चारू अपने सपनों को साकार कर रही हैं Himalayan Hippies Cafe

भले ही आपको यह कल्पना लगे, लेकिन ऐसा ही एक कैफे चलाती हैं उत्तराखण्ड की बेटी चारू मेहरा , जिसका नाम है दि हिमालयन हिप्पीज कैफे , साहित्यकारों, संगीतकारों और यात्रियों के आकर्षण के केन्द्र है कसारदेवी। पहली बार 1960 के दौर में हिप्पी आंदोलन के चलते यह चर्चाओं में आया था। इस जगह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ ही विश्व प्रसिद्ध संगीतकार बॉब डिलन और कैट स्टीवंस, साहित्यकार डी. एच. लॉरेंस, कवि एलेन्स गिन्सवर्ग, हॉलीवुड अदाकारा उमा थर्मन जैसी हस्तियां आईं हैं। यह क्षेत्र कला-साहित्य और आध्यात्म के लिए काफी प्रसिद्ध है।
कसारदेवी में ही चारू मेहरा ने हिमालयन हिप्पी कैफे खोला है। हालांकि यहां की सजावट और चीजों को देखकर यह कैफे कम कोई संगीत और कला का केंद्र ज्यादा लगता है। इसके बारे में चारू बताती हैं, मैंने अपने दादाजी बिशन सिंह मेहरा से सीखा है कि चीजों पर मालिकाना हक जताने के बजाय यदि उसको आप सभी की सहभागिता के लिए खोलते हैं तो वह बहुरंगी और बहुत खूबसूरत बन जाती है। वे बताते थे कि बॉब डिब्बन जैसे संगीतकार और लेखकों के साथ उनका उठना-बैठना था। दादाजी के साथ रहकर ही चारू ने विदेशी मेहमानों की रुचियों को लेकर समझ बनी।

हिमालयन हैप्पीज कैफे अपने आप में अनोखा हैैै।
चारू बताती हैं कि उन्होंने फाइन आर्ट की पढ़ाई करने के बाद छुट-पुट रूप से नौकरी भी की, लेकिन हमेशा अंदर से लगता था कि वे इस काम के लिये नहीं बनी हैं। उन्हें कुछ अपने मन का करना है। फिर उनके मन में इस तरह के कैफे को खोलने का विचार आया और दोस्तों की मदद से दो साल इसकी शुरुआत की। फाइन आर्ट की पढ़ाई, कुमाऊंनी व्यंजनों और संस्कृति की समझ एवं साइकोलॉजी के ज्ञान से इसको चलाना काफी सहज हो गया।
उनकी कोशिश रहती है कि उनके कैफे में आने वाला सिर्फ खाना ही नहीं खाएं, बल्कि वे उसे अपनी जगह मानकर इंजॉय करें। कहती हैं, हमारे कैफे में जो लोग आते हैं, वे इसको अपनी आत्मीय जगह की तरह इस्तेमाल करते हैं। यहां आकर वे संगीत सुनते हैं, पेंटिंग बनाते हैं, लेखन भी करते हैं। यह सृजनात्मकता के लिए अच्छी जगह है। दोस्तों की मदद से उन्होंने इसको तैयार किया है। हालांकि उनकी कोशिश है कि कहीं खुद की जगह पर अपना यह सपना पूरा करें, इसके लिए वे प्रयासरत हैं।

हिमालय हिप्पीज कैफे में कला के रंग बिखरे हुए हैं।
चारू के इस शानदार काम में चुनौतियों की भी भरमार है। चारू बताती हैं कि उन्हें एक साल तो अपने परिवार वालों को ही मनाने में लगा। परिवार का मानना था कि इतनी पढ़ाई करने के बाद इस तरह का काम करना ठीक नहीं हैं। हालांकि अब वे धीरे-धीरे ही सही, उसके काम को समझने लगे हैं, लेकिन अभी भी समाज को समझाना काफी कठिन है। समाज में बहुत से लोग हैं, जो महिलाओं के काम को स्थान और सम्मान देने के बजाय उनके बारे में अफवाह फैलाने से बाज नहीं आते। ऐसे ही कुछ लोगों का चारू को भी सामना करना पड़ता है। वे बताती हैं कि हालांकि युवा पीढ़ी उनके काम को हाथों-हाथ ले रही है। वहीं विदेशी पर्यटकों को उनका यह अनोखा काम खासा पसंद आ रहा है।