Delhi Dulhan Bazar : दुल्हन बाजार सजने का अनसुना सच ! कीमत बेहद कम , 1 Great History

Delhi Dulhan Bazar 19वीं सदी में भारत में शासन कर रही ब्रिटिश सरकार को यहां कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। अंग्रेजों के खाने, रहने और सुरक्षा की एक ओर चिंता थी तो वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी को अंग्रेज पुरुष अधिकारियों के वैवाहिक जीवन की भी चिंता थी। एक अनुमान के अनुसार 19वीं सदी के प्रारंभ में भारत में करीब 4000 पुरुष अंग्रेज थे। महिलाओं की संख्या मात्र 250 के आसपास थी।

Delhi Dulhan Bazar भारतीय युवती को अपने घर में रखने का खर्च 40 रुपये

Delhi Dulhan Bazar
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Delhi Dulhan Bazar 1810 में कैप्टन थामस विलियमसन द्वारा तैयार अंग्रेजी कर्मचारियों के लिए निर्देशिका के अनुसार किसी अंग्रेजन से शादी करने का खर्च करीब 5000 रुपये था, जबकि उसके मुकाबले एक भारतीय युवती को अपने घर में रखने का खर्च 40 रुपये प्रतिमाह था। ज्यादातर अंग्रेज कर्मचारी 5000 रुपये का जुगाड़ कर पाने में असमर्थ थे। इनमें से बहुत से बिना विवाह किए हिंदुस्तानी युवतियों को अपने घर में रख लेते थे। बहुत से, युवतियों से जब-तब जोर-जबरर्दस्ती से लालच देकर या डरा-धमका कर यौन-संबंध बनाते थे।

Delhi Dulhan Bazar कई बड़े अंग्रेज अफसर देश के अमीर नवाबों की तरह अनेक पत्नियां रखते थे। दिल्ली में रेजीडेंट ऑक्टरलोनी शहंशाहों की तरह रहता था। उसकी 13 भारतीय पत्नियां थीं। वह अक्सर अपने ऐश्र्वर्य का सार्वजनिक प्रदर्शन करता था। वह सैर को निकलता तो तमाम लाव-लश्कर में सजी-धजी तेरहों पत्नियां भी साथ होती थीं। यह रसिक अफसर गीत-संगीत की महफिलें भी सजवाता था, जहां देश की मशहूर नर्तकियां बुलाई जातीं। इन महफिलों में अंग्रेज अफसरों के अलावा देशी अमीर-उमराव भी शमिल होते।

Delhi Dulhan Bazar डेविड का सहायक रह चुका फ्रेजर बड़ा महत्वाकांक्षी, चुस्त-चालाक और अत्यधिक रसिया प्रवृत्ति का मालिक था। 1833 में वह दिल्ली में रेजीडेंट नियुक्त हुआ तो भारतीय नवाबी रंग-ढंग से रहने लगा। उसकी सात भारतीय पत्नियां थीं। फ्रेजर के भाई सहित कई अंग्रेजों को यह शिकायत थी कि फ्रेजर अंग्रेजों के बजाय भारतीयों का संग-साथ ज्यादा पसंद करता था।

Delhi Dulhan Bazar इसी प्रकार कोलकाता के जोब चारनोक ने एक ब्राह्मण महिला को उसके पति की चिता से सती होने से बचाया और उससे विवाह किया। पत्नी को खुश करने के लिए वह ब्राह्मणों जैसा आचार-व्यवहार करने लगा। अंग्रेज बड़े अफसर जहां खूब मौज-मजा कर रहे थे, वहीं ज्यादातर विकट परिस्थितियों में समय गुजार रहे थे। हर समय असुरक्षा का डर तो रहता ही था, ऊपर से अकेलापन और जवानी बिना पत्नी-परिवार के गुजरने की आशंका थी। इसलिए लगभग पूरे देश में ही जहां-तहां अंग्रेज पुरुष भारतीय युवतियों को पत्नी, रखैल या टाइमपास साथी बना रहे थे।


Delhi Dulhan Bazar उस समय इंग्लैंड के ज्यादातर युवा विदेशों में फौज व अन्य सेवाओं में भेज दिये जाते थे। लड़कियों के लिए योग्य युवा पुरुषों का अभाव था। बचे युवा लड़कियों को शादी के लिए पसंद करने में बड़ी नक्शेबाजी करते थे। ऐसे में ब्रिटेन में अस्वीकृत लड़कियों की शादी भारत में कार्यरत अंग्रेजों से कराने के बाबत दिल्ली में विवाह बाजार लगाने की व्यवस्था की गई। इन लड़कियों को जहाजों में भर-भर कर भारत लाया जाता। दिल्ली में हर रविवार को विवाह बाजार लगता, जिसमें सजी-धजी अंग्रेज युवतियां होतीं और उन्हें पसंद करने के लिए अंग्रेज पुरुष

Delhi Dulhan Bazar इस मेले में अंग्रेज पुरुष ब्रिटेन में उपेक्षित और अस्वीकृत युवतियों के आगे-पीछे घूमते और अपनी पसंद की युवती से शादी करने के लिए लालायित रहते। कई बार कई पुरुष एक ही युवती को पसंद करते, तब बड़ी मुश्किल हो जाती। कई लोग मनपसंद की युवती न मिलने पर भी किसी युवती को इस डर से अपनी पत्नी बनाने को रा़जी हो जाते कि क्या पता आगे और युवतियां आएं या न आएं।

Delhi Dulhan Bazar शादी भी एकदम से नहीं की जाती थी। युवती को पत्नी बनाने के लिए चुनने के बाद सरकारी स्तर पर लिखा-पढ़ी शुरु हो जाती। गवर्नर-जनरल किसी जोड़े को अनापत्ति प्रमाण पत्र या विवाह के लिए अनुमति पत्र दे देते, तभी शादी की रस्म आयोजित की जाती। शीर्ष अंग्रेज नेतृत्व का यह प्रयोग सफल रहा और इस तरह हजारों ब्रिटिश युवतियों की शादियां भारत में अंग्रेजों से हुईं। इससे अपनी समस्याओं से परेशान जो सैकड़ों अंग्रेज कर्मचारी भारतीयों से सहानुभूति रखने लगे थे या जो भारतीय जीवन शैली को अपनाने लगे थे, वे वक्त रहते संभल गये और फिर पूरी तरह ब्रिटिश सत्ता के इशारों पर नाचने लगे।

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