Kanwar Yatra कांवड़ यात्रा के प्रकार, नियम और महत्व

Kanwar Yatra सावन का महीना आते ही उत्तर भारत की सड़कें भगवा रंग में रंग जाती हैं. हर ओर ‘बोल बम’ के जयकारे गूंजने लगते हैं. तीर्थ नगरी ऋषिकेश, हरिद्वार और गंगाघाटों पर शिवभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. ये कोई आम मेला नहीं, बल्कि शिवभक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाने वाली कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) होती है. इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा जल लेकर लंबी पदयात्रा करते हैं और उसे अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा केवल एक ही प्रकार की नहीं होती, इसके कई रूप और नियम होते हैं, जो भक्तों की आस्था और साधना के अनुसार तय होते हैं.


आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के प्रकार और उससे जुड़े महत्वपूर्ण नियम.क्या हैं। कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) मुख्य रूप से छह प्रकार की मानी जाती है. हर प्रकार की कांवड़ का एक विशेष महत्व होता है और इसके नियम भी थोड़े अलग होते हैं:

1. सामान्य कांवड़:
यह सबसे आम प्रकार की कांवड़ होती है. इसमें भक्त सामान्य तौर पर अपनी सुविधा अनुसार जल भरते हैं और रुकते-रुकते शिव मंदिर तक पहुंचते हैं. इसमें कोई विशेष कठोर नियम नहीं होते.

2. दांडी कांवड़:
इस कांवड़ में भक्त पूरी यात्रा बिना किसी वाहन की सहायता के और नंगे पांव पूरी करते हैं. जल को जमीन पर नहीं रखा जाता और लगातार दो या अधिक साथी इसे उठाकर चलते हैं. इस कांवड़ में साधना और संयम की अधिक आवश्यकता होती है.

3. डाक कांवड़:
यह सबसे तेज़ और ऊर्जावान कांवड़ मानी जाती है. इसमें भक्त गंगा जल भरने के बाद दौड़ते हुए या बाइक/गाड़ियों की मदद से जल को बिना रुके शिव मंदिर तक पहुंचाते हैं. इस कांवड़ में समय की पाबंदी सबसे अहम होती है. डाक कांवड़ को अक्सर समूह में किया जाता है, जिसमें एक भक्त जल लेकर दौड़ता है और बाकी उसका सहयोग करते हैं. इसमें अनुशासन, उत्साह और ऊर्जा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.

4. सफेद कांवड़:
इस कांवड़ में भाग लेने वाले शिवभक्त सफेद वस्त्र पहनते हैं और पूरी यात्रा में पूर्ण पवित्रता का पालन करते हैं. सफेद रंग शांति और सात्विकता का प्रतीक है. इस कांवड़ में शामिल भक्त मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखते हैं तथा ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करते हैं.

5. पालकी कांवड़:
यह कांवड़ अधिक श्रद्धा और शृंगार से जुड़ी होती है. इसमें गंगाजल को सुंदर रूप से सजी हुई पालकी में रखकर शिवधाम ले जाया जाता है. अक्सर यह कांवड़ समूह में की जाती है, जहां एक टीम भक्ति गीतों, ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि के साथ पालकी को उठाए चलती है. यह कांवड़ श्रद्धा और भक्ति का भव्य प्रदर्शन होती है.

6. रूई चढ़ाई कांवड़:
इसमें गंगाजल के पात्रों को रूई या मुलायम कपड़ों से लपेटा जाता है ताकि यात्रा के दौरान पात्रों को कोई चोट न लगे या कंपन उत्पन्न न हो. यह बहुत संवेदनशील और नियमबद्ध कांवड़ होती है. इसमें जल की पवित्रता बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

कांवड़ यात्रा के नियम:

कांवड़ यात्रा भक्ति का मार्ग है, लेकिन इसमें कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:
कांवड़ यात्रा नंगे पांव की जाती है. गंगा जल को कभी जमीन पर नहीं रखा जाता. मांस-मदिरा, नशा और अपवित्र भोजन पूरी तरह निषिद्ध होता है. यात्रा के दौरान झगड़ा, क्रोध या अपशब्दों का प्रयोग वर्जित है. भक्त ‘बोल बम’ के जयकारों से वातावरण को भक्तिमय बनाए रखते हैं. कई स्थानों पर पुरुष और महिला कांवड़ यात्राओं के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं होती हैं. यात्रा के दौरान भक्त शिवजी के प्रति समर्पण और संयम बनाए रखते हैं.