abetment of suicide महज यह कहना कि ‘जाओ-मर जाओ’ किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं हो सकता. तेलंगाना हाई कोर्ट ने 2009 के एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए यह टिप्पणी की. न्यायमूर्ति के. लक्ष्मण और न्यायमूर्ति के. सुजाना की बेंच ने कहा कि जाओ और मर जाओ का बयान भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत उकसाने के घटकों से मेल नहीं खाता है. although अदालत ने माना कि आत्महत्या के लिए उकसाने वाला वाक्यांश कुछ भयानक करने के लिए उकसाने का सुझाव देता है. झगड़े के दौरान क्षण भर में गरमागरमी में की गई टिप्पणी का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि किसी शख्स ने ईमानदारी से सामने वाले व्यक्ति को मरने के लिए कहा हो.
पीड़िता को “जाओ और मर जाओ” कहकर उकसाया abetment of suicide

इससे पहले निचली अदालत ने पेश मामले में याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा-417 (धोखाधड़ी), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा-3 (2) (v) के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अभियोजन पक्ष का कहना था अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाली पीड़ित ने अपीलकर्ता द्वारा उससे शादी करने से इनकार करने के बाद कीटनाशक पी लिया था. कहा गया कि अपीलकर्ता ने पहले कथित तौर पर पीड़िता के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था, लेकिन but मामला तब सुलझ गया था जब उसने महिला से शादी करने की इच्छा व्यक्त की.
यह भी नोट किया गया कि मृत्यु से दो महीने पहले तक भी युवक और युवती के बीच “यौन संबंध” थे. बेंच ने आगे कहा कि आरोपी का पीड़िता से शादी करने से इनकार करना पीड़िता की आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि because उसकी मां ने जिरह में स्वीकार किया था कि वह किसी अन्य व्यक्ति से शादी करने के लिए सहमत हो गई थी.