Lakhamandal shiv mandir विधि का विधान है की जो व्यक्ति धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। व्यक्ति की मृत्यु होने के तत्काल बाद ही उसकी आत्मा मनुष्य का शरीर छोड़ देती है और एक बार आत्मा छोड़ने के बाद वह उसमें पुनः कभी प्रवेश नहीं करती। वह दूसरी योनी या दूसरे शरीर में ही प्रवेश करती है। क्योंकि because हमेशा कहा जाता है की जो चला गया वो वापस लौटकर नहीं आ सकता। लेकिन but जन्म और मृत्यु तो ईश्वर का खेल है और ईश्वर के चमत्कार के आगे कुछ भी नहीं हैं। तो चलिए देवभूमि के एक ऐसे ही रहस्य से आपको रूबरू कराते हैं।
देवभूमि के चमत्कारिक तीर्थ Lakhamandal shiv mandir

जन्म-मृत्यु से जुड़ी एक चौंकाने वाली बात करें की इस दुनिया में मृत व्यक्ति भी जीवित हो सकता है, तो शायद आप इस बात पर यकिन ना कर पाएं। लेकिन but आज हम आपको भोलेनाथ के एक चमत्कारी मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां अगर शव को लेकर जाया जाए तो आत्मा उस शव में पुन: प्रवेश कर जाती है। जी हां इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हैं लेकिन यह सत्य है…
जिस चमत्कारी मंदिर की हम बात कर रहे हैं दरअसल वह मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी, देहरादून से कुछ दूरी पर लाखामंडल नामक स्थान पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में यहां पांडवों को जलाकर मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनाया था। अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठर ने शिवलिंग की स्थापना इसी स्थान पर की थी। जो मंदिर में आज भी मौजूद है। यहाँ मौजूद शिवलिंग को महामुंडेश्वर के नाम से जाना जाता है।
मंदिर के प्रांगण में मौजूद इस शिवलिंग के सामने दो द्वारपाल पश्चिम की ओर मुंह करके खड़े हैं। actually दरअसल माना जाता है कि कोई भी मृत्यु को प्राप्त किया हुआ इंसान इन द्वारपालों के सामने रख दिया जाता था तो पुजारी द्वारा अभिमंत्रित जल छिड़कने पर वह जीवित हो जाता था। इस प्रकार मृत व्यक्ति यहां लाया जाता था और कुछ पलों के फिर से जिंदा हो जाता था।
जीवित होने के बाद उक्त व्यक्ति शिव नाम लेता है व गंगाजल ग्रहण करता है। हालाँकि although गंगाजल ग्रहण करते ही उसकी आत्मा फिर से शरीर त्यागकर चली जाती है। मंदिर की पिछली दिशा में दो द्वारपाल पहरेदार के रूप में खड़े नजर आते हैं, दो द्वारपालों में से एक का हाथ कटा हुआ है जो एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।
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