Bakhli in Uttarakhand उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लोगों का रहन सहन, यहां की संस्कृति, परंपरा, जीवन, काफी अलग रहा है. ये सभी तत्व सृष्टि से संतुलन बनाए रखने और प्रकृति से जुड़ने और नजदीक रहने वाले हैं. इसका एक उदाहरण पुराने जमाने में यहां की हाउसिंग कॉलोनी कही जाने वाली बाखलीमें देखने को मिल जाएगा. पहाड़ के यह घर कई परिवारों को एकसाथ रहने, एकजुटता और सहयोग की भावना दर्शाते हैं लेकिन आधुनिकता के फेर में अब बाखली परिवारों को एकजुट रखने में नाकाम दिख रही है.स्थानीय निवासी बताते हैं कि बाखली पहाड़ के घर होते हैं, जिन्हें पारंपरिक तरह से मिट्टी और पत्थरों से मिलकर बनाया जाता है. इन घरों के सुंदर दरवाजे और खिड़कियां पहाड़ के सामूहिकता और समाज को समझाने के लिए काफी हैं. इस बाखली में वास्तुकला, इतिहास, संस्कृति सब एक साथ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
कत्यूर व चंद राजाओं की शैली है बाखली Bakhli in Uttarakhand
उत्तराखंड के पहाड़ों में बनी इन बाखलियों के सभी कमरे एक जैसे होते हैं. एक पूरी बाखली में एक ही बिरादरी के लोग रहते हैं. सभी परिवारों को मिलने वाले कमरों की संरचना एक जैसी ही होती है. इन कमरों की सबसे बड़ी खासियत है कि सर्दियों में यह गरम रहते हैं और गर्मियों के दौरान ठंडक देते हैं. नीचे का हिस्सा जानवरों के रहने के लिए और आगे का हिस्सा उनके चारे को रखने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है
कहा जाता है कि कत्यूर और चंद राजाओं ने पहाड़ में घरों के निर्माण की इस शैली को तैयार किया था. हालांकि भौगोलिक परिस्थिति, सीमेंट के घरों के निर्माण और गांवों से लोगों के पलायन ने सब कुछ बदल कर रख दिया. रोजगार और पढ़ाई के चलते गांव अब खाली हो गए हैं. उत्तराखंड के कई पहाड़ी इलाकों में आज भी आपको बाखली देखने को मिल जाएंगी.
कभी बाखली में एक साथ रहते थे दर्जनों परिवार
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की सबसे बड़ी बाखली नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के कुमाटी गांव में है। पारंपरिक रूप से मिट्टी और पत्थरों से बने इन घरों को दूर से देखने पर रेलगाड़ी का प्रतिबिंब बनता है। खूबसूरत खिड़की-दरवाजे और नक्काशी वाले इन मकानों को देखने से पहाड़ के समाज और सामूहिकता को समझा जा सकता है। करीब तीन सौ फीट लंबी छत वाली इस बाखली को पारंपरिक सामुदायिक घर भी कहा जाता है। यहां अब 10-12 परिवार ही रहते हैं। क्वारब से करीब 12 किमी दूर कुमाटी में अधिकांश जोशी के साथ भट्ट परिवार भी रहते हैं। इस बाखली में 25 समान घर हैं। घर के सामने घाटी का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। इस बाखली में इतिहास, विरासत, संस्कृति और वास्तुकला सब एक साथ परिलक्षित होता है। कभी यहां एक साथ 125 से अधिक लोग रहते थे।
एक तर होती थी सभी अपार्टमेंट की संरचना
बाखली में बने सभी अपार्टमेंट एक समान होते थे। मतलब हर परिवार को मिलने वाला मकान की संरचना एक जैसी होती थी। निचले हिस्से मवेशियों के लिए जबकि आगे का हिस्सा चारे के भंडारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। कुमाटी की बाखली में पूरी संरचना में तीन सौ फीट की लंबी छत है। सभी घरों को समान रूप से डिज़ाइन किया गया है। जिसमें एक परिवार के लिए रसोई और एक बेडरूम और तहखाने हैं। ‘बाखली’ को इस तरह से डिजाइन किया था ताकि पूरा समुदाय संकट के समय एक साथ हो सके।