launda naach bihar : ‘लौंडा नाच’ आखिर होता क्या है ? मोदी सरकार ने दिया पद्मश्री

launda naach bihar आज बात एक पारम्परिक कला की , फनकारों के दर्द और तालियों की … लौंडा नाच जी हाँ ये वो  लोक नृत्य है जो बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और नेपाल के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। इस नृत्य में पुरुष कलाकार महिलाओं के कपड़े पहनकर और महिलाओं की तरह नृत्य करके मनोरंजन करते हैं। लौंडा नाच का आयोजन आमतौर पर शादी, जन्मदिन और अन्य समारोहों के अवसर पर किया जाता है। लौंडा नाच में विभिन्न तरह के पारंपरिक नाच-गान जैसे ठुमरी, कजरी, दादरा और चैती शामिल हैं। हालांकि although , लौंडा नाच पर बिहार के थिएटरों की अश्लीलता ने खूब असर डाला है। लेकिन but क्या आप जानते हैं इसका इतिहास ?

रामचंद्र मांझी को मोदी सरकार ने दिया पद्मश्री launda naach bihar

launda naach bihar

वैसे लौंडा नाच का इतिहास काफी पुराना है और यह कई तरह के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित रहा है। लौंडा नाच की शुरुआत के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, लेकिन but यह माना जाता है कि यह नृत्य प्राचीन काल से प्रचलित है। कुछ विद्वानों का मानना है कि लौंडा नाच की शुरुआत राजा-महाराजाओं के दरबारों में हुई थी, जहाँ पुरुष नर्तक महिलाओं के कपड़े पहनकर मनोरंजन करते थे। अन्य विद्वानों का मानना है कि लौंडा नाच की शुरुआत धार्मिक अनुष्ठानों के रूप में हुई थी, जहाँ पुरुष नर्तक देवी-देवताओं के रूप में नृत्य करते थे। हालांकि although लौंडा नाच की बड़ी पहचान को सभी भिखारी ठाकुर से जोड़कर ही देखते हैं।


लौंडा नाच को भिखारी ठाकुर ने दिलाई वैश्विक पहचान

भिखारी ठाकुर भोजपुरी के एक महान लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है। उन्होंने भोजपुरी में कई नाटक, गीत और कविताएँ लिखीं। भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाया। उन्होंने लौंडा नाच को एक लोक नृत्य से एक व्यावसायिक रूप में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों में लौंडा नाच को एक आकर्षक और मनोरंजक रूप में प्रस्तुत किया। भिखारी ठाकुर के नाटकों के माध्यम से लौंडा नाच बिहार और अन्य क्षेत्रों में लोकप्रिय हो गया। उन्होंने लौंडा नाच को एक सम्मानजनक कला रूप के रूप में स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 
भिखारी ठाकुर के बिना लौंडा नाच की वर्तमान स्थिति शायद ही संभव हो पाती। भिखारी ठाकुर ने ‘बिदेसिया, भाई-विरोध, बेटी-बियोग, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा असनान, बिधवा-बिलाप, पुत्र वध, ननद-भौजाई, बहरा बहार’ जैसे नाटक लिखे और उनका मंचन किया। उनके योगदान के कारण ही भोजपुरी भाषा और संस्कृति को एक नई पहचान मिली। भिखारी ठाकुर के शिष्य रहे और उनकी मंडली के अंतिम सदस्य रहे रामचंद्र माँझी का निधन 96 वर्ष की उम्र में पिछले साल सितंबर माह में हुआ। उन्हें भारत सरकार ने साल 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया। रामचंद्र माँझी ने इसे कला के साथ ही भिखारी ठाकुर का भी सम्मान बताया था। बता दें कि रामचंद्र माँझी 95 वर्ष की उम्र तक लौंडा नाच का मंचन करते रहे।
 
लौंडा नाच को लेकर फैली भ्रांतियां
दरअसल, ‘लौंडा नाच’ बिहार ही नहीं, पूर्वी यूपी, बंगाल और यहाँ तक कि नेपाल में भी प्रचलित है। हो सकता है कि नाम अलग-अलग हों। इसे बिहार की सांस्कृतिक कला का हिस्सा भी माना जाता है। शादी-विवाह, मुंडन, तिलक जैसे कार्यक्रमों में लौंडा नाच का आयोजन होता रहा है। इस नाच को करने वाले लोग प्रोफेशनल होते हैं। हालाँकि, लौंडा नाच को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हैं, उन्हें दूर करने की जरूरत है। क्योंकि, इन भ्रांतियों के कारण ही लौंडा नाच के कलाकारों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। वे समाज में एक सम्मानजनक स्थान पाने के लिए संघर्ष करते हैं।
पुलिस अंकल ‘मम्मी मुझे और पापा को मारती हैं, बर्तन धुलवाती हैं’https://shininguttarakhandnews.com/aligarh-child-viral/
ShiningUttarakhandNews

We are in the field of Electronic Media from more than 20 years. In this long journey we worked for some news papers , News Channels , Film and Tv Commercial as a contant writer , Field Reporter and Editorial Section.Now it's our New venture of News and Informative Reporting with positive aproch specially dedicated to Devbhumi Uttarakhand and it's glorious Culture , Traditions and unseen pictures of Valley..So plz support us and give ur valuable suggestions and information for impressive stories here.