Salt Workers चिता में क्यों नहीं जलते उनके पैर ?

Salt Workers गुजरात के अगरिया समुदाय के मजदूर नमक के खेतों में कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं. यहां तक की कि मजदूरों के पैर मरने के बाद चिता में नहीं जलते. ..शायद आपने कभी नहीं सोचा होगा नमक के खेतों में काम करने वालों लोगों की कहानी हमारे थाली में रखे नमक से कहीं ज्यादा कड़वी होता है. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि दिन-रात नमक के साथ जीने वाले ये मज़दूर, जब इस दुनिया से जाते हैं, तो कई बार उनके पैर चिता में नहीं जलती, लेकिन ऐसा क्यों होता आगे बताते हैं…

मजदूर कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं Salt Workers


नमक निकालने वाले मजदूरों को “अगरिया” कहा जाता है. गुजरात में 50,000 से अधिक मजदूर नमक उत्पादन में लगे हैं. बता दें कि गुजरात के खाराघोड़ा इलाके के अगरिया समुदाय के लोग साल के नौ महीने नमक के खेतों में बिताते हैं, जहां दूर-दूर तक सफ़ेद मैदान होते हैं. मजदूर कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं.यहां तक की कि जब इनकी मौत हो जाती है तो कई बार उनके पैर चिता में नहीं जलते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि नमक के प्रभाव के कारण इनका शरीर कठोर बना जाता है. नमक की वजह से उनके पैरों पर एक मोटी परत जम जाती है, जिससे मरने के बाद उनके पैर चिता में नहीं जलते. दरअसल, नमक बनाने वाले मज़दूरों के पैर इतने सख़्त हो जाते हैं कि जलाने के बाद भी नहीं जलता. उन्हें नमक में दबाना पड़ता है या दोबारा अग्नि में डालना पड़ता है.


नमक के खेतों में काम करने वाले मज़दूरों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. ये बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं. बता दें कि नमक की चकाचौंध में इनके शरीर झुलस जाते हैं, आंखें जलती हैं, और पैर सख्त हो जाते हैं.नमक के खेतों में काम करने वाले लोगों ने बताया कि उनके पैरों को उनके रिश्तेदारों द्वारा इकट्ठा किया जाता है और नमक के साथ एक छोटी सी कब्र में अलग से दफनाया जाता है ताकि वे प्राकृतिक रूप से सड़ सकें।


उनका ‘अंतिम संस्कार’ भी नमक पर ही होता है

अहमदाबाद से लगभग 235 किमी और कच्छ के जिला मुख्यालय से 150 किमी दूर स्थित, सूरजबाड़ी क्रीक कच्छ के छोटे रण के किनारे पर और अरब सागर से सिर्फ 10 किमी दूर है। जानकार बताते हैं कि “समुदाय के सदस्य सदियों से यहाँ रह रहे हैं, जीवन का सिर्फ एक ही साधन जानते हैं, नमक उत्पादन , “अगरिया हर 15 दिन में इन खेतों से 10-15 टन नमक इकट्ठा करते हैं, जिसे फिर ट्रकों और ट्रेनों के ज़रिए देश भर में नमक कंपनियों और रासायनिक कारखानों में भेजा जाता है। हर परिवार ऐसे 30 से 60 खेतों की देखभाल करता है।” लेकिन दिन के तापमान में 40 डिग्री और रात में 5 डिग्री सेल्सियस तक की कठोर जलवायु परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करने के बावजूद, अगरिया को प्रति टन सिर्फ़ 60 रुपये मिलते हैं। तो ये है नमक के निर्माताओं के जीवन की अनसुनी सच्चाई

SGRRU की अवंतिका कैन्तुरा राष्ट्रीय नेटबाॅल टीम में  https://shininguttarakhandnews.com/sgrru-avantika-kaintura-netball-selection/

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