देहरादून से अनीता तिवारी की विशेष रिपोर्ट –
Uttarkashi tunnel rescue काली गुफा खुल जाएगी , ज़िंदगियाँ भी बच जायेंगी , आस और उम्मीद नहीं टूटेगी , ज़िंदगी की डोर भी नहीं छूटेगी लेकिन हलक में सांस अटका देने वाले मौत के दरवाज़े पर कंपा देने वाले इन दिनों का गुनहगार क्या बेनक़ाब हो पायेगा ? क्या ज़िंदगी को दांव पर लगाकर पहाड़ काटने और सुरंग खोदकर फरार्टेदार सैरगाह बनाने वालों के आंसुओं का हिसाब हो पायेगा ? क्या भविष्य में जुगाड़ , जोड़तोड़ , पहुँच और धनबल से करोड़ों का प्रोजेक्ट कब्ज़ाने वालों की कुम्भकर्णी नींद टूटेगी ? `
अंदर जंग – बाहर जंग , कब खुलेगी मौत की सुरंग ? Uttarkashi tunnel rescue

घण्टे बीते , दिन हफ्ता और बीत गयी दिवाली की रौशनी और छठ की छटा लेकिन 41 परिवारों को इस दौरान हर पल अपने किसी ख़ास की ज़िंदगी की आस और सकुशल वापसी का इंतज़ार खत्म नहीं हुआ है। युवा धामी जिस तरह से इस पैनिक हालात में ग्राउंड पर हालात को सम्हालते हुए केन्दीय एजेंसियों और सीधे पीएमओ के नेतृत्व में सभी श्रमिकों की सकुशल निकासी पर आश्वस्त हैं उसपर भरोसा सभी प्रभावित परिवारों को है लेकिन कल्पना कीजिये कि 150 घंटों से ज्यादा का खौफनाक वक़्त बीत चुका है और अभी भी हालात संघर्ष का है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आखिरकार दौरा किया मीटिंग की मौका मुआयना किया और तसल्ली दी कि श्रमिकों को किसी भी कीमत पर बचाएंगे।
चलिए माना ये एक अप्रत्याशित दुर्घटना है जो सम्भवतः देश के लिए भी एक चुनौती बन गयी लेकिन क्या ऐसे में क्या देश क्या विदेश , क्या इंडियन ब्रेन क्या अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट्स की सलाह , मोर्डर्न मशीन युद्धस्तर पर एजेंसियों का प्रयास और संवेदनशील सरकार का जी तोड़ रेस्क्यू ऑपरेशन सफल हो जाये ये सब चाहते हैं लेकिन सवाल है कि पर्वतीय राज्य में में सुरंग जैसे संवेदनशील निर्माण के दौरान ऐसा संभावित हादसा होने पर क्या प्रोजेक्ट से जुडी एजेंसी , इंजीनियर्स , और अधिकारियों की कोई तैयारी नहीं थी ? क्या मज़दूरों का इस तरह मौत के मुंह में फंस जाना महज एक इत्तेफ़ाक़ है या तकनीकी नाकामी ? जिसने सरकार , परिवार और देश भर की एजेंसियों के माथे पर सर्दी में भी पसीना निकाल दिया है।
बद्री केदार की कृपा , धामी सरकार की तेज़ी और तमाम मेहनतकश रेस्क्यू टीमों को 41 ज़िंदगियाँ बचाने में सफलता मिल जाएगी ऎसी कामना पूरा देश कर रहा है। लेकिन केदारनाथ में रोपवे निर्माण हो या मसूरी रोपवे निर्माण या पहाड़ों में दुर्गम घाटियों में टनल और पुल कंस्ट्रक्शन हो , हमेशा ये प्रोजेक्ट्स गंभीर चुनौतियों से भरे रहते हैं ऐसे में मज़दूरों , इंजीनियरों और निर्माण से जुड़े लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगाने से पहले निर्माण कंपनियों को आँख मूँद कर मुनाफा कमाने की बजाय इंसानी ज़िंदगियों की सुरक्षा व्यवस्था पर पुख्ता इंतज़ाम करने की ज़रूरत है वहीँ उम्मीद है कि सख्त फैसले लेने वाले चीफ मिनिस्टर पुष्कर सिंह धामी भी ज़रूर इस गंभीर घटना की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच अवश्य कराएँगे ताकि सर्वोत्तम राज्य बनने की दिशा में रफ़्तार पकड़ती देवभूमि में राज्य सरकार को तनाव देने वाले गुनहगारों को सबक मिल सके।
कोई भी कीमत चुकानी पड़े सरकार चुकाएगी – गडकरी https://shininguttarakhandnews.com/uttarakhand-tunnel-rescue-2/