Jhutha Mandir रहस्यमयी झूठा मंदिर मंदिर की कहानी

Jhutha Mandir आपने कई मान्यताओं और अजब गजब विश्वास वाले मंदिरों के बारे में सुना और देखा होगा लेकिन क्या आप झूठा मंदिर के बारे में जानते हैं ? अगर नहीं तो आइये उत्तराखंड जहाँ कुमाऊं मंडल में चम्पावत जनपद के टनकपुर से 18 किमी दूर, पूर्णागिरी पर्वत के शिखर के पास स्थित एक अनोखा देवालय है, जिसे ‘झूठा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटा ताम्र देवालय है, जो अपनी रहस्यमयी कहानी और असामान्य स्थिति के लिए प्रसिद्ध है। आज हम इस मंदिर की दिलचस्प और रहस्यमयी कथा पर एक नज़र डालेंगे।

झूठा मंदिर का इतिहास बड़ा दिलचस्प है Jhutha Mandir

झूठा मंदिर के बारे में एक प्रचलित कथा है, जो इसके नामकरण की वजह बताती है। कहते हैं कि एक समय किसी सेठ ने मां पूर्णागिरी के मंदिर में एक मनौती की थी। उसने वचन लिया था कि यदि उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वह यहां एक सुवर्ण (सोने) का मंदिर बनवाकर देवी को समर्पित करेगा। मां पूर्णागिरी की कृपा से सेठ की मनोकामना पूरी हुई।

 

सेठ का धोखा और मंदिर का निर्माण

लेकिन, जैसे ही उसकी इच्छा पूरी हुई, सेठ के मन में खोट आ गया। उसने सोचा कि सोने का मंदिर बनवाने के लिए बहुत धन का खर्च होगा, इसलिए क्यों न तांबे का मंदिर बनवा कर उस पर सोने का पानी चढ़वाया जाए। सेठ ने ठीक वैसा ही किया और तांबे का एक छोटा मंदिर बनवा दिया, जिसे सोने की परत चढ़ाई गई। जब सेठ ने पूरा मंदिर देवी के चरणों में अर्पित करने के लिए उठाया, तो वह मंदिर इतना भारी हो गया कि सेठ उसे उठा नहीं सका। यह घटना देवी की अस्वीकृति के रूप में मानी गई। सेठ ने मंदिर को यहीं पर छोड़ दिया और लौटते हुए यह मान लिया कि देवी की इच्छा पूरी नहीं हुई। तभी से यह मंदिर वहीं पड़ा हुआ है।

झूठा मंदिर का नामकरण

क्योंकि यह मंदिर सुवर्ण का नहीं था और न ही इसमें कोई मूर्ति थी, इसे ‘झूठा मंदिर’ के नाम से पुकारा गया। यह नाम समय के साथ प्रसिद्ध हुआ और अब यह स्थान पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक दिलचस्प और रहस्यमयी स्थल बन चुका है। आज के समय में यह मंदिर बिना किसी पूजा-पाठ के खाली पड़ा है, लेकिन इसके इतिहास और कथाओं ने इसे एक सांस्कृतिक धरोहर बना दिया है। यहां न कोई मूर्ति है और न कोई विशेष पूजा होती है, फिर भी यह एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थल है।