देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –
BYANDHURA TEMPLE ब्यानधुरा मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित एक प्राचीन एवम् लोकप्रिय मंदिर हैं | ब्यानधुरा का शाब्दिक अर्थ “बाण की चोटी” हैं | चोटी का आकर भी धनुष बाण की तरह एक सामान हैं | यह मंदिर जंगल के बीचो-बीच में पहाड़ी की चोटी पर नैनीताल और चम्पावत की सीमा में रोड से लगभग 35 किमी की दुरी पर ब्यानधुरा नामक क्षेत्र पर स्थित हैं | इस मंदिर में विराजित देवता को “ऐड़ी देवता” कहा जाता हैं
BYANDHURA TEMPLE अर्जुन ने गांडीव धनुष इसी स्थान पर छिपाया था

BYANDHURA TEMPLE देवभूमि में मौजूद ऐड़ी देवता का मंदिर के राजा ऐड़ी लोक देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं। राजा ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे और उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में भी माना जाता है। इस this ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान-सभा भी माना जाता है। इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता हैं कि राजा ऐड़ी ने इस स्थान पर तपस्या की थी और तप के बल से राजा ने देव्तत्व को प्राप्त किया था
ऐसा भी कहा जाता हैं कि अर्जुन का गांडीव धनुष आज भी इस क्षेत्र में मौजूद है और सिर्फ ऐड़ी देव के अवतार ही उस धनुष को उठा पाते हैं। BYANDHURA TEMPLE हालाँकि although महाभारत काल के अलावा इस क्षेत्र में मुगल और हुणकाल में बहारी आक्रमणकारियों का दौर रहा लेकिन यह आक्रमणकारी ब्यानधुरा क्षेत्र की चमत्कारिक शक्ति की वजह से चोटी से आगे पहाड़ो की ओर नहीं बढ़ सके।
BYANDHURA TEMPLE पर्वतीय क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों में मनोकामना पूर्ण करने के लिए छत्र , ध्वजा, पताका, श्रीफल, घंटी आदि चढ़ाए जाते हैं लेकिन but ब्यानधुरा एक ऐसा शक्ति स्थल है , जहां धनुष बाण चढ़ाएं और पूजे जाते हैं । ब्यानधुरा मंदिर कितना प्राचीन हैं , इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी हैं लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-बाण आदि के ढेर को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह एडी देवता का मंदिर एक काफी प्राचीन और पौराणिक मंदिर है।
मंदिर समिति के पुजारियों के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी उपस्थित है । इस मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरखनाथ की धुनी है , जो कि लगातार जलती है और गुरु गोरखनाथ की धुनी के अलावा मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है ,BYANDHURA TEMPLE जिसके समक्ष जागर आयोजित होते हैं।
ब्यानधुरा मंदिर के बारे में यह मान्यता हैं कि अगर if मंदिर में जलते दीपक के साथ रात्रि जागरण करने से वरदान मिलता हैं और विशेषकर संतानहीन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण होकर उनकी सूनी गोद भर जाती है और मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर में गाय दान और ऐड़ी देवता को प्रसन्न करने के लिए धनुष-बाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र भेंट करते हैं।
उत्तराखंड में 2 बहुत बड़ा घोटाला ! DGP ने किया खुलासा https://shininguttarakhandnews.com/uttarakhand-police-ghotala/