एक अखबार ने खोल दी पूरी कहानी Biggest Sex Scandal
उन दिनों अजमेर शहर में एक अखबार निकलता था, नवज्योति दैनिक अखबार. मई 1992 में एक दिन जब शहर के लोग सुबह उठे तो उन्हें अखबार में एक खबर छपी मिली. खबर की हेडलाइन थी, ‘बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेलिंग का शिकार’. इसे लिखा था एक युवा रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने. जैसे ही ये रिपोर्ट अखबार में छपी और लोगों तक पहुंची पूरे शहर में हंगामा हो गया. दोपहर होते-होते बात राजस्थान के मुख्यमंत्री तक पहुंच गई. उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे भैरोंसिंह शेखावत. मुख्यमंत्री ने इस मामले को गंभीरता से लिया और पुलिस से कहा कि आरोपी किसी भी कीमत पर बचने ना पाएं. हालांकि, पुलिस की कार्रवाई में देरी हो रही थी और इस बीच आरोपी हर साक्ष्य मिटाने का पूरा इंतजाम कर रहे थे. अखबार में खबर को छपे लगभग 15 दिन बीत चुके थे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी. इधर संतोष गुप्ता हर दिन अख़बार में इस केस से जुड़ी नई-नई जानकारियों के बारे में लिख रहे थे. जब संतोष गुप्ता को लगा की आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हो रही है तो उन्होंने अपनी दूसरी खबर में उनकी तस्वीरें भी छाप दी. इस खबर का शीर्षक था, ‘छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?’.
लोगों ने जब आरोपियों की तस्वीरें पीड़ित लड़कियों के साथ देखीं तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. पूरा शहर गुस्से से भर गया. इसके बाद संतोष गुप्ता ने तीसरी खबर छापी और इसका शीर्षक था, ‘सीआईडी ने 5 माह पहले ही दे दी थी सूचना!’ और चौथी खबर छापी ‘डेढ़ महीने पहले ही ये तस्वीरें देख लिया था’. चौथी खबर ने लोगों के गुस्से का बांध तोड़ दिया क्योंकि ये एक बयान पर छपी थी. ये बयान दिया था राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री दिग्विजय सिंह ने.लोगों को लगा कि जब सरकार और प्रशासन को पहले से पूरे केस के बारे में और आरोपियों के बारे में पता है तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है. लोग सड़कों पर उतर आए और अजमेर बंद का ऐलान कर दिया. विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने पूरे शहर में बवाल काट दिया. उधर अजमेर जिला बार एसोसिएशन के वकील भी लड़कियों को इंसाफ दिलाने के लिए आगे आ गए.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने केस सीआईडी सीबी के हाथों में दे दिया. इसके बाद सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंचे. 31 मई को जांच शुरू हुई और इस जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, प्रवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी जैसे नाम सामने आए. इनमें हरीश तोलानी वो शख्स था जो लैब में लड़कियों की अश्लील तस्वीरों को तैयार करता था.पहले 8 की हुई थी गिरफ्तारी
जांच के बाद पहले 8 लोगों को हुई थी गिरफ्तारी. वहीं साल 1994 में एक आरोपी पुरुषोत्तम जब जेल से बाहर आया तो उसने आत्महत्या कर ली. जबकि, इस केस का पहला फैसला 6 साल बाद आया और इसमें 8 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई और अब 32 साल बाद 6 दोषियों उम्रकैद की सजा हुई.

लड़कियां कैसे हुई थीं गैंगरेप की शिकार
ये पूरा मामला 1991 के आसपास शुरू हुआ. शहर के एक बड़े युवा नेता ने एक बिजनेसमैन की बेटी से दोस्ती की और उसे झांसा देकर फायसागर स्थित फरुख चिश्ती के पोल्ट्री फार्म हाउस पर बुलाया. वहां पहले लड़की का रेप किया गया और फिर उसके फोटो खींचे गए. फिर आरोपियों ने लड़की को इन फोटोज के जरिए ब्लैकमेल किया और उससे कहा कि वह अपने दोस्तों को भी इस फार्म हाउस पर ले आए. ऐसा करते हुए इन आरोपियों ने लगभग 100 लड़कियों का रेप किया और उनकी न्यूड तस्वीरें खींचीं. बाद में जब जांच हुई तो पता चला कि ये आरोपी जिस लैब में इन लड़कियों की फोटो तैयार करवाते थे, वहां से ये तस्वीरें शहर में और लोगों को हाथों लग गईं और उन लोगों ने भी इन तस्वीरों की बदौलत लड़कियों को ब्लैकमेल किया और उनका रेप किया. इन सभी लड़कियों की उम्र महज 17 से 20 साल थी. जब लड़कियों की तस्वीरें शहर भर में बंटने लगीं तो पीड़ित 6 लड़कियों ने आत्महत्या कर ली. वहीं कुछ परिवारों ने शहर छोड़ दिया और गुमनामी की जिंदगी जीने लगे.
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