Special Report By : Anita Tiwari , Uttarakhand
Jagannath Rathyatra Bhog 1 जुलाई से पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकल रही है। इसलिए मंदिर की रसोई में लाखों लोगों का प्रसाद बनेगा। क्योंकि ये दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। जहां हर रोज करीब 1 लाख लोगों का खाना बनता है। यहां भगवान को हर दिन 6 वक्त का भोग लगाया जाता है। जिसमें 56 तरह के पकवान शामिल होते हैं। भोग के बाद ये महाप्रसाद मंदिर के पास ही मौजूद आनंद बाजार में बिकता है।
Jagannath Rathyatra Bhog : दुनिया की सबसे पुरानी रसोई का प्रसाद
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- Jagannath Rathyatra Bhog जगन्नाथ मंदिर की रसोई 11वीं शताब्दी में राजा इंद्रवर्मा के समय शुरू हुई थी। तब पुरानी रसोई मंदिर के पीछे दक्षिण में थी। जगह की कमी के कारण, मौजूदा रसोई 1682 से 1713 ई के बीच उस समय के राजा दिव्य सिंहदेव ने बनवाई थी। तब से इसी रसोई में खाना बनाया जा रहा है। यहां कई परिवार पीढ़ियों से सिर्फ खाना बनाने का ही काम कर रहे हैं। वहीं, कुछ लोग महाप्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाते हैं। क्योंकि इस रसोई में बनने वाले शुद्ध और सात्विक खाने के लिए हर दिन नया बर्तन इस्तेमाल करने की परंपरा है।
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- Jagannath Rathyatra Bhog 1 जुलाई से ओड़िशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो रही है। ये यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से शुरू होती है। पुरी मंदिर से शुरू होकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी के रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी आषाढ़ शुक्ल दशमी तक रुकते हैं। इसके बाद अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं।
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- Jagannath Rathyatra Bhog भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक सर्वाधिक प्रचलित मान्यता ये है कि द्वापर युग में एक दिन सुभद्रा जी ने अपने भाई श्रीकृष्ण से द्वारिका भ्रमण कराने की बात कही थी। बहन की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने रथ में बैठाकर सुभद्रा जी को द्वारिका भ्रमण कराया था। इसी मान्यता की वजह से जगन्नाथ जी, बलभद्र और सुभद्रा जी की रथ यात्रा निकाली जाती है।
Jagannath Rathyatra Bhog ये है भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा से जुड़ी कथा
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- Jagannath Rathyatra Bhog पुराने समय में ओडिशा के पुरी क्षेत्र के एक राजा थे। इंद्रद्युम्न उनका नाम था। एक रात जब वे सो रहे थे तो उनके सपने में भगवान जगन्नाथ जी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि सागर में लकड़ी के बड़े लट्ठे बह रहे हैं। उन्हें लेकर आओ उनसे हमारी तीन प्रतिमाएं बनवाओ।बाद में राजा ने सागर से लकड़ी के बड़े लट्ठे प्राप्त किए। उन लट्ठों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए भगवान विश्वकर्मा एक वृद्ध बढ़ई के रूप में राजा के पास पहुंचे। राजा ने उन्हें मूर्तियां बनाने की अनुमति दे दी। तब वृद्ध बढ़ई ने शर्त रखी थी कि जब तब मूर्तियां का निर्माण नहीं हो जाता है, तब कोई भी उनके कमरे में नहीं आएगा। राजा ने उनकी शर्त मान ली। वृद्ध बढ़ई ने एक कमरे में मूर्तियां बनाने का काम शुरू कर दिया। कमरा बंद था।
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- Jagannath Rathyatra Bhog काफी दिन हो गए थे, वह वृद्ध बढ़ई कमरे से बाहर नहीं निकला। एक दिन रानी ने सोचा कि वृद्ध बढ़ई कमरे से बाहर ही नहीं निकल रहा है। ऐसा सोचकर कमरे के बाहर से तांकझांक करके रानी बढ़ई के हालचाल जानने की कोशिश करने लगी। वृद्ध बढ़ई ने दरवाजा खोल दिया और कहा कि मूर्तियां अधूरी हैं और आपने शर्त तोड़ दी है, इसलिए अब मैं ये काम पूरा नहीं करूंगा। जब ये बात राजा को मालूम हुई तो वह दुखी हो गए। उस समय वृद्ध बढ़ई ने बताया कि ये सब भगवान की ही इच्छा है। इसके बाद जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी की अधूरी मूर्तियां ही मंदिर में स्थापित की गई।
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कैसे पहुंच सकते हैं जगन्नाथ पुरी
- Jagannath Rathyatra Bhog ओडिशा में पुरी का सबसे करीबी एयरपोर्ट भुवनेश्वर है। यहां से पुरी शहर करीब 60 किमी दूर है। पुरी पहुंचने के लिए देशभर के अधिकतर बड़े शहरों से कई ट्रेनें आसानी से मिल जाती हैं। ये शहर अन्य राज्यों और बड़े शहरों से सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है।
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