डोम राजा कौन होते हैं ? Dom Raja
वहीं आपको बता दें कि बनारस ही एक ऐसा शहर है जहां लोग मरने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि बनारस में अंतिम सांस लेने का अर्थ है मोक्ष की प्राप्ति। अब जहां मौत और मोक्ष का नाम आया है तो बनारस शहर के डोम राजा का नाम जरूर आएगा। कहते हैं कि डोम राजा के हाथों से ही यहां आने वाले शवों की आत्मा को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। तो चलिए आइए जानते हैं कि डोम राजा कौन होते हैं और बनारस सहित पूरी दुनिया में उनका नाम क्यों प्रसिद्ध है।
बनारस के अस्सी घाटों में दो घाट ऐसे हैं जहां शवदाह किया जाता है। इन दोनों घाटों का नाम है मणिकर्णिका और राजा हरिश्चंद्र घाट। इन्हीं घाटों पर रहता है डोम राजा का परिवार। डोम राजा का परिवार जलती लाशों के बीच रहते हैं और इन्हीं जलती चिता की अग्नि से इनके घर का चूल्हा जलता है। इन घाटों पर अंतिम संस्कार करवाने का काम केवल डोम जाति के लोग ही करते हैं। समाज में ये अछूत जाति मानी जाती है लेकिन उन्हीं के हाथों से मृतकों को मोक्ष को प्राप्ति होती है। कुछ विद्वान डोम को शिव का स्तुति मंत्र ऊं से भी जोड़कर देखते हैं।

डोम राजा के हाथों ही क्यों मिलती है मुक्ति
प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के साथ काशी भ्रमण करने को आए। इसी दौरान जब माता पार्वती मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने लगी तभी उनके कान का एक कुंडल गिर गया, जिसे एक कालू नामक राजा ने अपने पास रख लिया। भगवान शिव और मां गौरी ने उस कुंडल को खोजा लेकिन नहीं मिला तब महादेव ने क्रोधित होकर कुंडल चुराने वाले को नष्ट होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से भयभीत कालू ने तुरंत भोले शंकर और मां पार्वती से अपनी गलती की माफी मांगी। इसके बाद शिवजी ने कालू राजा को श्राप से मुक्ति देकर उसे श्मशान का राजा घोषित कर दिया। कहते हैं कि तब से ही कालू राजा और उसके वंशज श्मशान में आने वाले शवों को मुक्ति देने का काम करने लगे और इसके बदले उनसे धन लेने लगे। मान्यताओं के अनुसार, कालू राजा के वंश को ही डोम राजा कहा जाता है।
दूसरी कथा-
धार्मिक कथा के मुताबिक, राजा हरिश्चंद्र काफी दानी थे। एक बार ऋषि विश्वामित्र ने उनकी परीक्षा ली और राजा हरिश्चंद्र से उनका पूरा राजपाट मांग ले लिया। उन्होंने पूरा राजपाट दान में देकर पत्नी और बच्चा के साथ काशी आ गए। इसके बाद फिर से विश्वामित्र ने उनकी परीक्षा ली तब हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी बच्चा समेत खुद को भी बेच दिया। उन्होंने खुद को वाराणसी के डोम को बेचा। राजा हरिश्चंद्र ने डोम राजा के यहां चंडाल की नौकरी की। कहते हैं कि एक बार उनके बेटे को सांप ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई जब उनके पुत्र का शव हरिश्चंद्र घाट आया तो भी उन्होंने अपनी नौकरी की निष्ठा निभाते हुए पत्नी से धन मांगा था।