laziness in Winter सर्दियां आते ही अक्सर हमारा मन दिनभर कंबल में घुसे रहने का करता है। इस में मौसम सभी को सुस्ती छाई रहती है जिसकी वजह से कुछ भी करने का मन नहीं करता है लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि सर्दियों में मौसम में इतना आलस क्यों आता है। अगर नहीं तो आप इस खबर में हम आपको बताएंगे इसकी वजह और इससे निपटने के तरीकों के बारे में-
सर्दियों में ज्यादा आलस, नींद और थकान laziness in Winter

देश के ज्यादातर हिस्सों में कड़ाके की ठंड, सर्द हवा और कोहरे के कॉकटेल के जरिये सर्दी ने अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है. ऐसे मौसम में ज्यादातर लोग काफी आलसी हो जाते हैं. ज्यादातर लोग ज्यादा से ज्यादा समय रजाई में पड़े रहना चाहते हैं. बहुत जरूरी होने पर ही लोग अनमने होकर रजाई से बाहर निकलते हैं. लंबा वक्त रजाई में रहने के बाद भी पूरे-पूरे दिन थकान महसूस होती रहती है. क्या आप जानते हैं कि इसके लिए आप जिम्मेदार नहीं होते हैं. इसमें सूरज और आपका स्वास्थ्य मन से ज्यादा जिम्मेदार होता है.

सर्दियों के मौसम में आलस और थकान का सबसे बड़ा कारण धूप की कमी है. दरअसल, सूरज की रोशनी कम होने के कारण हमारी बायोलॉजिकल क्लॉक पर असर पड़ता है. लोगों के हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं. रोशनी कम होने के कारण मेलाटोनिन हार्मोन का उत्पादन बढ़ जाता है. यही हार्मोन नींद के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए लोगों को हर वक्त नींद का अनुभव होता है. साथ ही धूप की कमी के कारण शरीर में विटामिन डी की कमी होने से हर समय थकान महसूस होती है. विटामिन डी की कमी के कारण एनर्जी लेवल घट जाता है. साथ ही हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर भी असर पड़ता है. यहां तक कि कुछ लोग सर्दियों में अवसाद और तनाव की समस्या का सामना भी करते हैं.

सर्दी में क्यों बनती है तनाव और अवसाद की स्थिति
सर्दियों के मौसम में ज्यादातर लोग ज्यादा तला-भुना खाना शुरू कर देते हैं. इससे हमारी शारीरिक गतिविधियों पर असर पड़ता है. सर्दियों में होने वाला अवसाद और तनाव फिजियोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इसे सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर कहते हैं. इसमें नींद की कमी हुई तो डिप्रेशन का जोखिम बढ़ जाता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में स्लीप रिसर्चर अर्नो लॉडेन कहते हैं कि मनुष्य डायूरनल प्राणी है. आसान भाषा में कहें तो इंसान दिन के समय सक्रिय रहने और रात के समय नींद लेने वाला प्राणी है. वह कहते हैं कि ‘हमारा शरीर बाहरी दुनिया की रोशनी के हिसाब से एडजस्ट होता है. सूरज की रोशनी ही हमारे दिमाग को मेलाटोनिन हार्मोन के प्रोडक्शन को रोकने का संदेश देती है.

लॉडेन कहते हैं कि मेलाटोनिन शाम 8 बजे एक्टिवेट होता है. आधी रात में एक बजे के करीब सोने के दौरान ये चरम पर पहुंच जाता है. सुबह होने पर सूरज की रोशनी दिमाग को मेलाटोनिन हार्मोन बनाना बंद करने का संदेश देती है. द लाइटिंग रिसर्च सेंटर की मरियाना फिग्यूरो के मुताबिक, काफी लोग सर्दियों की लंबी रातों और छोटे दिन के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं. इससे कई लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं. कुछ लोगों में कार्बोहाइड्रेट की ज्यादा इच्छा होने लगती है. इससे उनका वजन बढ़ने लगता है. मरियाना के मुताबिक, इसे विंटर ब्लूज कहा जाता है.
कहां सबसे ज्यादा आते हैं मूड डिसऑर्डर के केस
डॉ कहते हैं कि हमारे दिमाग में एक हिस्सा हाइपोथैलेमस होता है. यह हमारे शरीर के अंदर की घड़ी है, जो बाहर के समय के साथ तालमेल बैठाने में मदद करती है. अगर बाहर लगातार अंधेरा है या बेहद कम रोशनी है तो सेंसिटिव लोगों में मूड डिसॉर्डर की आशंका बढ़ जाती है. भारत में मूड डिसऑर्डर के केस बेहद कम आते हैं. इसके सबसे ज्यादा मामले उत्तरी अमेरिका और नॉर्थ यूरोप में मिलते हैं. मूड डिसऑर्डर के शिकार लोगों का मन किसी काम में नहीं लगता है. ऐसे लोग ज़िंदगी में खुश रहना भूल जाते हैं. उन्हें भूख भी कम लगती है. अब सवाल उठता है कि इससे बचने के लिए हमें एक दिन में कितनी रोशनी चाहिए होती है.

प्रोफेसर लॉडेन कहते हैं कि मूड डिसऑर्डर से बचने के लिए हर व्यक्ति को अलग-अलग मात्रा में धूप की दरकार होती है. फिर भी आमतौर माना जाता है कि अगर हर दिन हमारे शरीर को कम से कम 20 मिनट सूरज की तेज रोशनी मिले तो काम बन सकता है. वहीं, मरियाना कहती हैं कि मूड डिसऑर्डर से बचे रहने के लिए हर व्यक्ति को कम से कम एक घंटे के लिए घर से बाहर रहना चाहिए. अगर ऐसा संभव ना हो तो अपने नजदीक टेबल लैंप जलाकर कुछ देर बैठना चाहिए. अगर ऐसा भी नहीं कर सकते तो कसरत को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए. साथ ही अच्छा खानपान मूड को सही रखने में मदद करता है. बादाम, अखरोट, स्ट्रॉबेरी, खजूर, मिल्कशेक, केसर, संतरा, चीकू,अमरूद, अंडे खाने से फायदा मिल सकता है.
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