बाल्टी से खोदा 368 फीट गहरा कुआं indian history

19वीं शताब्दी में लंदन से 60 किलोमीटर दूर, चिल्टर्न पहाड़ियों के पास, स्टोक रो नाम का एक छोटे से गांव में पानी की कमी थी. नागरिक गंदे तालाब और मिट्टी के गड्ढे में जमे पानी को इस्तेमाल करने पर मजबूर थे. ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर एडवर्ड एंडरसन रीड ने जब यह बात बनारस के महाराजा ईश्वरी नारायण सिंह को बताई, तो उनका दिल पसीज गया. उन्होंने नागरिकों की मदद करने के लिए अपना खजाना खोल दिया.


कुआं काफी भव्य बनाया गया. इसे बनाने में आज के करीब 40 लाख रुपए का भारी-भरकम खर्च आया. कुछ सालों बाद लगभग 1871 में कुएं के ऊपर एक सुनहरा हाथी भी जोड़ा गया. महाराजा ने न केवल कुएं के निर्माण के लिए दान दिया, बल्कि कुएं के रखरखाव और देखभाल के भुगतान के लिए उन्होंने चेरी की खेती के लिए जमीन भी खरीदी. अफसर रीड ने महाराजा के नाम पर चेरी के बाग को ईश्वर बाग रखा.

बनारस और लंदन का संपर्क फिर जुड़ा
हालांकि, महाराजा और अंग्रेजी अफसर की मौत के बाद कुएं का रखरखाव भी ठीक से नहीं हुआ. इस बीच कई सालों तक बनारस के कुएं का भारत से संपर्क टूट गया. यह संपर्क फिर जुड़ा जब महारानी एलिजाबेथ भारत यात्रा (1961) के दौरान बनारस आईं. यहां तत्कालीन महाराजा ने महारानी को कुएं के एक संगमरमर के मॉडल को तोहफे में दिया. इसके बाद 8 अप्रैल 1964 को प्रिंस फिलिप, महाराजा के प्रतिनिधियों के साथ, स्टोक रो गांव पहुंचे. महाराजा के प्रतिनिधि अपने साथ बनारस से पवित्र गंगा जल लेकर आए थे. इस गंगा जल को समारोहपूर्वक कुएं के पानी में मिलाकर एक बार फिर बनारस और लंदन के संपर्क को पुनर्जीवित किया गया.