Bulbul Tawaif Story आजादी की लड़ाई में बहुत से लोगों ने शहादत दी. इनमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया. बहुत सी महिलाओं ने बहादुरी की मिसाल कायम की. ऐसी ही एक कहानी है बुलबुल की.
लखनऊ में हुआ था बुलबुल का जन्म Bulbul Tawaif Story

1850 में लखनऊ के पुराने सिया मोहल्ले में जन्मी बुलबुल पिता की मौत के बाद मां और छोटी बहन गुरैया के साथ पानीपत में आकर रहने लगी. बुलबुल के पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जिनकी अंग्रेजों द्वारा हत्या कर दी गई थी. बुलबुल ने बचपन से ही अंग्रेजों के जुर्म सहे. गरीबी के चलते और पेट की आग बुझाने के लिए बुलबुल की मां को वेश्या बनने को मजबूर होना पड़ा. जिसके बाद पानीपत के बाजार में कोठा चलाना शुरू किया. इसके बाद बुलबुल ने भी कोठे पर जाना शुरू कर दिया. जिसके बाद बुलबुल के दीदार के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचने लगे.
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हाथ-पैर बांध कर फेंका था कलेक्टर को
साल1888 में जिला करनाल के अंग्रेज कलेक्टर बुलबुल के कोठे पर जा पहुंचे। बुलबुल ने पूछा श्रीमान जी की तारीफ? तो कलेक्टर ने टूटी-फूटी हिंदी में जवाब में बताया कि मैं करनाल जिला कलेक्टर पीटर स्मिथ जोहन हूं और मैं तुम्हें चाहता हूं। अगर if आप खुश कर सकें तो आज रात मैं कोठे पर ही रुकूंगा। लेकिन but आसमान में उड़ते परिंदे को पहचानने वाली तवायफ बुलबुल अंग्रेज की इस मंशा को समझ गई। उसने अपने कोठे पर मौजूद लड़कियों को इशारा करते हुए एक जगह पर इकट्ठा होने के लिए कहा और कपड़े धोने वाले डंडों से कलेक्टर पर हमला बोल दिया। उसके हाथ पांव बांधकर सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया। जिससे कलेक्टर की मौत हो गई। हालाँकि although इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और बुलबुल को गिरफ्तार कर लिया गया।
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जिसके बाद अंग्रेज सेशन जज विलियम ने 10 मार्च सन 1889 दिन रविवार को उसे मौत की सजा सुनाई. अंग्रेजी सरकार ने 8 जून 1889 को पानीपत के संजय चौक पर जहां आज हैदराबादी अस्पताल है, वहां बुलबुल को फांसी पर लटका दिया. यह भी दावा किया जाता है कि बुलबुल भारत की पहली महिला थी जिसे फांसी की सजा दी गई थी.
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