election 2024 खबर से पहले आपको साल 2015 की उस घड़ी की याद दिलाते हैं जब लालकृष्ण आडवाणी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था और इसके चार दिनों बाद आरएसएस के दिग्गज सुदर्शन का बयान आया कि राजनीतिज्ञ वेश्या की तरह होते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख ने यहां तक कह डाला कि लोगों को रिझाने-लुभाने के लिए जिस तरह वेश्या रोज नया रूप बदलती है, वैसे ही राजनेता भी रोज नये रूप बदलते हैं.तो क्या देवभूमि से दिल्ली तक आज जिस भागमभाग को हम देख रहे हैं ये वैसा की कड़वा सच है जिसमें आदर्श पार्टी , नेता , सिद्धांत , समर्पण , संघर्ष वफादारी जैसे शब्द कुचल दिए जा रहे हैं। क्योंकि पार्टी विशेष की संभावित जिताऊ हवा में अपने पाँव इन मौकापरस्त नेताओं को टिकाये रखना है ?
भर्तृहरि ने हजार साल पहले राजनीति को वारांगना (वेश्या) कहा था election 2024

आरएसएस के सुदर्शन ने सच ही तो कहा था कि राजनीतिज्ञ वेश्या की तरह हो गये हैं. उनकी निष्ठा-मान्यता कहीं एक जगह नहीं है.वे (वेश्याएं) जैसे पैसे के लिए ग्राहक बदलती हैं, वैसे ही पद, प्रतिष्ठा के लिए नेता अपना विचार-मान्यता-प्रतिबद्धता-निष्ठा बदलते हैं.दरअसल यह टिप्पणी भारतीय मध्यमार्गी राजनीति के संदर्भ में अत्यंत कठोर लगती है, पर सच है. नेता का अर्थ माना जाता था कि वह जो कहता है, उस पर चलता है. उसकी कथनी-करनी में कोई फर्क नहीं होता. असली नेता ‘स्टेट्समैन’ माना जाता है, जो भीड़ की इच्छानुसार नहीं चलता. वह अलोकप्रियता का जोखिम उठा कर, धारा के खिलाफ चलने का साहस करता है. जो वोट और कुरसी के लिए जनता की भावनाओं के अनुसार बयान देता या बदलता है, ऐसे नेता सिर्फ निजी भला करते हैं. अपना हित साधते हैं उन्हें न वोटर्स की , न क्षेत्र की और न समाज का भला करने की चिंता होती हैं।
परिस्थिति के अनुसार नेताओं के बयान नहीं बदलने चाहिए – चौधरी चरण सिंह
जिन नेताओं के चरित्र विश्वसनीय न हों, जिन पर लोगों की आस्था न बने, वे कभी इतिहास में बड़ा बदलाव नहीं करते. 1974 इस देश की राजनीति के लिए बड़ा लैंड मार्क है.1974 के पहले की कांग्रेस में पतन दिखने लगा था, फिर भी तत्कालीन नेताओं के कुछ मूल्य-सरोकार थे. वे दिखावे के लिए इस्तीफा नहीं देते थे. वे किसी एक विषय पर जो कहते थे, उसे सुविधा, लोभ या परिस्थिति के अनुसार बदलते नहीं थे. इस कारण लोग नेताओं पर यकीन करते थे. जब जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का आवाहन किया, तो जनता उनके साथ खड़ी हुई. लोगों को लगा कि जेपी का चरित्र विश्वसनीय है.लेकिन आज हम और आप एक वोटर के रूप में क्या देख रहे हैं रातो रात झंडा , नेता और दल बदल और गजब ये कि इन्हे ही हम और आप फिर अपना भाग्य विधाता मानकर वोट देंगे और ये जीतकर हवा में बह जायेंगे।
जिताऊ पार्टी के दरवाज़े पर याचक बन जाते हैं नेता
जिस उत्साह और तेज़ी के साथ आचार संहिता लगते ही देश भर से कांग्रेस , सपा , बसपा या यूँ कहे समूचे विपक्ष के बड़े नेता , विधायक , सांसद बीजेपी दफ्तरों में गुलदस्ते थाम मुस्कुरा रहे हैं वो बताता है कि कल तक जिन्हे कटघरे में रखकर वो नेता बन रहे थे आने वाले वक़्त में उसके जीत की संभावना प्रबल है लिहाज़ा भविष्य बनाने के लिए चोला बदल लिया , लेकिन जनता का क्या ? वो इन पलटी मारों में ही उलझी रहेगी और क्या पता ये कल फिर पलटी मार दें मतलब मौका परस्ती सबसे पहले .. इसके पीछे का खेल भी गहरा होता है जिसमें लेनदेन , नफा नुक्सान और फाइलों का कानूनी उठापटक भी अहम किरदार बन जाता है। लेकिन कहते हैं न कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं
मशहूर लेखक सुशील कुमार की चंद लाइने हम साभार आपके लिए यहाँ पेश कर रहें हैं – .
राजनीति और वैश्या मे कोई अंतर नही है,
इन दोनों का विष इतना तीव्र है,
जिसके काटे का कोई मन्तर नही है!
एक चलती है, मदमाती, इठलाती, लहराती हुई,
तो दूसरी, सुसज्जित वाहनों पर लॉडस्पीकर कसे,
देश–भक्ति और राष्ट्र–प्रेम के गीत गाती
वैश्या और राजनीति,
एक ही थैली की चट्टी-बट्टी हैं
एक को चाहिए- अति कामुक, दुराचारी, व्यभिचारी,
और एक संपन्न मुस्टण्डा,
तो दूसरी को- महा भ्रष्ट, संदिग्ध चरित्र वाला,
ऊपर तक पहुँच रखने वाला महा गुण्डा…….
मज़ेदार है उत्तराखंड की सत्तू, गुड़,आटे वाली पहाड़न नमकीन चाय https://shininguttarakhandnews.com/bhotiya-tea/