hemkund sahib history : अद्भुत है हेमकुंड साहिब की यात्रा , जानिए इतिहास 1 Great Tour

देवभूमि उत्तराखंड से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –

hemkund sahib history  देवभूमि के पवित्र धाम सिखों की तीर्थस्थली  हेमकुंड साहिब  के बारे में आज हम आपको जानकारी दे रहे हैं। सिख धर्म ग्रंथों के आधार पर हेमकुंड में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने महाकाल की तपस्या की थी। हेमकुंड सुमेरु पर्वत का एक कोना है। इसके पास ही सप्तश्रृंग नामक पर्वत है। यहां पर पांडवों के पिता महाराज पांडु ने भी तपस्या की थी।

hemkund sahib history पांडुकेश्वर है राजा पांडु की तप भूमि

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सिख ग्रंथो के इतिहास को पड़कर संत सोहन सिंह जी, जो टिहरी (गदवाल ) में संत वाणी का उपदेश कर रहे थे, के मन में  इस पवित्र स्थान को खोजने की इच्छा हुई। सोहन सिंह जी गुरु जी के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे।  उन्होंने संकल्प कर लिया कि वे उस स्थान की अवश्य ढूंढ निकालेंगे। hemkund sahib history  इसके लिए सोहन सिंह जी ने कई साधु-संतों से जानकारी प्राप्त करनी शुरू की। इस विषय को लेकर संत जी कई दिन तक इधर-उधर भटकते हुए बदरीनाथ पहुंचे। लेकिन but वहां से लौटते समय वे किसी कारणवश रात्रि में पांडुकेश्वर रुक गए।


यहां here उन्हें पता चला कि पांडुकेश्वर को राजा पांडु की तप भूमि होने के कारण पांडुकेश्वर कहते हैं। संत जी की आधी गुत्थी सुलझ गयी लेकिन but सप्तश्रृंग अभी भी उन्हें नहीं दिखाई दिया। एक दिन सवेरे-सवेरे स्थानीय लोगों का एक समूह नए नए वस्त्र पहनकर कही जाने की तैयारी में था पुछने पर संत जी को पता चला कि ये लोग हेमकुंड  लोकपाल तीर्थ में स्नान करने जा रहे हैं। संत जी भी उनके  पीछे-पीछे हेमकुंड चल दिए।

सन् 1934 ई. तक अलकनंदा  नदी पर कोई पुल नहीं था। लोग उसे एक रस्सी पर झूल कर पार करते थे|  सभी लोगो के साथ संत सोहन सिंह जी  भी  रात्रिं तक घांघरिया पहुंचे और वहां दूसरे दिन हेमकुंड। वहां पहुंचते ही संत जी को सात चोटियों वाला पर्वत सप्तश्रृंग दिखायी दिया, जहां गुरु गोबिन्द सिंह  ने महाकाल की तपस्या की थी।


कहते हैं कि तब संत सोहन सिंह जी ने गुरु जी की (अरदास) प्रार्थना की कि हे प्रभु! आपकी क्रपा से मैं आप की तपोभूमि तक तो आ गया हूं। hemkund sahib history  अब आप मुझे वह स्थान बताएं जहां आप जोत जगाकर शोभा बढ़ाते थे। कहते हैं कि ज्यों ही संत जी ने अरदास पूरी की, कमर तक जटा, नाभि तक दाड़ी  रखे, शेर की खाल पहने एक अवधूत प्रकट हुआ और बोला- खालसा किसे ढूंढते हो संत जी ने कहा कि हे  जोगीश्वर महाराज! मैं अपने गुरु जी का स्थान ढूंढ रहा हूं।

जोगीश्वर बोले कि यही वह शिला है जहां गुरुजी बैठते थे। यह  सुनकर संत जी भाव विभोर होकर उस शिला से लिपट गए। उनकी आखों से खुशी की धार बहने लगी। उन्होंने जोगीश्वर की ओर उत्सुकता से देखा लेकिन तब तक वे गायब हो चुके थे। कुछ दिनों बाद संत जी ने अमृतसर जाकर भाई वीरसिंह सरदार को सारी बात बताई। भाई जी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और संत जी से कहा कि वहां जाकर गुरु ग्रंथ का प्रकाश कर दो । इस प्रकार 1936 ई. में वहां एक छोटा सा गुरुद्वारा बनकर तैयार हो गया।

सिख धर्म में यह पवित्र तीर्थ माना गया है।

सन् 1937 ई. के शुरू में वहां गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश (पूजा) हुआ। हेमकुंड अत्यधिक ऊंचाई वाले तीर्थों में से है। इसकी ऊंचाई 4329 मीटर है। although  श्रद्धालु शाम तक वापस घांघरिया आ जाते हैं। hemkund sahib history  घांघरिया, भ्यूडार व पुलना चट्टी में यात्रियों की जरूरी सामान उपलब्ध हो जाता है । प्रत्येक वर्ष पहली जून को हेमकुंड साहिब के पट खुलते हैं। तब सैकड़ों-हजारों सिख हेमकुंड साहिब पहुंचते हैं। सिख लोग गुरु का संकल्प लेकर घरों से जलसों के रूप में यात्रा के लिए निकलते हैं।


हेमकुण्ट साहिब trust के प्रमुख नरेन्द्रजीत सिंह बिंद्रा बताते हैं कि यहाँ आने वाले श्रध्दालु इस समय प्रकृति का मनमोहक एवं अति सुंदर रूप के दर्शन कर रहे हैं।  इस वर्ष  हेमकुण्ट वैली में अचम्भित करने वाले विभिन्न प्रकार के फूलों की प्रकृतियों के  अंबार लगे हैं। ईश्वर की अपार कृपा से यह मन में सदैव क़ैद करने योग्य दृश्य श्रद्धालुओं की अंतर आत्मा को छू जाते हैं। hemkund sahib history  सभी यात्री अपनी तीरथ यात्रा के साथ इन अदभुत नज़ारों का आनंद ले सकते हैं।

देखिये तस्वीरें , ये है देहरादून पुलिस https://shininguttarakhandnews.com/dehradun-police-news/

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