचतत्व की निशानी माना जाता है।
कड़ा– नागा साधुओं के इस आभूषण का भी विशेष महत्व है। हाथों में कड़ा पीतल, तांबें, सोने या चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं।
रोली का लेप– नागा साधु अपने माथे को खाली नहीं रखते हैं। माथे पर भभूत के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं।
कुंडल– नागा साधु कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल धारण करते हैं। इन कुंडलों को सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है।
मोह माया छोड़ चुके नागा साधु क्यों करते हैं 17 श्रृंगार
नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं और सांसरिक मोह माया को त्यागकर भगवान भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहते हैं। नागा साधुओं को इसलिए नागा कहा जाता है क्योंकि नागा का अर्थ खाली होता है। इसका अर्थ है कि नागा साधु केवल भक्ति और अध्यात्म के ज्ञान के अलावा बाकी चीजों को शून्य मानते हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि इन चीजों के अलावा इनका जीवन खाली है, सभी मोह माया से परे हैं लेकिन भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहते हुए नागा साधु 17 तरह का श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं। पौराणिक मान्यता है कि नागा साधु के इन 17 श्रृंगार शिवभक्ति का प्रतीक हैं।