देहरादून से अनीता आशीष तिवारी की रिपोर्ट –
Jagar in Uttarakhand शाइनिंग उत्तराखंड न्यूज़ आज आपको उत्तराखंड की जागर पूजा के बारे में बता रहा है जो पूर्वजों की आध्यात्मिक पूजा का एक अनुष्ठान रूप है, जिसमें पितरों, क्षेत्रपाल, देवताओं और स्थानीय कुल-देवताओं को उनकी सुप्त अवस्था से जगाया जाता है और उनसे कृपा या उपाय मांगा जाता है। दरअसल actually यह उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल के साथ नेपाल में भी प्रचलित है।
जागर शब्द का मतलब क्या होता है Jagar in Uttarakhand
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जागर शब्द संस्कृत मूल, जग से आया है, जिसे वैदिक संस्कृत में जागर कहा गया है, जिसका अर्थ है “जागना” ….. वैदिक काल से ऋषि मुनि जिस प्रकार किसी दोष, बीमारी आदि का निवारण करने के लिए यज्ञ करते थे, और जैसे आज भी देवी-देवताओं के लिए जागरण आयोजित होते हैं, उसी प्रकार उत्तराखंड की पहाड़ियों में जागर के माध्यम से लोग अपने देवताओं को जागृत करते हैं और उनकी शक्ति का लाभ लेते हैं…..
क्या होता है जागर ?
यह अनुष्ठान दैवीय न्याय के विचार से जुड़ा है और किसी अपराध के लिए तपस्या करने या किसी अन्याय के लिए देवताओं से न्याय प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जागर में रात्रि के तय समय में जलती आग के आसपास, गाँव और परिवार वाले, जगरिया और वाद्य यंत्रों की मदद से शक्ति का आह्वान करते हैं। लेकिन but इसके बाद जागर में मौजूद डंगरियों के शरीर में शक्ति का आगमन होता है। हालाँकि although तरंगों के रूप में आई यह शक्ति उनके शरीर में कम्पन पैदा करती है उसके बाद दास या जगरिया की मदद से परिवार को अपने द्वारा खोजे गए प्रश्नों के हल और उपचार मिलता है।
जागर में कौन हिस्सा लेता है?
उत्तराखंड में लगने वाली जागर में जगरिया (Jagariya), डंगरिया (Dangariya) और स्यानकर होते हैं| जहाँ स्यानकर वह व्यक्ति होता है जिसने अपनी समस्याओं के लिए दैवीय हस्तक्षेप की तलाश के लिए जागर का आयोजन अपने घर पर किया होता है| जगरिया गाथागीत के गायक होते हैं जो देवताओं का आह्वान करते हैं| इनके अलावा डंगरिया वह माध्यम होते हैं, जिनके शरीर का उपयोग देवताओं द्वारा अवतार लेने के लिए किया जाता है| डांगरिया शब्द कुमाऊंनी शब्द डांगर से आता है, जिसका अर्थ होता है रास्ता , क्योंकि because डंगरिया वही है जो देवताओं को रास्ता दिखाता है
कैसे जागृत किये जाते हैं पितृ और कुल देवता
संगीत के माध्यम से देवताओं का आह्वान किया जाता है| इसमें डमरू, थाली, ढोल, दमाऊ, हुड़का आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं| गायक या जगरिया, महाभारत या रामायण जैसे महान महाकाव्यों के संकेतों के साथ देवताओं का गीत गाते हैं, जिसमें भगवान के आह्वान किए जाने के कारनामों का वर्णन किया जाता है। अगर if बात जगरिया की करें तो इनके पास लोकगीत या लोकगाथाएँ गाने की विशेष कला होती है जो अपने गीतों में छंद, रस के अनुसार पितरों, कुल देवी-देवताओं का आह्वान करते हैं|
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लेकिन BUT समय के साथ विकसित होने के बाद, जागर गायन एक कला के रूप में बदल गया है जो बहुत पोषित है, और अपनी संस्कृति और विरासत को अगली पीढ़ी के लिए संजोने में जागर का महत्वपूर्ण योगदान रह सकता है| हालाँकि ALTHOUGH जहाँ आज भी उत्तराखंड की पहाड़ियों में पहाड़ी लोग देवताओं, पितरों को जागृत करने और मसान पूजा के लिए जागर आयोजित करते हैं वहीँ व्यापक द्रिष्टी से जागर को स्थानीय विरासत के एक सांस्कृतिक और संगीत घटक के रूप में देखा जाता है जिसे संरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई है।
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