Harish Rawat कुछ तो पक रहा है खांटी पहाड़ी और उत्तराखंड के पूर्व सीएम और सबसे बुजुर्ग एक्टिव पॉलिटिशियन हरीश रावत का प्लान जिसका टारगेट 2027 है क्योंकि अचानक अपनी सक्रियता को उन्होंने बढ़ा दिया है जिससे भाजपा में बल्कि कांग्रेस में तरह तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। ताजा प्रकरण कुछ घटनाक्रमों पर उनकी राय और बयानों से ही समझा जा सकता है। कोर्ट परिसर में रैन बसेरे के मामले को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत सरकार को लगातार घेर रहे हैं. बीते दिनों ही उन्होंने कहा था कि रैन बसेरा तो कहीं और भी बनाया जा सकता है. मगर अधिवक्ताओं के चैंबर तो उसी परिसर के आस-पास होने चाहिए.
रावत ने उपनल कर्मियों और शासनादेश को लेकर तंज कसा Harish Rawat

उन्होंने कहा कि ‘दो समूह, एक हमारे देहरादून के सम्मानित अधिवक्ता साथी और दूसरे हमारे उपनल कर्मी. उपनल कर्मियों को जब उठाया गया ‘समान कार्य-समान वेतन’ का शासनादेश थमा कर तो उसमें एक लाइन डाल दी कि 12 साल की सेवाओं वालों को देय होगा. इस लाइन को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि हरीश रावत अब तो नारा होना चाहिए “समान काम-समान वेतन के आदेश में दम नहीं—2027 में नियमितीकरण से कुछ कम नहीं”.

रावत ने आगे कहा कि ‘अधिवक्ता साथियों को कांग्रेस पार्टी से आग्रह करना चाहिए कि ‘वह चैंबर्स को लेकर उनका भविष्य की गारंटी दे दे, क्योंकि भाजपा की बुद्धि में तो पहले ही अहंकार बैठा हुआ है. इसलिये कितना ही बुद्धि-शुद्धि यज्ञ कर लें कुछ फर्क पड़ता मुझे नजर आता नहीं है. अन्यथा अधिवक्ता साथियों से कौन लड़ेगा? वह अनावश्यक लड़ रहे हैं. कोर्ट परिसर में अधिवक्ताओं के चेंबर नहीं बनेंगे तो फिर किसके चैंबर बनेंगे? वहां रैन बसेरे का आईडिया कहां से आ गया ?

हरदा ने सोशल मीडिया पर लिखा पोस्ट –
कल रात अचानक 3:30 के करीब मेरी नींद खुल गई और मैं यह गुनगुना रहा था 9000 में दम नहीं-24000 से कम नहीं। मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे मन मस्तिष्क में युवा नारा क्यों छा गया ?कल आंगनबाड़ी की बहनें अपने सचिवालय कूच के दौरान हृदय से, भावपूर्ण तरीके से यह नारा लगा रही थी कि “9000 में दम नहीं-24000 से कम नहीं” ।रात सोते वक्त मैंने उनके नारे का आर्थिक विश्लेषण किया तो मुझे लगा कि उनके नारे में आर्थिक रूप से भी पर्याप्त दम है और यह नारा क्रियान्वित किया जा सकता है। फिर मेरे मन में यह भाव उठा कि मेरी भोजन माताएं, आशा-आंगनवाड़ी की बहनें, उनके लिए भी तो कुछ न कुछ आय की गारंटी होनी चाहिए तो मैं उनकी न्यूनतम आय की गारंटी का कैलकुलेशन लगाने में लगा हुआ हूं, देखिए! गणित में कमजोर रहा हूं लेकिन फिर भी भावनात्मक गणित में कमजोर नहीं हूं जो किसी न किसी सीमा रेखा पर न्यूनतम आय पर मैं अवश्य पहुंचूंगा।

