Jhanda Mela 2024 : हैरान कर देगी श्री झंडेजी की ऐतिहासिक परम्परा

होशियारपुर पंजाब के हरभजन सिंह चढ़ाएंगे दर्शनी गिलाफ
श्री झंडा जी मेला आयोजन समिति ने तैयारियों पर की बैठक
मेले पर आयोजित होने वाले विशेष आयोजनों व कार्यक्रमों पर चर्चा
ट्रैफिक व्यवस्था, संगतों के ठहरने व अन्य व्यवस्थाओं के लिए तैयार हुआ मास्टर प्लान

Jhanda Mela 2024

Jhanda Mela 2024 दून के ऐतिहासिक श्री झंडेजी का आरोहण 30 मार्च को होगा। श्री दरबार साहिब में श्री झण्डा जी मेला आयोजन समिति की बैठक हुई। ऐतिहासिक श्री झंडे जी मेले के आयोजन की तैयारियों को लेकर मेला आयोजन समिति ने महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर मंथन किया। श्री दरबार साहिब के सज्जादानशीन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने मेला आयोजन समिति के सदस्यों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए। इस साल होशियारपुर पंजाब निवासी हरभजन सिंह को दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।



श्री झंडे जी मेले का यह है ऐतिहासिक महत्व Jhanda Mela 2024
सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय जी के बड़े पुत्र श्री गुरु राम राय जी महाराज का जन्म सन् 1646 ई. में  जिला होशियारपुर के कीरतपुर, पंजाब में हुआ था। श्री गुरु राम राय जी महाराज ने देहरादून को अपनी तपस्थली चुना व श्री दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए विशाल झण्डा लगाकर श्रद्धालुओं को ध्वज से आशीर्वाद लेने का संदेश दिया था। होली के पांचवें दिन चैत्र वदी पंचमी को श्री गुरु राम राय जी महाराज के जन्मदिवस के रूप में मनाया  जाता है व हर साल श्री झंडे जी मेले का आयोजन किया जाता है।



श्री गुरु राम राय जी महाराज के जन्मदिवस के अवसर पर हर साल श्री दरबार साहिब, देहरादून में श्री झंडे जी मेले का आयोजन किया जाता है। श्री झंडा जी मेला आयोजन समिति के व्यवस्थापक विजय प्रसाद डिमरी ने बताया कि इस वर्ष लाखों की संख्या में देश विदेश से संगतों के पहुंचने की सम्भावना है। मेले के दौरान होने वाली प्रमुख गतिविधियों व उनके संचालन को लेकर आवश्यक तैयारियों को पूरा कर लिया गया है। मेले के सफल संचालन हेतु 50 समितियों का गठन किया गया है। मेला समिति के पदाधिकारियों को पुलिस प्रशासन का भरपूर सहयोग करने व मेले में आने वाले श्रद्धालुओं-संगतों की सुरक्षा एवम् सुविधा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए।  


30 मार्च को दून के ऐतिहासिक श्री झंडेजी का आरोहण 

देश विदेश से आने वाली संगतों के लिए  एसजीआरआर पब्लिक स्कूल रेसकोर्स, बिंदाल, राजा रोड, ताबाल व बाॅबे बाग स्कूल की शाखाओं में आवश्यक व्यववस्थाएं पूरी कर ली गई हैं। शहर की प्रमुख धर्मशालाओं व होटलों के संचालकों से सम्पर्क कर मेला आयोजन समिति ने श्रद्धालुओं एवम् संगतों के ठहरने के आवश्यक व्यवस्था बनाई है। इस वर्ष मेला आयोजन के दौरान आठ बड़े लंगर व 4 छोटे लंगरों की भी विशेष व्यवस्था की गई है। बैठक के दौरान ट्रैफिक व्यवस्था, संगतों के वाहनों की पार्किंग, सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था, मेला आयोजन स्थल पर पुलिस थाने का संचालन, मेला अस्पताल का संचालन, एम्बुलेंस व्यवस्था, श्री दरबार साहिब में प्रवेश व निकास के लिए आवश्यक वन-वे व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा हुई।


1 अप्रैल सोमवार को ऐतिहासिक नगर परिक्रमा होगी
343 साल पुराने झंडे जी मेले का इतिहास देहरादून के अस्तित्व से जुड़ा है। श्री गुरु राम राय जी का पदार्पण (देहरादून आगमन) यहां सन् 1676 में हुआ था। तब गुरु महाराज ने श्री दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए विशाल झंडा लगाकर लोगों को इसी ध्वज से आशीर्वाद प्राप्त करने का संदेश दिया था। इसी के साथ श्री झंडा साहिब के दर्शन की परंपरा शुरू हो गई।1818 से लेकर 1842 तक महंत स्वरूप दास, 1842 से 1854 तक महंत प्रीतमदास, 1854 से 1885 तक महंत नारायणदास, 1885 से 1945 तक महंत लक्ष्मण दास और 1945 से लेकर 2000 तक महंत इंदिरेश चरण दास गद्दी पर विराजमान रहे। वर्तमान में महंत देवेंद्र दास महाराज 25 जून 2000 से गद्दी पर विराजमान हैं।

जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर संगत को ठहरने का हुक्म दिया
गुरु राम राय महाराज सातवीं पातशाही (सिखों के सातवें गुरु) श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। औरंगजेब गुरु राम राय के काफी करीबी माने जाते थे। औरंगजेब ने ही महाराज को हिंदू पीर की उपाधि दी थी। औरंगजेब महाराज से काफी प्रभावित था। छोटी सी उम्र में वैराग्य धारण करने के बाद वह संगतों के साथ भ्रमण पर चल दिए। वह भ्रमण के दौरान ही देहरादून आए थे। जब महाराज जी दून पहुंचे तो खुड़बुड़ा के पास उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और उन्होंने संगत को रुकने का आदेश दिया। अपने तीर कमान से महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया। देहरादून पहुंचने पर औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को उनका पूरा ख्याल रखने का आदेश भी दिया। उन्होंने यहां डेरा डाला इसलिए दून का नाम पहले डेरादून और फिर बाद में देहरादून पड़ गया। उसके बाद से आज तक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नाम से ही जानी जाती है।
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