hindu marriage kanyadan एक भावुक पल और नाजुक रस्म जब पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में सौंपता है , ये ऐसी रस्म है जो कि पिता और बेटी के भावनात्मक रिश्ते को दर्शाती है.हिंदू धर्म में विवाह के दौरान बहुत सी रस्में निभाई जाती हैं जिनकी अपनी अलग मान्यता है. कहा जाता है कि जब तक सभी रस्में पूरी नहीं हो जाती तब तक कन्या और वर को पति-पत्नी का अधिकार प्राप्त नहीं होता है. हिंदू धर्म में शादी की हर रस्म और रिवाज का अपना महत्व होता है लेकिन इन सभी रस्मों में से कन्यादान की रस्म काफी महत्वपूर्ण होती है.कन्यादान का अर्थ होता है कन्या का दान देना. सभी दानों में से यह दान सबसे बड़ा दान माना जाता है.
कैसे शुरू हुई कन्यादान की रस्म? hindu marriage kanyadan

विवाह में वर को भगवान विष्णु और वधु को मां लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है. वहीं, मान्यताओं के मुताबिक विष्णु रूपी वर की बात करें तो विवाह के समय वर कन्या के पिता को यह आश्वासन देता है कि वो उम्र भर उनकी बेटी को खुश रखेगा और उसे कभी भी कोई विपदा नहीं आने देगा. इतना ही नहीं, दोनों एक दूसरे के परिवार की जिम्मेदारी को निभाने में एक दूसरे का साथ देंगे.हिंदू धर्म में कन्या दान को महादान माना गया है. ऐसे में जिन माता पिता को कन्यादान करने का मौका प्राप्त होता है, वो काफी भाग्यशाली होते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो माता पिता कन्यादान करते हैं, उनके लिए इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं है. यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति के द्वार खोलता है.
पौराणिक कथा की मानें तो दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था. ब्रह्मांड के 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. इन्होंने ही सबसे पहले अनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो. हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, कन्यादान को महादान की श्रेणी में रखा गया है. क्योंकि इससे बड़ा दान कोई नहीं हो सकता. शास्त्रों में कहा गया है कि जब पूरे विधि विधान के साथ कन्या के माता पिता कन्यादान करते हैं तो इससे उनके परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
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