Hindu Dharma अगर परंपरागत मान्यताओं की बात करें तो ससुर और दामाद का रिश्ता ऐसा होता है, जिसमें सामंजस्य की कमी रहती है। पुरूष सत्तात्मक समाज होने की वजह से महिलाओं को दोयम दर्जे का माना जाता है। इसी वजह से जो बेटे के पिता होते हैं, वो खुद को गौरवशाली समझते हैं और बेटियों के पिता खुद को सदैव बेटी के ससुराल वालों के सामने झुका हुआ समझते हैं। यही नहीं बेटी का पिता अक्सर बेटी के पति यानी दामाद के सामने भी खुद को झुका हुआ पाता है।
जमाई को अंतिम संस्कार में जाने की अनुमति क्यों नहीं Hindu Dharma
हिंदू धर्म में दामाद को जमाई के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ ये है कि दामाद को जम का रूप बताया गया है। इसीलिए दामाद को यमदूत के रूप में देखा जाता है। दामाद का यमदूत के रुप में होना इस बात की ओर इशारा करता है कि ससुराल वालों को दामाद से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। शास्त्रों में दामाद से किसी भी प्रकार का आर्थिक एवं शारीरिक सहयोग प्राप्त करना वर्जित माना गया है। यही नहीं बेटी के पिता के लिए तो दामाद के घर का पानी पीना भी निषेध माना गया है। ऐसे में दामाद से पुत्रों के समान कर्तव्यों का पालन नहीं करवाया जा सकता है। यही कारण है कि दामादों को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं किया जाता है और उनसे किसी भी प्रकार का कोई सहयोग नहीं लिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार तो दामाद को अपने सास ससुर के अंतिम दर्शन भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि दामाद यमराज का रूप है।
वैसे तो समय के साथ साथ काफी बदलाव हो गए हैं और बहुत सारे नियम कानून बदले जा चुके हैं, लेकिन अंतिम संस्कार के नियमों में अभी तक कोई भी बदलाव नहीं हुए हैं। हिंदू धर्म में दामाद द्वारा सास ससुर का अंतिम संस्कार करना पूरी तरह से वर्जित माना गया है। सास ससुर के अंतिम संस्कार में दामाद ने तो आर्थिक सहयोग प्रदान कर सकता है और न ही कोई शारीरिक सहयोग प्रदान कर सकता है। इसी मान्यता है कि बेटी का पति सास ससुर की अर्थी को हाथ तक भी नहीं लगा सकता है। जब मुस्लिम धर्म में किसी महिला की मृत्यु होती है तो उसका अंतिम संस्कार पति के हाथों किया जाता है। पति के शारीरिक रूप से अक्षम होने पर या फिर पति के न होने की स्थिति में मृत महिला का बड़ा बेटा या दामाद अंतिम संस्कार की क्रिया की जिम्मेदारी को निभाता है।
वैसे तो हर धर्म में अंतिम संस्कार करने का हक सिर्फ और सिर्फ बेटे को प्रदान किया गया है। लेकिन हिंदू धर्म में अगर ऐसी स्थिति होती है कि बेटा अंतिम संस्कार नहीं कर सकता है तो परिवार के सदस्यों में से कोई भी अंतिम संस्कार की क्रिया को संपन्न कर सकता है। यहां ये ध्यान रखने वाली बात है कि परिवार के सदस्यों में बेटी और बहन के परिवार को नहीं जोड़ा जाता है। वहीं अगर बात करें मुस्लिम धर्म की तो मुस्लिम धर्म में अगर बेटा अंतिम संस्कार नहीं कर सकता है, तो परिवार का कोई भी सदस्य अंतिम संस्कार कर सकता है और मुस्लिम धर्म में ये क्रिया बेटी का पति भी कर सकता है। दामादों को मुस्लिम धर्म में अंतिम संस्कार करने से कोई भी मनाही नहीं है।