Dangerous Manhood Prove : लड़कों को मर्द बनने के लिए खतरनाक बुलेट चीटियों से कटवाते हैं लोग , 1 amazing facts

Dangerous Manhood Prove दुनिया में कई रहस्यमयी जनजातियां रहती हैं जो अपनी परंपरा, रहन-सहन और खान-पान के लिए जानी जाती हैं। जहां लोग आधुनिकता अपनाते जा रहे हैं, तो वहीं आदिवासी जनजातियां आज भी हजारों साल पुरानी परंपराओं का पालन करती हैं। जिन जंगलों में ये जनजातियां रहती हैं उन पर इनका पूरा अधिकार होता है। सरकारें भी इनके अधिकारों में दखल नहीं देती हैं। दुनिया में इन जनजातियों में कुछ बेहद अनोखी होती हैं।

Dangerous Manhood Prove किसी गोली लगने जैसा दर्द होता है

Dangerous Manhood Prove File Photo 
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  • Dangerous Manhood Prove दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाली जनजातियां अपने परंपराओं और रीति-रिवाजों की वजह से अक्सर चर्चा में रहती हैं। इन जनजातियों की कुछ परंपराएं बेहद अजीबोगरीब होती हैं जिनका वो आज भी पालन करती हैं। ब्राजील में रहने एक जनजाति ऐसे ही खतरनाक परंपरा का पालन करती है जिनके बारे में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। आइए जानते हैं ब्राजील में रहने वाली ये जनजाति कौन सी परंपरा का पालन आज भी करती है और आखिर क्यों…
Dangerous Manhood Prove File Photo 
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  • Dangerous Manhood Prove इस अजीबोगरीब परंपरा के मुताबिक, जनजाति के लड़कों को खतरनाक चीटियों से कटवाना होता है। इसके लिए लड़के बुलेट चीटियों से भरे दास्ताने में अपना हाथ डालते हैं। जनजाति में नियम है कि लड़कों को मर्द बनने के लिए खतरनाक बुलेट चीटियों से कटवाकर दर्द सहना होगा। पहले खतरनाक चीटियों को एक मोटे दास्ताने में बंद किया जाता है। जब दस्ताने को खोला जाता है, तो वह बेहद गुस्से में होती हैं। जब वह गुस्से में होती है, तब उनको दास्ताने में हाथ डालना होता है और खुद को कटवाना होता है। बताया जाता है कि किसी गोली लगने जैसा दर्द होता है। कई दिनों तक हाथ सूजा रहता है।

Dangerous Manhood Prove जानिए क्या होती है उम्र

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  • Dangerous Manhood Prove इसके लिए 12 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे खुद जंगल से खतरनाक चीटियों को लाते हैं और लकड़ी के बने दास्ताने में भरते हैं। फिर पारंपरिक नाच गान होता है और इन दस्तानों को 20 बार पहनते हैं। इस दास्ताने को एक बार में 10 मिनट के लिए पहना जाता है। खतरनाक चींटियों के काटने से मधुमक्खी के डंक से भी 30 गुना अधिक दर्द होता है। इस प्रथा से साबित किया जाता है कि दुनिया में बिना दर्द के कुछ नहीं हो सकता।

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