देहरादून से अनीता तिवारी की रिपोर्ट –
Kalpeshwar Mandir Uttarakhand उत्तराखंड राज्य में गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत चमोली जिले की उरगम नाम की घाटी में स्थित है पंच केदार मंदिरों में पांचवे स्थान पर पूजा जाने वाला भगवान कल्पेश्वर का मंदिर … दूर से देखने पर कल्पेश्वर मंदिर में भले ही विशाल आकार की कुछ चट्टानें नजर आती हैं लेकिन, मुख्य रूप से यही दिव्य चट्टानें भगवान शिव की उलझी हुई जटाओं के प्रतीक के रूप में पूजी जाती हैं।
Kalpeshwar Mandir Uttarakhand दिव्य देवभूमि का पांचवा केदार मंदिर

- Kalpeshwar Mandir Uttarakhand आज की इस कल्पगंगा नदी का प्राचीन नाम हिरण्यवती हुआ करता। इसी नदी के एक दम किनारे पर स्थित भगवान कल्पेश्वर का यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा के रूप में है। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में स्वयं पांडवों द्वारा की गई थी। समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई 2,200 मीटर, यानी करीब 7,217 फीट है। हालांकि गुफा के बाहर के कुछ हिस्से मान निर्मित भी हैं। पंच केदार मंदिरों में से मात्र कल्पेश्वर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है जो आम श्रद्धालुओं के लिए वर्षभर खुला रहता है।
Kalpeshwar Mandir Uttarakhand कल्पेश्वर नाम का अर्थ –
- कल्पेश्वर केदार (Kalpeshwar Madir) के नाम के विषय में पौराणिक तथ्यों से पता चलता है कि प्राचीन समय में मंदिर के आसपास की इस भूमि पर कल्प वृक्षों का घना वन, यानी ‘‘कल्प वन’’ हुआ करता था, इसलिए उस कल्प वन के नाम से ही पांचवें केदार के रूप को कल्प केदार और फिर कल्पेश्वर केदार नाम दिया गया। शिव पुराण में उल्लेख है कि ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी।
- Kalpeshwar Mandir Uttarakhand जोशीमठ के टैक्सी स्टैण्ड से कल्पेश्वर की दूरी करीब 28 कि.मी. है। इस यात्रा में करीब एक घंटा समय लग जाता है, और इस दूरी के लिए कम से कम 70 से 80 रुपये देने पड़ते हैं। जोशीमठ से चलने पर सबसे पहला गांव आता है हेलंग। हेलंग गांव जोशीमठ से करीब 18 कि.मी. बाद और कल्पेश्वर मंदिर से 10 कि.मी. पहले आता है।इस यात्रा में जोशीमठ के टैक्सी स्टैंड से हेलंग के रास्ते पहुंचते हैं उरगम वैली के देव ग्राम में। देव ग्राम में उतरने के बाद यहां से कल्पेश्वर महादेव मंदिर तक पैदल यात्रा की शुरुआत होती है।
- Kalpeshwar Mandir Uttarakhand देवग्राम से चलने पर मात्र कुछ ही दूरी तक जाने के बाद लोहे का एक पुल है जिसके जरिए इसी कल्पगंगा नदी को पार करते हुए मंदिर तक जाना होता है। यहां कोई बहुत बड़ा या भव्य मंदिर नहीं बल्कि प्राकृतिक गुफा के तौर पर एक छोटे से आकार का कक्ष है जिसमें भगवान शिव की उन दिव्य जटाओं की पूजा होती है। इन जटाओं के अलावा इस गुफा में एक दिव्य स्वयंभू शिवलिंग भी है। इसी पूजा स्थल से लगा हुआ एक छोटा सा अमृत कुंड भी है जिसमें भगवान शिव की इन विशाल आकार वाली जटाओं से बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। अमृत कुंड के इसी जल से भगवान कल्पेश्वर का जलाभिषेक किया जाता है।
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