
shami puja on vijayadashami दशहरा या विजयादशमी, वर्ष का सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके धर्म की रक्षा की थी। लेकिन यह दिन केवल रावण दहन तक ही सीमित नहीं है। दशहरे पर मनाई जाने वाली एक और विशेष परंपरा शमी वृक्ष की पूजा है। शमी पूजन को धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिष तीनों ही दृष्टियों से अत्यंत शक्तिशाली और फलदायी बताया गया है।
महाभारत की एक कथा- पांडव और शमी वृक्ष shami puja on vijayadashami
शमी वृक्ष का महत्व महाभारत काल से है। जब पांडव वनवास गए, तो उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र शमी वृक्ष में छिपा दिए। बारह वर्ष बाद जब वे लौटे, तो उनके अस्त्र-शस्त्र अक्षुण्ण पाए गए। इसी कारण शमी वृक्ष को शक्ति और विजय का प्रतीक माना गया है। तब से, दशहरे पर शमी वृक्ष और अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।
शमी के पत्तों को ‘सोना’ क्यों कहा जाता है?
दशहरे पर शमी वृक्ष के पत्ते बांटने की परंपरा कई राज्यों में प्रचलित है। खासकर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इसे ‘सोना बांटना’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शमी के पत्ते असली सोने के समान ही शुभ होते हैं। इन्हें घर में रखने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। यही कारण है कि लोग दशहरे पर शमी के पत्ते घर लाते हैं और उन्हें अपने पूजा कक्ष या तिजोरी में रखते हैं।
ज्योतिष के अनुसार, शमी वृक्ष शनि ग्रह को प्रिय है। दशहरे पर शमी की पूजा करने से शनि का प्रभाव शांत होता है और करियर व व्यवसाय में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा करते हैं, उनके जीवन में स्थिरता आती है और वे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं।कहा जाता है कि लंका में रावण ने शमी वृक्ष की विशेष पूजा की थी। इसीलिए इसे युद्ध और विजय से जोड़ा जाता है। आज भी, दक्षिण भारत में दशहरे के दिन लोग शमी वृक्ष के नीचे पूजा करते हैं, उसे प्रणाम करते हैं और युद्ध या प्रयास में सफलता का आशीर्वाद मांगते हैं।